ब्रिटिश दार्शनिक व यात्री पीटर मुंडी ने अपनी किताब में मंदिर में भगवान शिव की पूजा का उल्लेख किया है। लिखा है कि बिना नक्काशी किए हुए पत्थर को महिलाएं पूज रही हैं, दूध, गंगाजल, फूल और चावल चढ़ा रही हैं। लोग इसे महादेव का शिवलिंग कहते हैं। यह चारों तरफ एक दीवार से घिरा हुआ है, वहीं पानी गिरने के लिए एक रास्ता भी बनाया गया है।
ब्रिटिश यात्री ने अपनी किताब यूरोप और एशिया में पीटर मुंडी की यात्रा में दावा किया है कि वहां पर शिवलिंग मौजूद था। शाहजहां के शासनकाल में वह बनारस आया था और इसी दौरान उसने यह किताब भी लिखी थी। ज्ञानवापी मस्जिद बनने से पहले पीटर 1632 में बनारस आया था। उसने परिसर में होने वाली पूजा का जिक्र किया है। केंद्रीय ब्राह्मण महासभा के प्रदेश अध्यक्ष अजय शर्मा ने बताया कि इलाहाबाद विश्वविद्यालय के इतिहासकार प्रो. हेरंब चतुर्वेदी के शोध से पता चलता है कि जब औरंगजेब गद्दी पर बैठा तो उसने फरमान जारी करते हुए कहा कि बनारस में ब्राह्मणों के धार्मिक कामकाज में व्यवधान न डाला जाए, पुराने मंदिरों को न गिराया जाए और नए मंदिर न बनने दिए जाएं।
दाराशिकोह और छत्रपति शिवाजी ने ली बनारस में शरण तो भड़क उठा औरंगजेब
अजय शर्मा ने बताया कि औरंगजेब अपने बड़े भाई दाराशिकोह और छत्रपति शिवाजी के बनारस में शरण लेने की सूचना पर भड़क उठा था। इसके बाद जब मेवाड़ के शासक ने विश्वेश्वर मंदिर में पूजा की तो औरंगजेब ने फरमान जारी करते हुए मंदिर और स्कूलों को तोड़ने के साथ ही पूजा पर प्रतिबंध लगाने का आदेश दिया। औरंगजेब ने विश्वेश्वर, कृति वासेश्वर और बिंदुमाधव मंदिर गिरवाकर मस्जिदें खड़ी करवा दीं।
ज्ञानवापी मामले में आज जिला जज की अदालत में सुनवाई होगी। जिला जज की अदालत में सुनवाई का आदेश सुप्रीम कोर्ट ने दिया है। इस मामले में अदालत को आठ सप्ताह में सुनवाई करने का निर्देश दिया गया है। सुप्रीम कोर्ट के आदेश के बाद अब सबकी निगाहें जिला जज की अदालत में होने वाली सुनवाई पर टिकी हैं।
ज्ञानवापी परिसर के दक्षिणी तहखाने का ताला आज भी व्यास परिवार की चाभी से ही खुलता है। व्यास परिवार की तीसरी पीढ़ी के सदस्य शैलेंद्र कुमार पाठक व्यास ने दावा किया है कि उनके नाना ने उनके नाम से तहखाने की वसीयत की थी। ऐसे में शृंगार गौरी की पूजा और वजूखाने में मिले शिवलिंग की पूजा का अधिकार उनको ही मिलना चाहिए। उन्होंने बताया कि तीन पीढ़ियों से उनका परिवार शृंगार गौरी की पूजा करता आ रहा है।
अमर उजाला से बातचीत के दौरान शैलेंद्र व्यास ने बताया कि 1968 में पं. बैजनाथ व्यास ने अपने चार नातियों सोमनाथ व्यास, चंद्रनाथ व्यास, केदारनाथ व्यास और राजनाथ व्यास के नाम से तहखाने की वसीयत की थी। इसके बाद 2000 में सोमनाथ व्यास ने और 2014 में चंद्रनाथ व्यास ने पक्की वसीयत शैलेंद्र कुमार पाठक व्यास और जैनेंद्र कुमार पाठक व्यास के नाम से कर दी। तहखाना साल में दो बार रामायण के नवाह्न पाठ के लिए खुलता है और 2010 तक इसकी चाभी हमारे पास ही थी। इसके बाद प्रशासन ने एक चाभी अपने पास और दूसरी चाभी हमारे पास रख दी।
