अल्मोड़ा। जंगली जानवरों से खेती को बचाने के लिए ग्राम पंचायत शैल के पपसैली निवासी युवा रविंद्र तिवारी (बबलू) ने लॉकडाउन में पाली बिनाइल क्लोराइड (पीबीसी) प्लास्टिक के पाइप से बंदूक बनाई है। यह बंदूक जोर से की आवाज करती है। आवाज सुनकर बंदर और सुअर भाग जाते हैं। किसानों के लिए काफी कम लागत में यह बंदूक काफी कारगर साबित हो सकती है।
रविंद्र ने चार इंच गोलाई के 110 एमएम के प्लास्टिक पाइप से यह बंदूक तैयार है। इस बंदूक में फलों को पकाने वाले कार्बाइड का उपयोग किया जाता है। बंदूक में पांच से सात ग्राम कार्बाइड डालने के बाद दो से चार चम्मच पानी डालने पर गैस बनती है और बंदूक सुतली बम के बराबर जोर की आवाज करती है। इसकी आवाज सुनकर जानवर भाग जाते हैं। रवींद्र इस बंदूक का प्रदर्शन विकास भवन में मुख्य कृषि अधिकारी प्रियंका सिंह के समक्ष भी कर चुके हैं।
मुख्य कृषि अधिकारी का कहना है कि रविंद्र का यह आविष्कार सराहनीय है। यह बंदूक बंदरों को भगाने में कारगर होगी। रविंद्र से प्रस्ताव मिलने पर विवेकानंद पर्वतीय कृषि अनुसंधान संस्थान अथवा जीबी पंत कृषि विवि पंतनगर में इस बंदूक का पंजीकरण करवाया जाएगा।
अल्मोड़ा। जंगली जानवरों से खेती को बचाने के लिए ग्राम पंचायत शैल के पपसैली निवासी युवा रविंद्र तिवारी (बबलू) ने लॉकडाउन में पाली बिनाइल क्लोराइड (पीबीसी) प्लास्टिक के पाइप से बंदूक बनाई है। यह बंदूक जोर से की आवाज करती है। आवाज सुनकर बंदर और सुअर भाग जाते हैं। किसानों के लिए काफी कम लागत में यह बंदूक काफी कारगर साबित हो सकती है।
रविंद्र ने चार इंच गोलाई के 110 एमएम के प्लास्टिक पाइप से यह बंदूक तैयार है। इस बंदूक में फलों को पकाने वाले कार्बाइड का उपयोग किया जाता है। बंदूक में पांच से सात ग्राम कार्बाइड डालने के बाद दो से चार चम्मच पानी डालने पर गैस बनती है और बंदूक सुतली बम के बराबर जोर की आवाज करती है। इसकी आवाज सुनकर जानवर भाग जाते हैं। रवींद्र इस बंदूक का प्रदर्शन विकास भवन में मुख्य कृषि अधिकारी प्रियंका सिंह के समक्ष भी कर चुके हैं।
मुख्य कृषि अधिकारी का कहना है कि रविंद्र का यह आविष्कार सराहनीय है। यह बंदूक बंदरों को भगाने में कारगर होगी। रविंद्र से प्रस्ताव मिलने पर विवेकानंद पर्वतीय कृषि अनुसंधान संस्थान अथवा जीबी पंत कृषि विवि पंतनगर में इस बंदूक का पंजीकरण करवाया जाएगा।