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थल (पिथौरागढ़)। थल तहसील लोगों के लिए सिरदर्द बन गई है। इस तहसील के खुलने का यहां के लोगों को कोई लाभ नहीं मिल रहा है। अब तक थल तहसील में तहसीलदार, नायब तहसीलदार का पद नहीं भरा गया। छह माह पहले रजिस्ट्रार कानूनगो सेवानिवृत्त हो गए थे, लेकिन उनकी जगह भी कोई तैनाती नहीं की गई। इस समय तहसील का कामकाज चलाने की जिम्मेदारी पटवारी को सौंपी गई है।
थल में तहसील के गठन की अधिसूचना 30 सितंबर 2014 को जारी हुई थी, लेकिन सरकार ने इस तहसील में कामकाज एक साल बाद 13 सितंबर 2015 से शुरू किया। तहसील का कामकाज शुरू होते समय जनता को यह भरोसा दिलाया गया था कि तहसील से संबंधित सभी काम अब यहीं पर होंगे। बेड़ीनाग और डीडीहाट तहसील के कई पटवारी क्षेत्रों के 114 गांव थल तहसील में शामिल किए गए, लेकिन अधिकारियों के नहीं होने से लोगों को इस तहसील का कोई लाभ नहीं मिल पा रहा।
शासन ने थल तहसील का परिसीमन करते समय जनता के विरोध पर कोई गौर नहीं किया। इसमें सत्यालगांव, चिटगालगांव, चोपड़ा, कोटगाड़ी, सिल्दो, भटीगांव, आमथल, थल और उपराड़ा पटवारी क्षेत्र के सभी गांव मिला दिए। चिटगालगांव के लोगों ने तो थल तहसील में शामिल करने का प्रबल विरोध किया था। थल तहसील में कोई प्रमाणपत्र नहीं बनता, जमीन की रजिस्ट्री और बयनामा भी नहीं हो पाता। लोगों को इन कामों के लिए पुरानी तहसीलों के ही चक्कर काटने पड़ते हैं। थल तहसील का अतिरिक्त कार्यभार बेड़ीनाग के तहसीलदार को दिया गया है। वह महीने में सिर्फ एक बार यहां आ पाते हैं।
तहसील खुलने से परेशानी ज्यादा बढ़ी
थल निवासी हर्ष बहादुर चंद का कहना है कि सरकार को तुष्टिकरण की नीति नहीं अपनानी चाहिए। जनता को शांत कराने के लिए तहसील तो खोल दी, लेकिन स्टाफ की तैनाती नहीं की। उनका कहना है कि तहसील खुलने से लोगों की परेशानी ज्यादा बढ़ गई है। इसका शीघ्र समाधान निकाला जाए।
पहले स्टाफ की तैनाती करनी चाहिए थी
स्थानीय निवासी जगदीश पाठक का कहना है कि जब स्टाफ ही नहीं है तो तहसील खोलने का लाभ नहीं मिल सकता। सरकार को पहले तहसील भवन का निर्माण करना चाहिए था और स्टाफ की तैनाती करनी चाहिए थी, फिर तहसील की घोषणा होती तो शायद लोगों को लाभ मिलता। अब लोग ज्यादा संकट में फंस गए हैं।
थल (पिथौरागढ़)। थल तहसील लोगों के लिए सिरदर्द बन गई है। इस तहसील के खुलने का यहां के लोगों को कोई लाभ नहीं मिल रहा है। अब तक थल तहसील में तहसीलदार, नायब तहसीलदार का पद नहीं भरा गया। छह माह पहले रजिस्ट्रार कानूनगो सेवानिवृत्त हो गए थे, लेकिन उनकी जगह भी कोई तैनाती नहीं की गई। इस समय तहसील का कामकाज चलाने की जिम्मेदारी पटवारी को सौंपी गई है।
थल में तहसील के गठन की अधिसूचना 30 सितंबर 2014 को जारी हुई थी, लेकिन सरकार ने इस तहसील में कामकाज एक साल बाद 13 सितंबर 2015 से शुरू किया। तहसील का कामकाज शुरू होते समय जनता को यह भरोसा दिलाया गया था कि तहसील से संबंधित सभी काम अब यहीं पर होंगे। बेड़ीनाग और डीडीहाट तहसील के कई पटवारी क्षेत्रों के 114 गांव थल तहसील में शामिल किए गए, लेकिन अधिकारियों के नहीं होने से लोगों को इस तहसील का कोई लाभ नहीं मिल पा रहा।
शासन ने थल तहसील का परिसीमन करते समय जनता के विरोध पर कोई गौर नहीं किया। इसमें सत्यालगांव, चिटगालगांव, चोपड़ा, कोटगाड़ी, सिल्दो, भटीगांव, आमथल, थल और उपराड़ा पटवारी क्षेत्र के सभी गांव मिला दिए। चिटगालगांव के लोगों ने तो थल तहसील में शामिल करने का प्रबल विरोध किया था। थल तहसील में कोई प्रमाणपत्र नहीं बनता, जमीन की रजिस्ट्री और बयनामा भी नहीं हो पाता। लोगों को इन कामों के लिए पुरानी तहसीलों के ही चक्कर काटने पड़ते हैं। थल तहसील का अतिरिक्त कार्यभार बेड़ीनाग के तहसीलदार को दिया गया है। वह महीने में सिर्फ एक बार यहां आ पाते हैं।
तहसील खुलने से परेशानी ज्यादा बढ़ी
थल निवासी हर्ष बहादुर चंद का कहना है कि सरकार को तुष्टिकरण की नीति नहीं अपनानी चाहिए। जनता को शांत कराने के लिए तहसील तो खोल दी, लेकिन स्टाफ की तैनाती नहीं की। उनका कहना है कि तहसील खुलने से लोगों की परेशानी ज्यादा बढ़ गई है। इसका शीघ्र समाधान निकाला जाए।
पहले स्टाफ की तैनाती करनी चाहिए थी
स्थानीय निवासी जगदीश पाठक का कहना है कि जब स्टाफ ही नहीं है तो तहसील खोलने का लाभ नहीं मिल सकता। सरकार को पहले तहसील भवन का निर्माण करना चाहिए था और स्टाफ की तैनाती करनी चाहिए थी, फिर तहसील की घोषणा होती तो शायद लोगों को लाभ मिलता। अब लोग ज्यादा संकट में फंस गए हैं।