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हरिद्वार। ग्राम भूपतवाला कलां स्थित ब्रह्मलीन महंत भगवान दास रामायणी की लगभग सौ करोड़ रुपये की 46 बीघा भूमि को राजस्व परिषद द्वारा नगर निगम के नाम दर्ज किए जाने के आदेश हैं। इसके बावजूद नगर निगम प्रशासन ने इस संपत्ति को अभी तक अपने कब्जे में नहीं लिया है। आखिर सौ करोड़ की संपत्ति को कब्जे में न लेकर अधिकारी किसका हित साध रहे हैं, यह सवाल हर किसी की जुबान पर है।
संपत्ति पर दावेदारी ठोकने वाले महंत जानकीदास की याचिका को नैनीताल हाईकोर्ट के न्यायमूर्ति तरुण अग्रवाल की एकलपीठ ने 24 नवंबर 2011 को निरस्त कर उत्तर प्रदेश राजस्व परिषद इलाहाबाद के 4 फरवरी 1989 के आदेश को बरकरार रखा था। अधिकारी हाईकोर्ट के आदेश को एक साल तक दबाकर बैठे रहे। इस अवधि में इस भूखंड के एक भाग में देहरादून के एक बड़े बिल्डर ने करोड़ों रुपये मूल्य की बहुमंजिली इमारत खड़ी कर ली है। ऐसा लगता है कि प्रशासन को बिल्डिंग बनने का ही इंतजार था। इसके बनने के बाद 26 नवंबर 2012 को जिलाधिकारी के आदेश पर ग्राम भूपतवाला कलां की संपत्ति को तहसील प्रशासन ने नगर निगम में दर्ज कर लिया है, लेकिन दो महीने बीतने के बावजूद नगर निगम के अधिकारी संपत्ति को कब्जे में न लेकर बिल्डर को पूरा मौका देने में लगे हैं।
1980 से चल रहा था संपत्ति का विवाद
इस संपत्ति पर सन् 1980 में भगवान दास रामायणी के ब्रह्मलीन होने के बाद विवाद हुआ। महंत जानकी दास ने अपने को भगवान दास रामायणी का चेला बताते हुए कुछ लोगों के साथ मिलकर कागजों में राम जानकी ट्रस्ट भूपतवाला बनाकर संपत्ति को अपने नाम दर्ज कराने की प्रक्रिया शुरू की। संपत्ति राजस्व भूमि दर्ज होने के कारण दावेदारी का मामला उत्तर प्रदेश के समय एसडीएम कोर्ट, डीएम कोर्ट, कमिश्नर कोर्ट से लेकर उत्तर प्रदेश राजस्व परिषद इलाहाबाद तक चला, लेकिन वह अपनी दावेदारी सिद्ध नहीं कर सके। राजस्व परिषद ने 1989 में उनकी दावेदारी खारिज कर दी थी। इसके बाद उन्होंने होईकोर्ट इलाहाबाद से स्टे लिया था। उत्तराखंड बनने के बाद मामला नैनीताल हाईकोर्ट में हस्तांतरित होकर आया था। हाईकोर्ट ने उत्तर प्रदेश राजस्व परिषद के निर्णय को सही मानते हुए महंत जानकीदास की याचिका निरस्त कर दी थी। इसके बाद संपत्ति को नगर निगम में निहित किया गया।
पूरी रिपोर्ट मांगी है
संपत्ति को लेकर टीएस और नगर अभियंता को निरीक्षण कर पूरे विवरण के साथ रिपोर्र्ट देने को कहा गया है। नगर निगम के नाम दर्ज संपत्ति पर कुछ निर्माण भी हो रहा है। उसे भी देखने के लिए कहा गया है। संपत्ति के संबंध में सभी पत्रावलियां तलब की गई हैं। इसके बाद नियमानुसार कब्जा लेने की कार्रवाई की जाएगी।
जीवन सिंह नागन्याल, सिटी मजिस्ट्रेट/मुख्य नगर अधिकारी नगर निगम।
