रुद्रपुर। पहाड़ में आपदा से तबाह हुआ प्रताप का परिवार रोजी रोटी की तलाश में तराई में आ गया। मगर यहां भी इस परिवार को सिस्टम ने तबाह कर दिया। फैक्ट्री में काम के दौरान प्रताप के दोनों हाथ और पैर टूट गए। इसके बाद फैक्ट्री ने न तो काम पर रखा और न ही मुआवजा दिया। आपदा में दो बहनें, घर और जमीन खोने के जख्म भरे भी नहीं थे कि नई विपदाओं ने परिवार को और भी मुसीबत में डाल दिया। प्रताप अब फैक्ट्री और प्रशासन के खिलाफ मां के साथ धरने पर बैठा है। वह फैक्ट्री से मुआवजा और प्रशासन से जमीन मांग रहा है। ठंड में उनके धरने को महीनेभर होने को है मगर उनकी कोई नहीं सुन रहा है।
विदित हो कि बागेश्वर के ग्राम सुंदिल, पट्टी दोफाड़ निवासी प्रताप सिंह मेहता अपनी मां कौशल्या देवी के साथ तीन दिसंबर से कलक्ट्रेट परिसर पर धरने पर बैठे हैं। उनके स्वास्थ्य में गिरावट को देखते हुए 10 दिसंबर को मां-बेटे को जिला चिकित्सालय में भर्ती कराया गया। एक सप्ताह से अधिक समय भर्ती रहने के बाद 20 दिसंबर से मां-बेटे फिर से धरने पर बैठ गए। प्रताप ने बताया कि जुलाई 1993 में भीषण बरसात में उसके गांव सुंदिल में 12 नाली जमीन और मकान बह गया। इसमें उसकी दो बहनें, पांच भैंस और 20 बकरी भी मलबे में दबकर मर गई। वर्ष 2001 में उनका परिवार गूलरभोज आकर किराए पर रहने लगा। प्रताप ने बताया कि परिवार चलाने के लिए वह अगस्त 2010 में सिडकुल स्थित एक फैक्ट्री में नौकरी करने लगा। तीन माह बाद ही 25 नवंबर 2010 को काम के दौरान 15 फिट ऊंचाई से गिरने पर उसके दोनों हाथ और एक पैर फ्रेक्चर हो गया। एक महीने चले उपचार के बाद वह चलने फिरने लायक हो पाया। इसके बाद न तो कंपनी ने नौकरी पर रखा और न ही मुआवजा दिया। प्रताप का कहना है कि इस हादसे के बाद उससे भारी काम नहीं हो पाता है। भूमि आवंटन और फैक्ट्री से मुआवजे की मांग को लेकर प्रताप अपनी मां के साथ दिसंबर 2011 में भी कलक्ट्रेट पर धरने पर बैठा तब प्रशासन ने उन्हें जबरन उठा दिया था। प्रताप ने बताया कि केंद्रीय मंत्री हरीश रावत से लेकर अफसरों तक अपना दुखड़ा सुना चुका है। किसी ने उसके परिवार सुध नहीं ली। उसके परिवार में पिता नारायण सिंह और एक भाई है जबकि तीन बहनों की शादी हो गयी है।
बृहस्पतिवार को एसडीएम के निर्देश पर जिला चिकित्सालय के चिकित्सकों ने धरना स्थल पहुंचकर मां-बेटे का स्वास्थ्य का परीक्षण किया। उन्हें एसडीएम ने भी वार्ता के लिए बुलाया। प्रताप ने मांग पूरी होने तक धरना जारी रखने की बात कही।
भूमि आवंटन के लिए बागेश्वर जिला प्रशासन से सूचना मंगाने के लिए समय मांगा गया था। लेकिन धरना दे रहा परिवार तराई में ही जमीन देने की मांग पर अड़ा है। फिर भी स्थानीय प्रशासन हरसंभव प्रयास कर रहा है।
ईला गिरी, एसडीएमरुद्रपुर।
