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हरिद्वार। गण और तंत्र से मिलकर भले ही एक शब्द गणतंत्र बनता है। लेकिन, ऐसे कई उदाहरण हैं जहां तंत्र, गण के साथ मिलकर नहीं चलना चाहता। तंत्र, गण को गौण मानकर चलता है तो गण के बीच से ही ऐसे लोग सामने आते हैं जो तंत्र के साथ भिड़ जाते हैं। समाज के लिए आम आदमी की सिस्टम से लड़ाई को ‘अमर उजाला’ सलाम करता है। इस बार गणतंत्र दिवस पर हम गण के लिए तंत्र से संघर्ष करने वाले लोगों को पाठकों से रू-ब-रू करा रहे हैं।
1 . गंगा, पर्यावरण के लिए तंत्र से टक्कर
हरिद्वार। मातृ सदन के परमाध्यक्ष स्वामी शिवानंद सरस्वती महाराज, गंगा और पर्यावरण की रक्षा के लिए पूरे सिस्टम से टक्कर ले रहे हैं। स्वामी शिवानंद की तरह ही उनके शिष्य भी पर्यावरण की रक्षा के लिए लड़ाई लड़ रहे हैं। मातृ सदन संघर्ष का प्रतीक बनकर उभरा है। गंगा में अवैध खनन पर पूरी सरकार और सिस्टम एक हो गया तो भी स्वामी शिवानंद झुके नहीं। पहले शिष्य स्वामी निगमानंद ने बलिदान दिया और अब स्वामी पूर्णानंद ने अनशन के माध्यम से सत्ता की चूलें हिला दी। स्वामी शिवानंद सरस्वती ध्वनि प्रदूषण के खिलाफ और फलदार पेड़ों की रक्षा के लिए भी संघर्ष कर रहे हैं।
2 . उजागर किया दोहरा वेतन मामला
हरिद्वार। कनखल में रहने वाले प्राइमरी स्कूल के शिक्षक सुधांशु मोहन द्विवेदी ने दोहरा वेतन लेकर शिक्षा विभाग को लाखों रुपये का चूना लगा रहे शिक्षकों का भंडाफोड़ किया था। इस बाबत सूचना के अधिकार के तहत उन्होंने सूचना मांगी तो विभागीय अधिकारी-कर्मचारियों ने आंखें तरेरते हुए अंजाम भुगतने की धमकियां तक उन्हीं दी। लेकिन, उन्होंने हिम्मत नहीं हारी। 62 शिक्षकों की ओर से दोहरे वेतन के रुप में लिया गया 35 लाख रुपये वापस हुआ। उनका कहना है कि सूचना आयोग ने जांच समिति का गठन करके जांच कराने का आदेश दिया जो आज तक नहीं हो सका। आयोग ने मामले की जांच सीबीसीआईडी से कराने के आदेश दिए तो वह भी नहीं कराई गई।
3 . सूचना के अधिकार से भ्रष्ट तंत्र से लड़ाई
हरिद्वार। जनहित में भ्रष्ट तंत्र से सूचना के अधिकार के माध्यम से लड़ने वाले रमेश चंद्र शर्मा संघर्ष के प्रतीक बन गए हैं। रुड़की में राष्ट्रीय ग्रामीण स्वास्थ्य मिशन में दवाई घोटाले का पर्दाफाश किया। इसके अलावा कुंभ घोटाले की फाइलें भी बाहर निकलवाने के लिए लोकायुक्त में संघर्ष जारी है। इतना ही नहीं घरेलू गैस की कालाबाजारी और सार्वजनिक वितरण प्रणाली के भ्रष्टाचार को रोकने के लिए भी आरटीआई के माध्यम से रमेश चंद्र शर्मा लड़ाई लड़ रहे हैं। इनके करीब दो दर्जन जनहित के मामलों की सुनवाई इस समय लोकायुक्त अदालत में चल रही है। इसके अलावा राज्य सूचना आयोग में भी कई महत्वपूर्ण मामलों का सच उजागर करने के लिए संघर्षरत हैं।
4 . 2500 शिक्षकों को मिला लेजर का फायदा
