हरिद्वार। तमाम उठापटक के बावजूद यदि राधे मां ने 10 फरवरी का मुख्य शाही स्नान न किया तो जूना अखाड़े को 20 करोड़ रुपये की चपत लगेगी। मां के समर्थकों ने भी अखाड़े को चेता दिया है कि अब निर्णय लेने का आखिरी समय आ गया है। जबकि जूना पीठाधीश्वर के कड़े विरोध के बावजूद अखाड़े के कुछ संत मां को पुन: प्रयाग लाने में जुटे हुए हैं।
विगत वर्ष 31 जुलाई की रात महामंडलेश्वर बनी राधे मां वस्तुत: जूना अखाड़े के गले की फांस बन गई हैं। जिन संतों की पहल पर उन्हें रातों-रात गद्दीनशीन किया था। उन्होंने ही हरिद्वार स्थित जूना अखाड़े के प्राचीन मायादेवी एवं भैरव मंदिर के भव्य निर्माण के लिए राधे मां से 20 करोड़ रुपये की राशि खर्च करने का लिखित आश्वासन लिया था। उन संतों में से कुछ संत उस जांच समिति में भी शामिल हैं, जिसके एक संत ने अभी-अभी अपनी रिपोर्ट सौंपी है। इन संतों का पूरा प्रयास है कि मुख्य शाही स्नान में राधे मां को प्रयाग लाया जाए। लेकिन, अखाड़ा सूत्रों के अनुसार जूना पीठाधीश्वर स्वामी अवधेशानंद गिरि इसका कड़ा विरोध कर रहे हैं। उन्होंने अखाड़े के सभापति और महासचिव दोनों को स्पष्ट कर दिया है कि यदि राधे मां को प्रयाग लाया गया तो संत जगत और आम जनमानस पर इसका बुरा प्रभाव पड़ेगा। पीठाधीश्वर के कड़े विरोध को देखते हुए अखाड़े के सभापति उमाशंकर गिरि, विद्यानंद सरस्वती, हरि गिरि, प्रेम पुरी, प्रेम गिरि और रमता पंचों ने इस प्रकरण को प्रयाग कुंभ तक टालने का फैसला कर लिया है। 10 फरवरी को होने वाले दूसरे शाही स्नान से पहले नए रमता पंच अखाड़े की बागडोर संभाल लेंगे और 51 सदस्यीय कार्यकारिणी भी नए सिरे से बन जाएगी। अत: राधे मां के भविष्य को उन चार मढ़ियों पर छोड़ दिया गया है जो नई कार्यकारिणी बनाने वाली हैं।