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हल्द्वानी। सुशीला तिवारी अस्पताल संक्रामक बीमारियों का घर बन गया है। अस्पताल में साफ सफाई व्यवस्था चौपट है। अस्पताल की अधिकतर दीवारें और खिड़कियां पीक से लाल हो गई हैं। अस्पताल परिसर में सुरक्षा कर्मियों की कड़ी चौकसी के बावजूद तीमारदारों ने सीढ़ियों के कोनों को थूकदान और रैंप के कोनों में शौचालय बना दिया है। तीमारदार यहां दिन दहाड़े पेशाब करते हैं। अस्पताल के अधिकतर वार्डों में बने शौचालय तो इस्तेमाल करने लायक ही नहीं है। शौचालयों से उठने वाली दुर्गंध से वार्ड में बैठना तक दूभर हो रहा है। मेडिकल कालेज प्रशासन इससे बेखबर है। अस्पताल प्रबंधन का कहना है कि सफाई व्यवस्था ठीक है।
सुशीला तिवारी कुमाऊं का सबसे बड़ा रेफरल अस्पताल है। 700 बेड का यह अस्पताल कुमाऊं ही नहीं बल्कि उत्तरप्रदेश के सीमावर्ती जिलों के मरीजों से खचाखच रहता है। अस्पताल की सफाई व्यवस्था भगवान भरोसे है। अस्पताल की कैंटीन से लेकर वार्डों तक में गंदगी बजबजा रही है। भूतल से ऊपरी मंजिल के लिए चढ़ने वाली सीढ़ियां और रैंप तो चलने लायक ही नहीं है। सीढ़ियों का हर कोना थूक दान में बदल गया है। अस्पताल की अधिकतर दीवारें पीक से लाल हैं। वार्डों में प्रवेश करने वाले कारीडोर (लिफ्ट के पास) की जगह तो शराबखाने में बदल गई है। वार्डों में भर्ती मरीजों के तीमारदार रात में इसी कारीडोर में सोते हैं। कारीडोर के पास की खिड़कियों के शीशे टूटे हैं। कारीडोर के पास शराब पीने के बाद तीमारदार टूटी खिड़कियों से खाली बोतलों और गिलास बाहर फेंकते हैं। खिड़कियों की पटाल (झांपों) में अटकी शराब की कई खाली बोतलें अस्पताल प्रशासन की गिरानी की गवाह हैं। भूतल से वार्डों को जोड़ने वाली रैंप तो शौचालय में तब्दील हो गई है। रैंप के हर मोड़ को शौचालय बना दिया है। तीमारदार दिन दहाड़े यहां पेशाब करते हैं। अस्पताल के बीचों बीच कैंटीन भी बनी है। कैंटीन में भी काफी गंदगी है। अस्पताल में मरीजों का इलाज तो दूर उल्टा संक्रामक बीमारियां फैलने का खतरा बना रहता है। इस संबंध में अस्पताल के प्राचार्य डा. आरसी पुरोहित से वार्ता करने का प्रयास किया गया तो उनका मोबाइल फोन नहीं उठा, जबकि चिकित्सा अधीक्षक डा. एके तिवारी का फोन बंद था।
हल्द्वानी। सुशीला तिवारी अस्पताल संक्रामक बीमारियों का घर बन गया है। अस्पताल में साफ सफाई व्यवस्था चौपट है। अस्पताल की अधिकतर दीवारें और खिड़कियां पीक से लाल हो गई हैं। अस्पताल परिसर में सुरक्षा कर्मियों की कड़ी चौकसी के बावजूद तीमारदारों ने सीढ़ियों के कोनों को थूकदान और रैंप के कोनों में शौचालय बना दिया है। तीमारदार यहां दिन दहाड़े पेशाब करते हैं। अस्पताल के अधिकतर वार्डों में बने शौचालय तो इस्तेमाल करने लायक ही नहीं है। शौचालयों से उठने वाली दुर्गंध से वार्ड में बैठना तक दूभर हो रहा है। मेडिकल कालेज प्रशासन इससे बेखबर है। अस्पताल प्रबंधन का कहना है कि सफाई व्यवस्था ठीक है।
सुशीला तिवारी कुमाऊं का सबसे बड़ा रेफरल अस्पताल है। 700 बेड का यह अस्पताल कुमाऊं ही नहीं बल्कि उत्तरप्रदेश के सीमावर्ती जिलों के मरीजों से खचाखच रहता है। अस्पताल की सफाई व्यवस्था भगवान भरोसे है। अस्पताल की कैंटीन से लेकर वार्डों तक में गंदगी बजबजा रही है। भूतल से ऊपरी मंजिल के लिए चढ़ने वाली सीढ़ियां और रैंप तो चलने लायक ही नहीं है। सीढ़ियों का हर कोना थूक दान में बदल गया है। अस्पताल की अधिकतर दीवारें पीक से लाल हैं। वार्डों में प्रवेश करने वाले कारीडोर (लिफ्ट के पास) की जगह तो शराबखाने में बदल गई है। वार्डों में भर्ती मरीजों के तीमारदार रात में इसी कारीडोर में सोते हैं। कारीडोर के पास की खिड़कियों के शीशे टूटे हैं। कारीडोर के पास शराब पीने के बाद तीमारदार टूटी खिड़कियों से खाली बोतलों और गिलास बाहर फेंकते हैं। खिड़कियों की पटाल (झांपों) में अटकी शराब की कई खाली बोतलें अस्पताल प्रशासन की गिरानी की गवाह हैं। भूतल से वार्डों को जोड़ने वाली रैंप तो शौचालय में तब्दील हो गई है। रैंप के हर मोड़ को शौचालय बना दिया है। तीमारदार दिन दहाड़े यहां पेशाब करते हैं। अस्पताल के बीचों बीच कैंटीन भी बनी है। कैंटीन में भी काफी गंदगी है। अस्पताल में मरीजों का इलाज तो दूर उल्टा संक्रामक बीमारियां फैलने का खतरा बना रहता है। इस संबंध में अस्पताल के प्राचार्य डा. आरसी पुरोहित से वार्ता करने का प्रयास किया गया तो उनका मोबाइल फोन नहीं उठा, जबकि चिकित्सा अधीक्षक डा. एके तिवारी का फोन बंद था।