रामनगर। कार्बेट टाइगर रिजर्व (सीटीआर) के बाघ सुरक्षित नहीं हैं। इस पर वन्यजीव अंग तस्करों की नजर टिक गई है। शिकारियों की धरपकड़ से यह बात पुख्ता हो गई है। लंबे समय से रामनगर समेत पार्क के आसपास ठहरे तस्करों ने कितने बाघों का शिकार किया, उनकी सक्रियता कहां है, इस बात के खुलासा तो रिमांड के बाद ही हो पाएगा। इतना तय है कि तीन से अधिक तस्कर एक साथ नहीं रहते। तीन गिरफ्तार जरूर हुए लेकिन पांच फरार शिकारियों में दरिया भी शामिल था। वह आजकल मोहल्ला गूलरघट्टी की झोपड़पट्टी में ठहरा था। उसकी सक्रियता वाले स्थान की भी खोज की जा रही है। वैसे दरिया 27 नवंबर 2008 को वन्यजीवों के शिकार के प्रयास के दौरान कटनी मध्य प्रदेश में गिरफ्तार किया गया था। कटनी में हुई पूछताछ के दौरान उसने खूंखार तस्कर संसार चंद्र से भी अपने संबंध स्वीकारे थे। दरिया की पत्नी सुंदर समेत परिवार के अन्य सदस्यों को भी बाघ, तेंदुए की खाल, हड्डियों समेत पकड़ा जा चुका है।
दरिया का आपराधिक इतिहास लंबा है। उसके खिलाफ जिला पंचकूला हरियाणा के पिंजौर थाने में सबसे पहले 23 जुलाई 2000 को रिपोर्ट, गिरफ्तारी की कार्रवाई हुई। तब वह पत्नी सुंदर के साथ दो गुलदार की हड्डियों समेत पकड़ा गया था। दूसरी बार उसके खिलाफ 19 फरवरी 2005 को कर्तनिया घाट वन्यजीव प्रभाग बहराइच उत्तर प्रदेश में रिपोर्ट दर्ज हुई थी। वह 18 नवंबर 05 को अपने पुत्र, साथियों समेत पकड़ा गया था। तब उसके कब्जे से कड़के, बाघ की खाल, हड्डियां बरामद हुई थीं। दरिया के खिलाफ तीसरा अभियोग 17 दिसंबर 2006 को वाल्मीकि टाइगर रिजर्व पश्चिमी चंपारण बिहार में हुआ। तब वह गोवर्धन रेंज में दस लोगों के साथ पकड़ा गया था। अब रामनगर में पहली बार उसके खिलाफ रिपोर्ट दर्ज हुई है जो कि उसके खिलाफ चौथी रिपोर्ट मानी जा रही है।
कार्बेट नेशनल पार्क के बिजरानी जोन में पहले पर्यटकों को सहजता से दिखाई देेता था। उसके विशालकाय शरीर की वजह से लोग उसे खली नाम से पुकारते, पहचानते थे। वह अपनी फोटो भी बड़े चाव से खिंचाता था। पिछले कई माह से वह गाइडों, पर्यटकों समेत वनकर्मियों को भी खोजे नहीं मिल रहा है। अगर वह अपनी टैरिटरी बदलता तो कहीं न कहीं किसी रेंज में उसकी लोकेशन मिलती। सीटीआर में लगे स्वचालित कैमरों में भी उसकी फोटो नहीं मिली। खली का न दिखाई न देना भी संदेह की ओर इशारा करता है। इस बारे में जब उपनिदेशक सीके कविदयाल से पूछा गया तो उन्होेंने कहा कि इस बारे में वैसे तो कोई जानकारी नहीं है, यदि उसके गर्दन में रेडियो कॉलर चिप लगी होती तभी उसका कुछ पता लग पाता।
रामनगर। कार्बेट टाइगर रिजर्व (सीटीआर) के बाघ सुरक्षित नहीं हैं। इस पर वन्यजीव अंग तस्करों की नजर टिक गई है। शिकारियों की धरपकड़ से यह बात पुख्ता हो गई है। लंबे समय से रामनगर समेत पार्क के आसपास ठहरे तस्करों ने कितने बाघों का शिकार किया, उनकी सक्रियता कहां है, इस बात के खुलासा तो रिमांड के बाद ही हो पाएगा। इतना तय है कि तीन से अधिक तस्कर एक साथ नहीं रहते। तीन गिरफ्तार जरूर हुए लेकिन पांच फरार शिकारियों में दरिया भी शामिल था। वह आजकल मोहल्ला गूलरघट्टी की झोपड़पट्टी में ठहरा था। उसकी सक्रियता वाले स्थान की भी खोज की जा रही है। वैसे दरिया 27 नवंबर 2008 को वन्यजीवों के शिकार के प्रयास के दौरान कटनी मध्य प्रदेश में गिरफ्तार किया गया था। कटनी में हुई पूछताछ के दौरान उसने खूंखार तस्कर संसार चंद्र से भी अपने संबंध स्वीकारे थे। दरिया की पत्नी सुंदर समेत परिवार के अन्य सदस्यों को भी बाघ, तेंदुए की खाल, हड्डियों समेत पकड़ा जा चुका है।
दरिया का आपराधिक इतिहास लंबा है। उसके खिलाफ जिला पंचकूला हरियाणा के पिंजौर थाने में सबसे पहले 23 जुलाई 2000 को रिपोर्ट, गिरफ्तारी की कार्रवाई हुई। तब वह पत्नी सुंदर के साथ दो गुलदार की हड्डियों समेत पकड़ा गया था। दूसरी बार उसके खिलाफ 19 फरवरी 2005 को कर्तनिया घाट वन्यजीव प्रभाग बहराइच उत्तर प्रदेश में रिपोर्ट दर्ज हुई थी। वह 18 नवंबर 05 को अपने पुत्र, साथियों समेत पकड़ा गया था। तब उसके कब्जे से कड़के, बाघ की खाल, हड्डियां बरामद हुई थीं। दरिया के खिलाफ तीसरा अभियोग 17 दिसंबर 2006 को वाल्मीकि टाइगर रिजर्व पश्चिमी चंपारण बिहार में हुआ। तब वह गोवर्धन रेंज में दस लोगों के साथ पकड़ा गया था। अब रामनगर में पहली बार उसके खिलाफ रिपोर्ट दर्ज हुई है जो कि उसके खिलाफ चौथी रिपोर्ट मानी जा रही है।
कार्बेट नेशनल पार्क के बिजरानी जोन में पहले पर्यटकों को सहजता से दिखाई देेता था। उसके विशालकाय शरीर की वजह से लोग उसे खली नाम से पुकारते, पहचानते थे। वह अपनी फोटो भी बड़े चाव से खिंचाता था। पिछले कई माह से वह गाइडों, पर्यटकों समेत वनकर्मियों को भी खोजे नहीं मिल रहा है। अगर वह अपनी टैरिटरी बदलता तो कहीं न कहीं किसी रेंज में उसकी लोकेशन मिलती। सीटीआर में लगे स्वचालित कैमरों में भी उसकी फोटो नहीं मिली। खली का न दिखाई न देना भी संदेह की ओर इशारा करता है। इस बारे में जब उपनिदेशक सीके कविदयाल से पूछा गया तो उन्होेंने कहा कि इस बारे में वैसे तो कोई जानकारी नहीं है, यदि उसके गर्दन में रेडियो कॉलर चिप लगी होती तभी उसका कुछ पता लग पाता।