भीमताल। मां-बाप छोटी बहनों के साथ खुश था 13 साल का विनोद। हर वर्ष चारों बहनें उसकी कलाई पर राखी बांधती। पिता-मां उससे बेहद प्यार करते। एक रात इन सबको उसने अकेला क्या छोड़ा कि, सारा परिवार उसे जिंदगीभर के लिए बेसहारा छोड़ गया। विनोद की आंखें बृहस्पतिवार को पूरे दिन मलबे के ढेर में मां-बाप, बहनों को खोज रही थी। वह कभी फफक कर रो पड़ता तो कभी खामोश हो जाता। कभी खुद को कोसता कि प्रकृति रूपी दानव ने अगर मारना ही था तो उसे क्यों बख्शा। क्यों उसे उस रात ताऊ के घर पर सोने का खयाल आया। उसे परिवार की चिता जलानी है, पर शवों को पास देखता यह बच्चा हर पल यही सोचता है कि उसका परिवार अभी सोया है। जब सब जागेंगे तो मां सहलाएगी, पिता प्यार देंगे और बहनें साथ खेलेंगी....।
क्या होगा हयात जैसे 250 परिवारों का?
भीमताल। सब ठीकठाक चल रहा था कल तक। हयात सुबह खेतों में जाता। पत्नी घर का कामकाज निपटाती। एक बेटा और दो बेटियां स्कूल निकल जाते। पहाड़ के जीवन में मौत के ऐसे मंजर का इन्हें जरा भी आभास न था। सोचते थे असुविधा में जीना इस देश के गांवों की नियति है और ये हरे-भरे पहाड़ ही हमारे साथी, मगर इस धारणा के पीछे पहाड़ के संहारक चेहरे ने हयात ही नहीं बल्कि ल्वाड़डोबा के हर परिवार की जमीन हिलाई है। यहां के 250 परिवार उन लोगों में हैं, जिन्होंने सत्ता के नाम पर राजनीति का छिछोरापन करने वाले नेताओं से न तो कभी कुछ मांगा, न कुछ कहा। इनके वोट सत्ता बनाते हैं और बदले में इन्हें मिला है क्रूर पहाड़। जिसने सिर्फ चंद घंटों में हंसते-खेलते परिवार को उजाड़कर अपनी विनाशलीला दिखाई तो हयात जैसे 250 परिवारों का दर्द भी।
ल्वाड़डोबा तक पहुंचने के लिए कम से कम 15 किलोमीटर पैदल चलना पड़ता है। अगर बरसात में रास्ते में कोई बाधा आ जाए तो फिर यह दूरी बढ़ती है। यहां की अर्थव्यवस्था का साधन खेती है। जिस हयात राम और उसकी जीवनसंगिनी समेत चार बेटियां प्रकृति के कोपभाजन का शिकार बनी, वह कल तक खेती से ही अपना परिवार चलाकर बच्चों को पढ़ाता था। हयात का बेटा विनोद जीआईसी डोबा में सातवीं का छात्र है। बड़ी बेटी नीलम कक्षा चार और कविता कक्षा एक में पढ़ती थी। हंसते परिवार का आशियाना चकडोबा-गौनियारो रोड के ठीक नीचे है। गांव के उत्तम सिंह मटियानी बताते हैं कि रात में सड़क के निचले हिस्से में भूस्खलन हुआ और जामुन का पेड़ हयात के मकान में गिरा।
उसके बाद मौत के मलबे ने कुछ ही पल में अपनी विनाशलीला दिखा डाली। नैनीताल जिले से 110 किमी की दूरी और भीमताल से 135 किमी दूर यह गांव कहने को तो सड़क से लगा है, लेकिन जो सड़क 2005 में गांव तक बनाई गई, उसमें सरकार का विभाग की पैसा डकार गया। आज तक इस रोड में डामर नहीं पड़ा है। हर वर्ष हल्की बारिश में सड़क टूट जाती है। संचार के मामले में गांव अब भी सदियों पीछे है। शिक्षा के नाम पर एकाध स्कूल खुले हैं और सेहत भगवान भरोसे है। इस बात का अंदाजा इसी से लगाया जा सकता है कि सूचना के बाद आपदा प्रबंधन तंत्र यहां पहुंचा ही नहीं। इस ताजा घटना के बाद गांव के पीछे की तरफ खड़ा हिंसक पहाड़ 250 परिवारों की जिंदगी पर निशाना साधे है और राज्य में सुरक्षा की बात करने वाले नेताओं पर ल्वाड़डोबा प्रश्नचिन्ह लगाता है।