हरिद्वार। 12 सालों से शिक्षकों के जीपीएफ और इन्कम टैक्स के लेजर पूरे नहीं भरे जा रहे थे। जिसके चलते शिक्षकों को रिटायरमेंट के बाद पेंशन और जीपीएफ भुगतान के लिए तरसना पड़ता था। प्राथमिक विद्यालय के एक शिक्षक ललित नारायण ने वर्ष 2009 में इसके खिलाफ लड़ाई शुरू की। सूचनाएं मांगनी शुरू की और साल भर तक अधिकारियों के चक्कर काटे। कई बार सूचना आयोग में अपीलों की सुनवाई हुई। कार्यालयों के चक्कर काटने, फाइलें तैयार करने और किराए में बहुत सारा पैसा खर्च किया गया। अधिकारी और कर्मियों की आंखों की किरकरी भी बनें। लेकिन, लेजर भरे जाने का काम एक साल बाद शुरू हो गया। जिससे जिले के करीब 2500 शिक्षकों को फायदा मिला।
5 . श्रमिकों के लिए सिस्टम से लड़ाई
हरिद्वार। पूंजीवादी व्यवस्था में श्रमिकों का हक दिलाने के लिए श्रमिक नेता महेंद्र जखमोला ने लंबी लड़ाई लड़ी है। असंगठित क्षेत्र के मजदूर हो या फिर भेल के संविदा श्रमिक या फिर ईंट-भट्टे के मजदूरों की व्यथा। हक की लड़ाई सड़क से कोर्ट तक लड़ी। दिव्य फार्मेसी के 150 मजदूरों को जबरदस्ती निकालने की लड़ाई धरना-प्रदर्शन से लेकर हाईकोर्ट तक चली। अब तक भी सुप्रीम कोर्ट में जिरह जारी है। भेल के 63 संविदाकर्मियों को महेंद्र जखमोला हक दिलाकर ही माने। हर मजदूर को 2.17 लाख रुपये मिले। इसके अलावा सिडकुल की कंपनियों के शोषण और ईंट-भट्टा मजदूरों की लड़ाई भी जारी है। सीटू के राष्ट्रीय काउंसिल सदस्य महेंद्र जखमोला हरिद्वार में शोषण के खिलाफ संघर्ष के प्रतीक हैं।
हरिद्वार। गण और तंत्र से मिलकर भले ही एक शब्द गणतंत्र बनता है। लेकिन, ऐसे कई उदाहरण हैं जहां तंत्र, गण के साथ मिलकर नहीं चलना चाहता। तंत्र, गण को गौण मानकर चलता है तो गण के बीच से ही ऐसे लोग सामने आते हैं जो तंत्र के साथ भिड़ जाते हैं। समाज के लिए आम आदमी की सिस्टम से लड़ाई को ‘अमर उजाला’ सलाम करता है। इस बार गणतंत्र दिवस पर हम गण के लिए तंत्र से संघर्ष करने वाले लोगों को पाठकों से रू-ब-रू करा रहे हैं।
1 . गंगा, पर्यावरण के लिए तंत्र से टक्कर
हरिद्वार। मातृ सदन के परमाध्यक्ष स्वामी शिवानंद सरस्वती महाराज, गंगा और पर्यावरण की रक्षा के लिए पूरे सिस्टम से टक्कर ले रहे हैं। स्वामी शिवानंद की तरह ही उनके शिष्य भी पर्यावरण की रक्षा के लिए लड़ाई लड़ रहे हैं। मातृ सदन संघर्ष का प्रतीक बनकर उभरा है। गंगा में अवैध खनन पर पूरी सरकार और सिस्टम एक हो गया तो भी स्वामी शिवानंद झुके नहीं। पहले शिष्य स्वामी निगमानंद ने बलिदान दिया और अब स्वामी पूर्णानंद ने अनशन के माध्यम से सत्ता की चूलें हिला दी। स्वामी शिवानंद सरस्वती ध्वनि प्रदूषण के खिलाफ और फलदार पेड़ों की रक्षा के लिए भी संघर्ष कर रहे हैं।
2 . उजागर किया दोहरा वेतन मामला