रामायण के नौ दिवसीय पाठ के दौरान आयोजन से पहले और समापन के बाद दो बार दक्षिणी तहखाने का ताला दोनों चाभियों से खोला जाता है। हम लोग 1991 से अपने दावे के लिए केस लड़ रहे हैं। नाना जी सोमनाथ व्यास ने 1991 में केस दायर करते समय यह दावा किया था कि यह मस्जिद नहीं मंदिर है और इसको हिंदुओं को सौंप दिया जाए। इसके लिए भारतीय पुरातत्व सर्वेक्षण की भी मांग की गई है।
बचपन से करते आ रहे हैं शृंगार गौरी की पूजा
शैलेंद्र व्यास ने बताया कि 1992 से पहले शृंगार गौरी के दर्शन पूजन पर किसी तरह का कोई प्रतिबंध नहीं था। इसके बाद से जब बैरिकेडिंग हो गई तो चैत्र नवरात्र की चतुर्थी पर एक दिन के लिए दर्शन पूजन की अनुमति मिलती थी। मंदिर प्रशासन की सूची में सोमनाथ व्यास और शैलेंद्र व्यास का नाम दर्ज होता था। हम लोग एक दिन पहले ही माता का शृंगार व पूजन की तैयारियां कर लेते थे।
नारियल फोड़ने पर भी लग गया था प्रतिबंध
अयोध्या मामले के बाद शृंगार गौरी में नारियल फोड़ने पर भी प्रतिबंध लग गया था। पुजारी परिवार मध्य रात्रि में 11 नारियल चढ़ाता था। इसके बाद 2006 से आम जनता को भी नारियल चढ़ाने की अनुमति मिल गई।
आज तक नहीं पहुंची है सूरज की रोशनी
शैलेंद्र व्यास ने बताया कि दक्षिणी तहखाने में आज तक सूरज की रोशनी नहीं पहुंच सकी है। तहखाने की दीवार जहां खत्म होती है, वहां से आगे रास्ता बंद है। अगर दीवार को तोड़ा जाएगा तो वहां पर ढेर सारे शिवलिंग मिलेंगे। दीवारों पर हिंदुओं के धार्मिक चिन्ह आंखों से देखे जा सकते हैं।
ब्रिटिश दार्शनिक व यात्री पीटर मुंडी ने अपनी किताब में मंदिर में भगवान शिव की पूजा का उल्लेख किया है। लिखा है कि बिना नक्काशी किए हुए पत्थर को महिलाएं पूज रही हैं, दूध, गंगाजल, फूल और चावल चढ़ा रही हैं। लोग इसे महादेव का शिवलिंग कहते हैं। यह चारों तरफ एक दीवार से घिरा हुआ है, वहीं पानी गिरने के लिए एक रास्ता भी बनाया गया है।
ब्रिटिश यात्री ने अपनी किताब यूरोप और एशिया में पीटर मुंडी की यात्रा में दावा किया है कि वहां पर शिवलिंग मौजूद था। शाहजहां के शासनकाल में वह बनारस आया था और इसी दौरान उसने यह किताब भी लिखी थी। ज्ञानवापी मस्जिद बनने से पहले पीटर 1632 में बनारस आया था। उसने परिसर में होने वाली पूजा का जिक्र किया है। केंद्रीय ब्राह्मण महासभा के प्रदेश अध्यक्ष अजय शर्मा ने बताया कि इलाहाबाद विश्वविद्यालय के इतिहासकार प्रो. हेरंब चतुर्वेदी के शोध से पता चलता है कि जब औरंगजेब गद्दी पर बैठा तो उसने फरमान जारी करते हुए कहा कि बनारस में ब्राह्मणों के धार्मिक कामकाज में व्यवधान न डाला जाए, पुराने मंदिरों को न गिराया जाए और नए मंदिर न बनने दिए जाएं।
दाराशिकोह और छत्रपति शिवाजी ने ली बनारस में शरण तो भड़क उठा औरंगजेब
अजय शर्मा ने बताया कि औरंगजेब अपने बड़े भाई दाराशिकोह और छत्रपति शिवाजी के बनारस में शरण लेने की सूचना पर भड़क उठा था। इसके बाद जब मेवाड़ के शासक ने विश्वेश्वर मंदिर में पूजा की तो औरंगजेब ने फरमान जारी करते हुए मंदिर और स्कूलों को तोड़ने के साथ ही पूजा पर प्रतिबंध लगाने का आदेश दिया। औरंगजेब ने विश्वेश्वर, कृति वासेश्वर और बिंदुमाधव मंदिर गिरवाकर मस्जिदें खड़ी करवा दीं।
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