रुड़की। रुड़की को निगम बनवाने का श्रेय लेने की होड़ में विधायक प्रदीप बत्रा अपनी पीठ ठोक रहे हैं। हैरत की बात यह है कि उन्हीं की अगुवाई वाले पालिका बोर्ड ने चार नवंबर 2011 को रुड़की को नगर निगम बनाने का विरोध किया था। प्रस्ताव में साफ लिखा है कि रुड़की की जनता नगर निगम बनाने के पक्ष में नहीं है। अलबत्ता, प्रस्ताव में जिला बनाने की हिमायत जरूर की गई थी।
पिछले वर्ष एक दिसंबर को हरिद्वार में हुई सीएम की समीक्षा बैठक में रुड़की नगर पालिका को नगर निगम बनाने की घोषणा की गई। घोषणा के बाद प्रदेश सरकार ने नगर निगम बनाने की दिशा में कदम नहीं बढ़ाया। 26 जनवरी 2013 को फिर घोषणा कर दी। नगर विधायक और पालिकाध्यक्ष प्रदीप बत्रा इसे अपनी सबसे उपलब्धि गिना रहे हैं। लेकिन, दो साल पहले तक प्रदीप बत्रा और 18 सभासद नगर निगम बनाने के विरोधी थे। चार नवंबर 2011 को बुलाई पालिका बोर्ड बैठक में 576 नंबर प्रस्ताव लगाया गया। प्रस्ताव साफ लिखा है कि बैठक में सर्वसम्मति से निर्णय लिया गया कि रुड़की जिला बनाया जाना न्याय संगत होगा ना कि नगर निगम। प्रस्ताव में लिखा है कि हरिद्वार को पूर्व में ही नगर निगम घोषित किया जा चुका है, जबकि हरिद्वार से मात्र 30 किमी की दूरी पर रुड़की को नगर निगम बनाया जाना न्याय संगत नहीं होगा। क्योंकि हमारी जानकारी में एक ही जिले में दो नगर निगम नहीं हो सकते।
वर्ष 2001 की जनगणना की संख्या आधार पर भी रुड़की की आबादी नगर निगम बनाए जाने की शर्तों को पूरा नहीं करती है। रुड़की के आसपास के गांवों को नगर निगम में मिलाना सही नहीं और रुड़की शहर की जनता के हित में नहीं होगा। पालिका के निर्वाचित जनप्रतिनिधि अध्यक्ष व सभासद है, जिनका सीधा संवाद जनता से है। जनता की जन भावनाओं को ध्यान में रखते हुए नगर निगम बनाए जाने का विरोध करता है।
....तो इसलिए किया था विरोध
रुड़की। अब सवाल उठता है कि आखिर दो साल पहले तक प्रदीप बत्रा नगर निगम के विरोधी क्यों थे। कहीं उन्हें अपनी अध्यक्ष की कुर्सी जाने का खतरा तो नहीं था। मालूम हो कि प्रदीप बत्रा 2012 में हुए विधानसभा चुनाव में विधायक चुने गए। उससे पहले तक वह केवल पालिकाध्यक्ष थे। नगर निगम की घोषणा होने पर बोर्ड भंग होता। बोर्ड भंग होने से उनकी कुर्सी चली जाती। इसी कुर्सी को बचाने के लिए उन्हें इस तरह का प्रस्ताव पास करना पड़ा। दो साल पहले जिन गांवों को रुड़की में मिलाने का यह कहकर विरोध किया कि यह शहर की जनता के हित नहीं होगा, अब कैसे हित में हो जाएगा।
यह सही है कि उस समय नगर निगम बनाने का विरोध किया था। तब नगर पालिका बोर्ड के कार्यकाल का काफी समय बचा हुआ था, जनता से किए वायदे पूरे नहीं हुए थे, अब कार्यकाल खत्म हो चुका है, इसलिए अब नगर निगम का समर्थन करते हैं।
-राजकुमार दुखी, सभासद
मैंने अभी भी नगर निगम बनाने का विरोधी हूं। जब अभी ही सफाई व्यवस्था सही नहीं हो पा रही तो दूसरे क्षेत्र मिलने के बाद क्या स्थिति होगी। विकास कार्य भी प्रभावित होंगे।
-अनूप गुप्ता, सभासद