डीएम समझे, जीना आसान नहीं
भीमताल। ल्वाड़डोबा के जीवन को जीना आसान नहीं। यह बात जिले के डीएम अरविंद सिंह ह्यांकी भी तब समझ पाए जब उन्हें गांव पहुंचने के लिए 28 किलोमीटर सफर पैदल तय करना पड़ा। बुधवार रात हुई बारिश से करायल के पास पेड़ गिर गया था। डीएम के वहां पहुंचने तक रास्ता खोल दिया गया था। उससे आगे करायल और खनस्यू के बीच सड़क का एक हिस्सा टूटा था। कुंडल और ल्वाड़डोबा के पास सड़क मलवा आने से बंद थी लिहाजा डीएम को पैदल जाना पड़ा।
सीएम समेत कई मंत्रियों ने दुख जताया
भीमताल। मुख्यमंत्री विजय बहुगुणा, कबीना मंत्री इंदिरा हृदयेश, सिंचाई मंत्री यशपाल आर्या, श्रम मंत्री हरीश चंद्र दुर्गापाल, अमृता रावत, विधायक दान सिंह भंडारी, बंशीधर भगत, सरिता आर्या और ब्लाक प्रमुख कमलेश कैड़ा ने हादसे पर दुख जताया है। इधर, ओखलकांडा के बीडीसी सदस्य राम सिंह कैड़ा, विजय बोरा, जिला पंचायत सदस्य यमुना बोरा, डूंगर ढोलगाई, जगत बोरा, चतुर बोरा, बच्ची रैक्वाल, युंका नेता नितेश बिष्ट आदि ने ने भी शोक संवेदना दी है।
15 मवेशी भी मरे
भीमताल। हयात राम के मकान के भूृृ-तल में उनकी गौशाला थी भूस्खलन से 12 बकरियां और 2 बछड़े और एक पालतू कुत्ता भी मलवे में दबकर मर गए जबकि दो बैल, एक गाय को घायल हालत में निकाला जा सका।
डीएम ने सौंपा 32 लाख 8 हजार का चैक
भीमताल। जिलाधिकारी अरविंद सिंह हयांकी ने देर शाम हयात के परिजनों को मुआवजे का चेक सौंपा। डीएम के हवाले से जिला सूचना अधिकारी दीपक जोशी ने बताया जिला प्रशासन की ओर से छह लोगों के मुआवजे के तौर पर प्रति व्यक्ति पांच-पांच लाख रुपये, दो लाख रुपये मकान का मुआवजा और आठ हजार रुपये बर्तन, अन्य सामग्री के नुकसान का मुआवजा दिया गया। हयात के परिवार में इकलौते बचे उसके पुत्र विनोद के नाम का चेक उसके ताऊ को सौंपा गया है।
भीमताल। मां-बाप छोटी बहनों के साथ खुश था 13 साल का विनोद। हर वर्ष चारों बहनें उसकी कलाई पर राखी बांधती। पिता-मां उससे बेहद प्यार करते। एक रात इन सबको उसने अकेला क्या छोड़ा कि, सारा परिवार उसे जिंदगीभर के लिए बेसहारा छोड़ गया। विनोद की आंखें बृहस्पतिवार को पूरे दिन मलबे के ढेर में मां-बाप, बहनों को खोज रही थी। वह कभी फफक कर रो पड़ता तो कभी खामोश हो जाता। कभी खुद को कोसता कि प्रकृति रूपी दानव ने अगर मारना ही था तो उसे क्यों बख्शा। क्यों उसे उस रात ताऊ के घर पर सोने का खयाल आया। उसे परिवार की चिता जलानी है, पर शवों को पास देखता यह बच्चा हर पल यही सोचता है कि उसका परिवार अभी सोया है। जब सब जागेंगे तो मां सहलाएगी, पिता प्यार देंगे और बहनें साथ खेलेंगी....।
क्या होगा हयात जैसे 250 परिवारों का?
