पिथौरागढ़। पहाड़ में पेयजल के लिए नल से अधिक उम्मीद नौलों पर होती थी पर गर्मियों में अब न नलों से पानी टपक रहा है और न नौले जलदाता का किरदार निभा पा रहे हैं। बचीखुची कसर नौलों के पानी को लेकर उठ रहे सवालों ने पूरी कर दी है। पिथौरागढ़ जिले में आठ ऐसे नौले हैं, जिनका पानी पीने लायक ही नहीं है। हाल यह है कि पेयजल स्रोतों को बचाने से अधिक जोर नौलों की खूबसूरती पर दिया जा रहा है।
पहाड़ में गर्मी बढ़ने पर पेयजल का संकट मारामारी की नौबत तक पहुंच गया है। इस अव्यवस्था का खामियाजा जल संस्थान के अभियंताओं को तबादले के रूप में भुगतना पड़ा है। और पानी की ये किल्लत पहाड़ के लोगों का ध्यान नौलों (छतयुक्त भूमिगत जलाशय) की ओर ले जाती थी। मगर इन नौलों की स्थिति भी उम्मीद नहीं जगाती। दरअसल पेयजल की कमी को दूर करने में मददगार बन सकने वाले ये नौले अब बेबस हैं। खूबसूरत विरासत को संजोने वाले नौले एक दशक पहले तक प्यास बुझा लोगों को तृप्त करते थे। गर्मियों में भी ये लबालब भरे होते थे। लेकिन अब इनका अस्तित्व ही खतरे में है।
पिथौरागढ़ में राज्य बनने के वक्त तक 57 नौले थे। लेकिन इन बारह वर्षों में ये संख्या सिकुड़ कर 19 रह गई है। और इन पानी वाले नौलों में से भी आठ का पानी पीने योग्य नहीं है। जल संस्थान के अधीक्षण अभियंता जेआर गुप्ता का कहना है कि पिथौरागढ़ के आठ नौलों का पानी पीने लायक नहीं है। इसके मद्देनजर विभाग ने इन नौलों के आगे बाकायदा उपयोग न करने की चेतावनी लिखी है। आबादी और मकानों की तेज रफ्तार, निकास प्रणाली की खामी से नौलों का पानी प्रदूषित हो रहा है।
हिमालयन अध्ययन केंद्र के डा.दिनेश जोशी समेत कई विशेषज्ञों का कहना है कि संरक्षण को लेकर तो चूक हुई ही लेकिन इससे भी अधिक खतरा नौलों में मरम्मत के नाम पर धड़ल्ले से सीमेंट के इस्तेमाल से है। नौलों में जल स्तर की कमी से लेकर पानी के प्रदूषित होने में बेपरवाह आधुनिक जीवन शैली अधिक जिम्मेदार है। नगर पालिका भी नौलों के सौंदर्यीकरण और सुधार काम कराती रही है। मगर अधिशासी अधिकारी केएन जोशी का कहना है कि सौंदर्यीकरण नौलों के बाहरी हिस्से का किया गया है। इस वजह से जल स्तर कम होने के लिए सौंदर्यीकरण कोई कारण नहीं है।