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बागेश्वर। बनलेख के अक्सौड़ा निवासी 92 वर्षीय स्वतंत्रता संग्राम सेनानी राम दत्त जोशी को आज भी स्वतंत्रता आंदोलन के अनुभव रोमांचित कर देते हैं। श्री जोशी 15 साल की आयु में ही आंदोलन में सक्रिय हो गए थे और जेल चल गए थे। उनका कहना है कि लड़ाई का वह दौर स्वतंत्रता प्राप्ति के जज्बे से भरा हुआ था और स्वायत्ता के लिए मर मिटने को लोग तैयार थे।
श्री जोशी के दिलों दिमाग में आज भी आंदोलन के अनुभव तरोताजा हैं। आंदोलन के अनुभव सुनाते हुए उन्होंने बताया कि 1942 में भारत छोड़ो आंदोलन के दौरान वह पहली बार अल्मोड़ा जेल गए। तब उन्हें खाने के लिए चार रोटियां मिलती थीं। रोेटियां कच्ची होने के कारण हाथ टूटकर नीचे गिर जाती थी। छह दिन हवालात में रहने के बाद उन्हें बरेली जेल भेज दिया गया। उस वक्त श्री जोशी की उम्र मात्र 15 साल थी। नाबालिग होने के कारण उन्हें बच्चा बैरक में रखा गया। जेल में खाना खाने के लिए घंटी लगती थी जो पहले आता था उसे रोटी मिलती थी जोेे बाद में आता उसे भूखा ही रहना पड़ता था। खाने में उन्हें काफी दिन तक चावल (भात) नहीं मिला तो उन्होंने जेल में भूख हड़ताल कर दी। दो दिन बाद चावल दिया गया। श्री जोशी ने बताया कि रात को उनके पैरों में बेड़ी लगाई जाती थी जबकि दिन में बेड़ी हटाकर हाथों में हथकड़ी लगा दी जाती थी। जेल में ही उनका स्वास्थ्य खराब हो गया। उन्हें काफी दिनों तक डाक्टर को नहीं दिखाया गया। श्री जोशी का इलाज करने की मांग को लेकर जेल में 2700 कैदियों ने लोहे को बजाकर जेल प्रशासन को आगाह किया। इसके बाद डीएम आए और उन्हें अस्पताल में भर्ती किया गया। उस समय वहां जेलर गुरू प्रसाद थे। जो स्वभाव से काफी व्यवहारिक थे। श्री जोशी ने बताया कि उन्होंने गांधी चरखे से जेल में ही कताई बुनाई भी सीखी।