हरिद्वार। कनखल में रहने वाले प्राइमरी स्कूल के शिक्षक सुधांशु मोहन द्विवेदी ने दोहरा वेतन लेकर शिक्षा विभाग को लाखों रुपये का चूना लगा रहे शिक्षकों का भंडाफोड़ किया था। इस बाबत सूचना के अधिकार के तहत उन्होंने सूचना मांगी तो विभागीय अधिकारी-कर्मचारियों ने आंखें तरेरते हुए अंजाम भुगतने की धमकियां तक उन्हीं दी। लेकिन, उन्होंने हिम्मत नहीं हारी। 62 शिक्षकों की ओर से दोहरे वेतन के रुप में लिया गया 35 लाख रुपये वापस हुआ। उनका कहना है कि सूचना आयोग ने जांच समिति का गठन करके जांच कराने का आदेश दिया जो आज तक नहीं हो सका। आयोग ने मामले की जांच सीबीसीआईडी से कराने के आदेश दिए तो वह भी नहीं कराई गई।
3 . सूचना के अधिकार से भ्रष्ट तंत्र से लड़ाई
हरिद्वार। जनहित में भ्रष्ट तंत्र से सूचना के अधिकार के माध्यम से लड़ने वाले रमेश चंद्र शर्मा संघर्ष के प्रतीक बन गए हैं। रुड़की में राष्ट्रीय ग्रामीण स्वास्थ्य मिशन में दवाई घोटाले का पर्दाफाश किया। इसके अलावा कुंभ घोटाले की फाइलें भी बाहर निकलवाने के लिए लोकायुक्त में संघर्ष जारी है। इतना ही नहीं घरेलू गैस की कालाबाजारी और सार्वजनिक वितरण प्रणाली के भ्रष्टाचार को रोकने के लिए भी आरटीआई के माध्यम से रमेश चंद्र शर्मा लड़ाई लड़ रहे हैं। इनके करीब दो दर्जन जनहित के मामलों की सुनवाई इस समय लोकायुक्त अदालत में चल रही है। इसके अलावा राज्य सूचना आयोग में भी कई महत्वपूर्ण मामलों का सच उजागर करने के लिए संघर्षरत हैं।
4 . 2500 शिक्षकों को मिला लेजर का फायदा
हरिद्वार। 12 सालों से शिक्षकों के जीपीएफ और इन्कम टैक्स के लेजर पूरे नहीं भरे जा रहे थे। जिसके चलते शिक्षकों को रिटायरमेंट के बाद पेंशन और जीपीएफ भुगतान के लिए तरसना पड़ता था। प्राथमिक विद्यालय के एक शिक्षक ललित नारायण ने वर्ष 2009 में इसके खिलाफ लड़ाई शुरू की। सूचनाएं मांगनी शुरू की और साल भर तक अधिकारियों के चक्कर काटे। कई बार सूचना आयोग में अपीलों की सुनवाई हुई। कार्यालयों के चक्कर काटने, फाइलें तैयार करने और किराए में बहुत सारा पैसा खर्च किया गया। अधिकारी और कर्मियों की आंखों की किरकरी भी बनें। लेकिन, लेजर भरे जाने का काम एक साल बाद शुरू हो गया। जिससे जिले के करीब 2500 शिक्षकों को फायदा मिला।
5 . श्रमिकों के लिए सिस्टम से लड़ाई
हरिद्वार। पूंजीवादी व्यवस्था में श्रमिकों का हक दिलाने के लिए श्रमिक नेता महेंद्र जखमोला ने लंबी लड़ाई लड़ी है। असंगठित क्षेत्र के मजदूर हो या फिर भेल के संविदा श्रमिक या फिर ईंट-भट्टे के मजदूरों की व्यथा। हक की लड़ाई सड़क से कोर्ट तक लड़ी। दिव्य फार्मेसी के 150 मजदूरों को जबरदस्ती निकालने की लड़ाई धरना-प्रदर्शन से लेकर हाईकोर्ट तक चली। अब तक भी सुप्रीम कोर्ट में जिरह जारी है। भेल के 63 संविदाकर्मियों को महेंद्र जखमोला हक दिलाकर ही माने। हर मजदूर को 2.17 लाख रुपये मिले। इसके अलावा सिडकुल की कंपनियों के शोषण और ईंट-भट्टा मजदूरों की लड़ाई भी जारी है। सीटू के राष्ट्रीय काउंसिल सदस्य महेंद्र जखमोला हरिद्वार में शोषण के खिलाफ संघर्ष के प्रतीक हैं।