रुद्रपुर। पहाड़ में आपदा से तबाह हुआ प्रताप का परिवार रोजी रोटी की तलाश में तराई में आ गया। मगर यहां भी इस परिवार को सिस्टम ने तबाह कर दिया। फैक्ट्री में काम के दौरान प्रताप के दोनों हाथ और पैर टूट गए। इसके बाद फैक्ट्री ने न तो काम पर रखा और न ही मुआवजा दिया। आपदा में दो बहनें, घर और जमीन खोने के जख्म भरे भी नहीं थे कि नई विपदाओं ने परिवार को और भी मुसीबत में डाल दिया। प्रताप अब फैक्ट्री और प्रशासन के खिलाफ मां के साथ धरने पर बैठा है। वह फैक्ट्री से मुआवजा और प्रशासन से जमीन मांग रहा है। ठंड में उनके धरने को महीनेभर होने को है मगर उनकी कोई नहीं सुन रहा है।
विदित हो कि बागेश्वर के ग्राम सुंदिल, पट्टी दोफाड़ निवासी प्रताप सिंह मेहता अपनी मां कौशल्या देवी के साथ तीन दिसंबर से कलक्ट्रेट परिसर पर धरने पर बैठे हैं। उनके स्वास्थ्य में गिरावट को देखते हुए 10 दिसंबर को मां-बेटे को जिला चिकित्सालय में भर्ती कराया गया। एक सप्ताह से अधिक समय भर्ती रहने के बाद 20 दिसंबर से मां-बेटे फिर से धरने पर बैठ गए। प्रताप ने बताया कि जुलाई 1993 में भीषण बरसात में उसके गांव सुंदिल में 12 नाली जमीन और मकान बह गया। इसमें उसकी दो बहनें, पांच भैंस और 20 बकरी भी मलबे में दबकर मर गई। वर्ष 2001 में उनका परिवार गूलरभोज आकर किराए पर रहने लगा। प्रताप ने बताया कि परिवार चलाने के लिए वह अगस्त 2010 में सिडकुल स्थित एक फैक्ट्री में नौकरी करने लगा। तीन माह बाद ही 25 नवंबर 2010 को काम के दौरान 15 फिट ऊंचाई से गिरने पर उसके दोनों हाथ और एक पैर फ्रेक्चर हो गया। एक महीने चले उपचार के बाद वह चलने फिरने लायक हो पाया। इसके बाद न तो कंपनी ने नौकरी पर रखा और न ही मुआवजा दिया। प्रताप का कहना है कि इस हादसे के बाद उससे भारी काम नहीं हो पाता है। भूमि आवंटन और फैक्ट्री से मुआवजे की मांग को लेकर प्रताप अपनी मां के साथ दिसंबर 2011 में भी कलक्ट्रेट पर धरने पर बैठा तब प्रशासन ने उन्हें जबरन उठा दिया था। प्रताप ने बताया कि केंद्रीय मंत्री हरीश रावत से लेकर अफसरों तक अपना दुखड़ा सुना चुका है। किसी ने उसके परिवार सुध नहीं ली। उसके परिवार में पिता नारायण सिंह और एक भाई है जबकि तीन बहनों की शादी हो गयी है।
बृहस्पतिवार को एसडीएम के निर्देश पर जिला चिकित्सालय के चिकित्सकों ने धरना स्थल पहुंचकर मां-बेटे का स्वास्थ्य का परीक्षण किया। उन्हें एसडीएम ने भी वार्ता के लिए बुलाया। प्रताप ने मांग पूरी होने तक धरना जारी रखने की बात कही।
भूमि आवंटन के लिए बागेश्वर जिला प्रशासन से सूचना मंगाने के लिए समय मांगा गया था। लेकिन धरना दे रहा परिवार तराई में ही जमीन देने की मांग पर अड़ा है। फिर भी स्थानीय प्रशासन हरसंभव प्रयास कर रहा है।
ईला गिरी, एसडीएमरुद्रपुर।