खटीमा। नेपाल सीमा से लगा जंगल तस्करों की गिरफ्त में है। वन तस्करों द्वारा सागौन के छोटे एवं बड़े पेड़ों को काटा जा रहा है, इससे जहां सरकार को राजस्व का नुकसान हो रहा है, वहीं पर्यावरण की भी भारी क्षति हो रही है। कुछ जगहों पर तो एसएसबी कैंप के नजदीक ही वन तस्करों ने पेड़ काट लिए हैं। तस्करी के इस कारोबार में स्थानीय लोगों के अलावा नेपाली नागरिक भी बताए जा रहे हैं।
सीमांत क्षेत्र में एक तरफ जहां आए दिन खाद, सीमेंट, डीजल की तस्करी होती है, वहीं जंगल भी इन तस्करों से अछूते नहीं हैं। सीमांत क्षेत्र में जगह-जगह कटे हुए पेड़ों की ठूंठ नजर आ रहे हैं। नारायण नगर स्थित एसएसबी कैंप से मात्र सौ मीटर की दूरी एवं वन विभाग की चौकी से दो किमी का क्षेत्र भी वन तस्करों की नजर में है। वन माफियाओं के हौसले इतने बुलंद हैं कि यहां लगभग पांच सागौन के पेड़ तस्करों ने काट दिए हैं।
नेपाली नागरिक भी भारत सीमा के जंगलों पर ही निर्भर हैं। चांदनी गांव के नेपाली नागरिक घास, लकड़ी लेने के लिए भारतीय जंगलों पर आते हैं और पशुओं को भी यहां के जंगलों में भेजते हैं। सूत्रों की मानें तो इन गांवों में चलने वाली आरामशीनें भारतीय जंगलों की लकड़ियों पर निर्भर है। इस कारोबार में भारत के अलावा नेपाल के तस्कर भी शामिल हैं। इन पर प्रतिबंध लगाने में वन विभाग एवं एसएसबी विफल हो रही है। सीमा से लगे जंगल जहां अतिक्रमणकारियों के निशाने पर हैं वहीं तस्करों से भारी नुकसान पहुंच रहा है।
इंडो-नेपाल सीमा के अधिकारियों की बैठक में भी आरामशीनों का मुद्दा उठाया गया था। इसके बाद कुछ हद तक कमी आई है, लेकिन सीमा पार मशीनें होने के कारण यहां से कोई कार्रवाई नहीं हो सकती। अलबत्ता जंगल में गश्त तेज की जाएगी।
-जेपी सिंह, एसडीओ वन