वाराणसी। देश विश्व बंधुत्व की बात कर रहा है लेकिन कश्मीर में आतंकवाद का खौफ वैसा ही बरकरार है। यहां लोगों की जिंदगियों पर ही नहीं बल्कि बाल मन पर भी आतंकवाद का गहरा असर है। खास तौर पर उनकी पढ़ाई पर। खौफ ऐसा है कि स्कूल जाने वाले बच्चे कभी महीने में चार दिन स्कूल जा पाते हैं तो कभी वह भी नहीं। राष्ट्रीय बाल विज्ञान कांग्रेस में कश्मीर से आए बच्चों से जब बातचीत की गई तो उन्होंने अपने इन्हीं अनुभवों को साझा किया।
कश्मीर के कुलगांव की महक रसूल ने बताया कि साल 2010 को मैं कभी नहीं भूल सकती। कभी हफ्तों तो कभी महीनों हो जाते थे स्कूल गए। उस वक्त जिंदगी जैसे कैदखाने में गुजरती थी। मैंने तो वो दिन भी देखा है जब बाहर कई दिन तक कर्फ्यू लगा रहता था। इस दौरान हमने फफूंद वाली रोटियां भी खाई हैं। जूफिशा और मंतशा ने बताया कि दहशतगर्दी की वजह से हर वक्त डर सा बना रहता है। इससे पढ़ाई पर पड़ने वाले असर को लेकर ज्यादा दुख होता है। शाह फहसल, तनवीर, मुजम्मिल का कहना है कि हम स्कूल में रहते हैं लेकिन घरवालों को डर लगा रहता है कि कब क्या हो जाए। इस हालात के बावजूद इन बच्चों को भारतीय होने पर और खासकर कश्मीरियन होने पर गर्व है। उनका सटीक लफ्जों में यही कहना है कि हम हमेशा इस हिंदुस्तान का हिस्सा बने रहना चाहते हैं।
वाराणसी। देश विश्व बंधुत्व की बात कर रहा है लेकिन कश्मीर में आतंकवाद का खौफ वैसा ही बरकरार है। यहां लोगों की जिंदगियों पर ही नहीं बल्कि बाल मन पर भी आतंकवाद का गहरा असर है। खास तौर पर उनकी पढ़ाई पर। खौफ ऐसा है कि स्कूल जाने वाले बच्चे कभी महीने में चार दिन स्कूल जा पाते हैं तो कभी वह भी नहीं। राष्ट्रीय बाल विज्ञान कांग्रेस में कश्मीर से आए बच्चों से जब बातचीत की गई तो उन्होंने अपने इन्हीं अनुभवों को साझा किया।
कश्मीर के कुलगांव की महक रसूल ने बताया कि साल 2010 को मैं कभी नहीं भूल सकती। कभी हफ्तों तो कभी महीनों हो जाते थे स्कूल गए। उस वक्त जिंदगी जैसे कैदखाने में गुजरती थी। मैंने तो वो दिन भी देखा है जब बाहर कई दिन तक कर्फ्यू लगा रहता था। इस दौरान हमने फफूंद वाली रोटियां भी खाई हैं। जूफिशा और मंतशा ने बताया कि दहशतगर्दी की वजह से हर वक्त डर सा बना रहता है। इससे पढ़ाई पर पड़ने वाले असर को लेकर ज्यादा दुख होता है। शाह फहसल, तनवीर, मुजम्मिल का कहना है कि हम स्कूल में रहते हैं लेकिन घरवालों को डर लगा रहता है कि कब क्या हो जाए। इस हालात के बावजूद इन बच्चों को भारतीय होने पर और खासकर कश्मीरियन होने पर गर्व है। उनका सटीक लफ्जों में यही कहना है कि हम हमेशा इस हिंदुस्तान का हिस्सा बने रहना चाहते हैं।