काशीपुर। उत्तराखंड जल विद्युत निगम लिमिटेड (यूजेवीएनएल) और गैस ऑथोरिटी ऑफ इंडिया (गेल) के गैस आधारित पावर प्लांट लगाने की योजना को करारा झटका लगा है। मिनिस्ट्री ऑफ पावर और सेंट्रल इलेक्ट्रीसिटी ऑथोरिटी ने राज्य सरकार द्वारा प्रस्तावित पावर प्रोजेक्टों को गैस देने को लगाई अर्जी के जवाब में साफ किया है कि केजी-डी 6 में उत्पादन आश्चर्यजनक तरीके से घटने से अगले चार सालों तक किसी नए प्लांट को अनुमति नहीं दी जा सकती है।
लंबे समय से ऊर्जा प्रदेश का नारा बुलंद करने वाले उत्तराखंड में बिजली का संकट बरकरार है। कभी पर्यावरण तो कभी अविरल गंगा के नाम पर नए पावर प्रोजेक्टों पर ग्रहण लगता रहा है। इसी बीच निजी क्षेत्र की तीन इकाइयों ने यहां महुआखेड़ागंज नगर पंचायत क्षेत्र में गैस आधारित पावर प्रोजेक्टों का निर्माण शुरू कर दिया, इससे राज्य को बिजली संकट से निजात मिलने की आस जगी, इनमें से 450 मेगावाट बिजली बनाने वाली श्रावंथी एनर्जी प्राइवेट लिमिटेड तो पूरी तरह प्रोडक्शन के लिए तैयार है। अलबत्ता गेल द्वारा पाइप लाइन बिछाने का काम महीनों पहले पूरा होने पर भी गैस उपलब्ध नहीं हो सकी। वहीं 225-225 मेगावाट क्षमता वाले बीटा इंफ्राटेक और गामा इंफ्रापोप का निर्माण तेजी पर है।
इस बीच हाल में हुए विधानसभा चुनाव से ठीक पहले पूर्व मुख्यमंत्री बीसी खंडूरी ने यहां एस्कार्ट फार्म में 300 मेगावाट क्षमता वाले यूजेवीएनएल और गेल के संयुक्त उपक्रम वाले गैस आधारित पावर प्रोजेक्ट का शिलान्यास किया था। इसी तरह हरिद्वार में 500 मेगावाट क्षमता का पावर प्रोजेक्ट लगना था, लेकिन राज्य सरकार द्वारा केंद्र से पावर प्रोजेक्टों को गैस देने के अनुग्रह को मिनिस्ट्री ऑफ पावर और सेंट्रल इलेक्ट्रीसिटी ऑथोरिटी ने ठुकरा दिया है। मई माह के आखिर में राज्य सरकार को भेजे जवाब में कहा गया कि उत्तराखंड में निजी क्षेत्र के तीन पावर प्रोजेक्टों का काम अंतिम चरण में है, इनको व्यवसायिक उत्पादन तो दूर टरबाइन टेस्ट करने तक तो गैस उपलब्ध नहीं हो रही है। लिहाजा, वर्ष 2015-16 तक पावर सेक्टर से जुड़ी इकाइयों को घरेलू गैस पर आधारित प्लांट लगाने की अनुमति नहीं दी जा सकती है।