रुड़की। रुड़की को निगम बनवाने का श्रेय लेने की होड़ में विधायक प्रदीप बत्रा अपनी पीठ ठोक रहे हैं। हैरत की बात यह है कि उन्हीं की अगुवाई वाले पालिका बोर्ड ने चार नवंबर 2011 को रुड़की को नगर निगम बनाने का विरोध किया था। प्रस्ताव में साफ लिखा है कि रुड़की की जनता नगर निगम बनाने के पक्ष में नहीं है। अलबत्ता, प्रस्ताव में जिला बनाने की हिमायत जरूर की गई थी।
पिछले वर्ष एक दिसंबर को हरिद्वार में हुई सीएम की समीक्षा बैठक में रुड़की नगर पालिका को नगर निगम बनाने की घोषणा की गई। घोषणा के बाद प्रदेश सरकार ने नगर निगम बनाने की दिशा में कदम नहीं बढ़ाया। 26 जनवरी 2013 को फिर घोषणा कर दी। नगर विधायक और पालिकाध्यक्ष प्रदीप बत्रा इसे अपनी सबसे उपलब्धि गिना रहे हैं। लेकिन, दो साल पहले तक प्रदीप बत्रा और 18 सभासद नगर निगम बनाने के विरोधी थे। चार नवंबर 2011 को बुलाई पालिका बोर्ड बैठक में 576 नंबर प्रस्ताव लगाया गया। प्रस्ताव साफ लिखा है कि बैठक में सर्वसम्मति से निर्णय लिया गया कि रुड़की जिला बनाया जाना न्याय संगत होगा ना कि नगर निगम। प्रस्ताव में लिखा है कि हरिद्वार को पूर्व में ही नगर निगम घोषित किया जा चुका है, जबकि हरिद्वार से मात्र 30 किमी की दूरी पर रुड़की को नगर निगम बनाया जाना न्याय संगत नहीं होगा। क्योंकि हमारी जानकारी में एक ही जिले में दो नगर निगम नहीं हो सकते।
वर्ष 2001 की जनगणना की संख्या आधार पर भी रुड़की की आबादी नगर निगम बनाए जाने की शर्तों को पूरा नहीं करती है। रुड़की के आसपास के गांवों को नगर निगम में मिलाना सही नहीं और रुड़की शहर की जनता के हित में नहीं होगा। पालिका के निर्वाचित जनप्रतिनिधि अध्यक्ष व सभासद है, जिनका सीधा संवाद जनता से है। जनता की जन भावनाओं को ध्यान में रखते हुए नगर निगम बनाए जाने का विरोध करता है।
....तो इसलिए किया था विरोध
रुड़की। अब सवाल उठता है कि आखिर दो साल पहले तक प्रदीप बत्रा नगर निगम के विरोधी क्यों थे। कहीं उन्हें अपनी अध्यक्ष की कुर्सी जाने का खतरा तो नहीं था। मालूम हो कि प्रदीप बत्रा 2012 में हुए विधानसभा चुनाव में विधायक चुने गए। उससे पहले तक वह केवल पालिकाध्यक्ष थे। नगर निगम की घोषणा होने पर बोर्ड भंग होता। बोर्ड भंग होने से उनकी कुर्सी चली जाती। इसी कुर्सी को बचाने के लिए उन्हें इस तरह का प्रस्ताव पास करना पड़ा। दो साल पहले जिन गांवों को रुड़की में मिलाने का यह कहकर विरोध किया कि यह शहर की जनता के हित नहीं होगा, अब कैसे हित में हो जाएगा।
यह सही है कि उस समय नगर निगम बनाने का विरोध किया था। तब नगर पालिका बोर्ड के कार्यकाल का काफी समय बचा हुआ था, जनता से किए वायदे पूरे नहीं हुए थे, अब कार्यकाल खत्म हो चुका है, इसलिए अब नगर निगम का समर्थन करते हैं।
-राजकुमार दुखी, सभासद
मैंने अभी भी नगर निगम बनाने का विरोधी हूं। जब अभी ही सफाई व्यवस्था सही नहीं हो पा रही तो दूसरे क्षेत्र मिलने के बाद क्या स्थिति होगी। विकास कार्य भी प्रभावित होंगे।
-अनूप गुप्ता, सभासद