भीमताल। सब ठीकठाक चल रहा था कल तक। हयात सुबह खेतों में जाता। पत्नी घर का कामकाज निपटाती। एक बेटा और दो बेटियां स्कूल निकल जाते। पहाड़ के जीवन में मौत के ऐसे मंजर का इन्हें जरा भी आभास न था। सोचते थे असुविधा में जीना इस देश के गांवों की नियति है और ये हरे-भरे पहाड़ ही हमारे साथी, मगर इस धारणा के पीछे पहाड़ के संहारक चेहरे ने हयात ही नहीं बल्कि ल्वाड़डोबा के हर परिवार की जमीन हिलाई है। यहां के 250 परिवार उन लोगों में हैं, जिन्होंने सत्ता के नाम पर राजनीति का छिछोरापन करने वाले नेताओं से न तो कभी कुछ मांगा, न कुछ कहा। इनके वोट सत्ता बनाते हैं और बदले में इन्हें मिला है क्रूर पहाड़। जिसने सिर्फ चंद घंटों में हंसते-खेलते परिवार को उजाड़कर अपनी विनाशलीला दिखाई तो हयात जैसे 250 परिवारों का दर्द भी।
ल्वाड़डोबा तक पहुंचने के लिए कम से कम 15 किलोमीटर पैदल चलना पड़ता है। अगर बरसात में रास्ते में कोई बाधा आ जाए तो फिर यह दूरी बढ़ती है। यहां की अर्थव्यवस्था का साधन खेती है। जिस हयात राम और उसकी जीवनसंगिनी समेत चार बेटियां प्रकृति के कोपभाजन का शिकार बनी, वह कल तक खेती से ही अपना परिवार चलाकर बच्चों को पढ़ाता था। हयात का बेटा विनोद जीआईसी डोबा में सातवीं का छात्र है। बड़ी बेटी नीलम कक्षा चार और कविता कक्षा एक में पढ़ती थी। हंसते परिवार का आशियाना चकडोबा-गौनियारो रोड के ठीक नीचे है। गांव के उत्तम सिंह मटियानी बताते हैं कि रात में सड़क के निचले हिस्से में भूस्खलन हुआ और जामुन का पेड़ हयात के मकान में गिरा।
उसके बाद मौत के मलबे ने कुछ ही पल में अपनी विनाशलीला दिखा डाली। नैनीताल जिले से 110 किमी की दूरी और भीमताल से 135 किमी दूर यह गांव कहने को तो सड़क से लगा है, लेकिन जो सड़क 2005 में गांव तक बनाई गई, उसमें सरकार का विभाग की पैसा डकार गया। आज तक इस रोड में डामर नहीं पड़ा है। हर वर्ष हल्की बारिश में सड़क टूट जाती है। संचार के मामले में गांव अब भी सदियों पीछे है। शिक्षा के नाम पर एकाध स्कूल खुले हैं और सेहत भगवान भरोसे है। इस बात का अंदाजा इसी से लगाया जा सकता है कि सूचना के बाद आपदा प्रबंधन तंत्र यहां पहुंचा ही नहीं। इस ताजा घटना के बाद गांव के पीछे की तरफ खड़ा हिंसक पहाड़ 250 परिवारों की जिंदगी पर निशाना साधे है और राज्य में सुरक्षा की बात करने वाले नेताओं पर ल्वाड़डोबा प्रश्नचिन्ह लगाता है।
डीएम समझे, जीना आसान नहीं
भीमताल। ल्वाड़डोबा के जीवन को जीना आसान नहीं। यह बात जिले के डीएम अरविंद सिंह ह्यांकी भी तब समझ पाए जब उन्हें गांव पहुंचने के लिए 28 किलोमीटर सफर पैदल तय करना पड़ा। बुधवार रात हुई बारिश से करायल के पास पेड़ गिर गया था। डीएम के वहां पहुंचने तक रास्ता खोल दिया गया था। उससे आगे करायल और खनस्यू के बीच सड़क का एक हिस्सा टूटा था। कुंडल और ल्वाड़डोबा के पास सड़क मलवा आने से बंद थी लिहाजा डीएम को पैदल जाना पड़ा।
सीएम समेत कई मंत्रियों ने दुख जताया
भीमताल। मुख्यमंत्री विजय बहुगुणा, कबीना मंत्री इंदिरा हृदयेश, सिंचाई मंत्री यशपाल आर्या, श्रम मंत्री हरीश चंद्र दुर्गापाल, अमृता रावत, विधायक दान सिंह भंडारी, बंशीधर भगत, सरिता आर्या और ब्लाक प्रमुख कमलेश कैड़ा ने हादसे पर दुख जताया है। इधर, ओखलकांडा के बीडीसी सदस्य राम सिंह कैड़ा, विजय बोरा, जिला पंचायत सदस्य यमुना बोरा, डूंगर ढोलगाई, जगत बोरा, चतुर बोरा, बच्ची रैक्वाल, युंका नेता नितेश बिष्ट आदि ने ने भी शोक संवेदना दी है।
15 मवेशी भी मरे
भीमताल। हयात राम के मकान के भूृृ-तल में उनकी गौशाला थी भूस्खलन से 12 बकरियां और 2 बछड़े और एक पालतू कुत्ता भी मलवे में दबकर मर गए जबकि दो बैल, एक गाय को घायल हालत में निकाला जा सका।
डीएम ने सौंपा 32 लाख 8 हजार का चैक
भीमताल। जिलाधिकारी अरविंद सिंह हयांकी ने देर शाम हयात के परिजनों को मुआवजे का चेक सौंपा। डीएम के हवाले से जिला सूचना अधिकारी दीपक जोशी ने बताया जिला प्रशासन की ओर से छह लोगों के मुआवजे के तौर पर प्रति व्यक्ति पांच-पांच लाख रुपये, दो लाख रुपये मकान का मुआवजा और आठ हजार रुपये बर्तन, अन्य सामग्री के नुकसान का मुआवजा दिया गया। हयात के परिवार में इकलौते बचे उसके पुत्र विनोद के नाम का चेक उसके ताऊ को सौंपा गया है।