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Meteor Shower: मंगल और बुध की रात होगी उल्काओं की बरसात, रात दो बजे चरम पर होगा ये अद्भुत नजारा

गिरीश रंजन तिवारी, अमर उजाला, नैनीताल Published by: हल्द्वानी ब्यूरो Updated Sun, 11 Dec 2022 10:20 AM IST
सार

रात दो बजे चरम पर नजर आएगी टूटते तारों की बारिश की यह रोमांचक खगोलीय घटना  जेमिनी कांस्टेलेशन के कैस्टर तारे की दिशा से आती प्रतीत होने के कारण इसे जेमिनिड मीटियोर शॉवर कहा जाता है। 

जेमिनिड मीटियर शावर (फाइल फोटो)
जेमिनिड मीटियर शावर (फाइल फोटो) - फोटो : NAINITAL

विस्तार

अंतरिक्ष से होने वाली टूटते तारों की बारिश हर साल सात बार होती है, इसमें वर्ष का अंतिम उल्कापात इस बार 13-14 दिसंबर यानी मंगलवार और बुधवार की रात सबसे ज्यादा सक्रिय होगा। एक घंटे के दौरान करीब 100 उल्कापात नजर आएंगे। खास बात यह है कि इस बार का यह जेमिनिड उल्कापात आज तक के सभी जेमिनिड उल्कापातों में सर्वाधिक चमकदार होगा। 


 
रात दो बजे चरम पर नजर आएगी टूटते तारों की बारिश की यह रोमांचक खगोलीय घटना  जेमिनी कांस्टेलेशन के कैस्टर तारे की दिशा से आती प्रतीत होने के कारण इसे जेमिनिड मीटियोर शॉवर कहा जाता है। गूगल ने भी डूडल के जरिये इस खास अवसर को दर्शाया है, जेमिनिड उल्कापात हर साल दिसंबर में होती है। 


सबसे आकर्षक लेकिन सबसे देर में खोजा गया उल्कापात
जेमिनिड मीटियर शॉवर कई वजहों से सबसे आकर्षक होता है। इसमें 70 किमी प्रति सेकंड की रफ्तार से हर घंटे 100 तक रंगीन उल्काएं नजर आती हैं। वर्ष में होने वाले अन्य उल्कापात पूर्व में खोजे जा चुके थे जबकि इसकी खोज अपेक्षाकृत बाद में 1862 में हुई।

पृथ्वी पर जीवन चक्र में सहयोगी है उल्कापात
उल्काएं हमारे वातावरण में जीवन चक्र को बनाए रखने में प्राकृतिक रूप से योगदान देती हैं। इनकी राख से विभिन्न प्रकार के खनिज पदार्थ प्राप्त होते हैं। जेमिनिड उल्कापात से सोडियम और मैग्नीशियम खनिज मिलते हैं। फैथान एस्टेरॉयड की धूल में ये खनिज पाए जाते हैं। इन खनिजों की उपस्थिति इस उल्कापात को अधिक आकर्षक भी बना देती है। इनके कारण ही ये उल्काएं सफेद, पीले, नीले, लाल,  हरे रंग नजर आती हैं। आम तौर पर अन्य उल्कापातों में ऐसा नहीं होता।

दिसंबर में पृथ्वी जब अपनी कक्षा में उल्का स्ट्रीम से गुजरती है तब इससे सैकड़ों छोटी-बड़ी उल्काएं पृथ्वी पर बरसती हुई नजर आती हैं। दिसंबर में अंतरिक्ष में पृथ्वी का रास्ता, 3200 ‘फैथॉन’ नाम के एस्टेरॉयड के रास्ते से मिलता है जिसके कण पृथ्वी की राह में पड़ने के बाद पृथ्वी के वायुमंडल के घर्षण से जलकर रंगीन रेखा बनाते हैं जिसे आम भाषा में टूटते तारे कहा जाता है। इस प्रकार यह वर्ष की सात प्रमुख उल्कापातों में से एकमात्र उल्कापात की घटना है, जिसका स्रोत धूमकेतु न होकर एक एस्टेरॉयड होता है। 
- डॉ. शशि भूषण पांडे, खगोल विज्ञानी, आर्य भट्ट शोध एवं प्रेक्षण विज्ञान संस्थान  
 

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