हरिद्वार। ग्राम भूपतवाला कलां स्थित ब्रह्मलीन महंत भगवान दास रामायणी की लगभग सौ करोड़ रुपये की 46 बीघा भूमि को राजस्व परिषद द्वारा नगर निगम के नाम दर्ज किए जाने के आदेश हैं। इसके बावजूद नगर निगम प्रशासन ने इस संपत्ति को अभी तक अपने कब्जे में नहीं लिया है। आखिर सौ करोड़ की संपत्ति को कब्जे में न लेकर अधिकारी किसका हित साध रहे हैं, यह सवाल हर किसी की जुबान पर है।
संपत्ति पर दावेदारी ठोकने वाले महंत जानकीदास की याचिका को नैनीताल हाईकोर्ट के न्यायमूर्ति तरुण अग्रवाल की एकलपीठ ने 24 नवंबर 2011 को निरस्त कर उत्तर प्रदेश राजस्व परिषद इलाहाबाद के 4 फरवरी 1989 के आदेश को बरकरार रखा था। अधिकारी हाईकोर्ट के आदेश को एक साल तक दबाकर बैठे रहे। इस अवधि में इस भूखंड के एक भाग में देहरादून के एक बड़े बिल्डर ने करोड़ों रुपये मूल्य की बहुमंजिली इमारत खड़ी कर ली है। ऐसा लगता है कि प्रशासन को बिल्डिंग बनने का ही इंतजार था। इसके बनने के बाद 26 नवंबर 2012 को जिलाधिकारी के आदेश पर ग्राम भूपतवाला कलां की संपत्ति को तहसील प्रशासन ने नगर निगम में दर्ज कर लिया है, लेकिन दो महीने बीतने के बावजूद नगर निगम के अधिकारी संपत्ति को कब्जे में न लेकर बिल्डर को पूरा मौका देने में लगे हैं।
1980 से चल रहा था संपत्ति का विवाद
इस संपत्ति पर सन् 1980 में भगवान दास रामायणी के ब्रह्मलीन होने के बाद विवाद हुआ। महंत जानकी दास ने अपने को भगवान दास रामायणी का चेला बताते हुए कुछ लोगों के साथ मिलकर कागजों में राम जानकी ट्रस्ट भूपतवाला बनाकर संपत्ति को अपने नाम दर्ज कराने की प्रक्रिया शुरू की। संपत्ति राजस्व भूमि दर्ज होने के कारण दावेदारी का मामला उत्तर प्रदेश के समय एसडीएम कोर्ट, डीएम कोर्ट, कमिश्नर कोर्ट से लेकर उत्तर प्रदेश राजस्व परिषद इलाहाबाद तक चला, लेकिन वह अपनी दावेदारी सिद्ध नहीं कर सके। राजस्व परिषद ने 1989 में उनकी दावेदारी खारिज कर दी थी। इसके बाद उन्होंने होईकोर्ट इलाहाबाद से स्टे लिया था। उत्तराखंड बनने के बाद मामला नैनीताल हाईकोर्ट में हस्तांतरित होकर आया था। हाईकोर्ट ने उत्तर प्रदेश राजस्व परिषद के निर्णय को सही मानते हुए महंत जानकीदास की याचिका निरस्त कर दी थी। इसके बाद संपत्ति को नगर निगम में निहित किया गया।
पूरी रिपोर्ट मांगी है
संपत्ति को लेकर टीएस और नगर अभियंता को निरीक्षण कर पूरे विवरण के साथ रिपोर्र्ट देने को कहा गया है। नगर निगम के नाम दर्ज संपत्ति पर कुछ निर्माण भी हो रहा है। उसे भी देखने के लिए कहा गया है। संपत्ति के संबंध में सभी पत्रावलियां तलब की गई हैं। इसके बाद नियमानुसार कब्जा लेने की कार्रवाई की जाएगी।
जीवन सिंह नागन्याल, सिटी मजिस्ट्रेट/मुख्य नगर अधिकारी नगर निगम।