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साखी-रमैनी की चहुंदिशि गूंज

Varanasi Updated Sun, 03 Jun 2012 12:00 PM IST
वाराणसी। लहरतारा में मध्यकालीन समाज सुधार के अग्रदूत संत कबीर के प्राकट्य महोत्सव के दूसरे दिन देश भर के कबीर पंथियों ने सद्गुरु के स्मारक को अनूठा रंग देने का संकल्प लिया। इसके लिए जहां हजूरी पंजों और अनुयायियों की ओर से दान लुटाने की होड़ मची रही, वहीं संत कबीर की साखी-रमैनी की चहुंदिशि गूंज मची रही।

यह तन जारौं मसि करौं लिखौं राम का नाउं/लेखणि करौं करंक की लिखि-लिखि राम पठाउं... जैसे दोहों से कबीर के समर्पण भाव को अपनाने पर जोर दिया गया। भोर से ही अनुयायी प्राकट्य स्थल वाले तालाब के जल को स्पर्श कर वहां की मिट्टी को माथे लगाते स्मारक स्थल पर पहुंच रहे थे। वहां लाइन में लगकर भक्तों ने कबीर के बाल रूप का दर्शन किया। संतों की मंडलियों ने जहां खझड़ी पर दूसरे दिन भी झूम-झूम कर उत्सव मनाया, वहीं, स्टालों पर कबीर के सद्ग्रंथ खरीदने की भी होड़ मची रही। पीठाधीश्वर पंथ श्री हजूर अर्धनाम साहेब ने अपने संदेश में कहा कि सदगुरु कबीर के साखी-सबद को आत्मसात करने की जरूरत है। सहज साखी मन, बुद्धि और विचार तीनों को बदलने में समर्थ है। धर्माधिकारी सुधाकर शास्त्री का कहना था कि सद्गुरु दोषों का निवारण करता है। संत कबीर का अभियान अशांत मन तो शांत करने का था। उनके संदेशों पर चलकर ही अमन-चैन कायम किया जा सकता है। इस मौके पर शिवमुनि साहेब, सिंधु मुन साहेब, उत्तम साहेब, सर्वानंद साहेब, सुमिरन साहेब, जीवन साहेब, सुधीर मल्ल, राजस्थान के कालू राम सेठ समेत तमाम संत, महंत और भक्त यहां मौजूद थे।


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मुफ्त जांच, राजस्थानी लपसी का भोग
वाराणसी। संत कबीर के प्राकट्य पर इस दिन जहां शुगर के मरीजों की मुफ्त जांच की गई, वहीं बगीचे में लंगर चखने के लिए भक्तों का देर शाम तक रेला उमड़ता रहा। इस दिन राजस्थानी लपसी और तंदूरी रोटी का संतों, भक्तों ने स्वाद लिया।

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मूलगादी में महोत्सव आरंभ
वाराणसी। नीरू टीले पर जहां कभी संत कबीर का पालन-पोषण हुआ था, उसी मूलगादी परिसर में भी शनिवार से तीन दिनी प्राकट्य महोत्सव आरंभ हो गया। इस दिन पंथ प्रमुख आचार्य विवेक दास ने संत कबीर के संदेशों पर चलने का संकल्प दिलाया। इस तीन दिनी मेले में पहली बार देश-दुनिया के भक्त संत कबीर के हाईटेक झोपड़ी स्थल पर भी भजन पेश कर सकेंगे। यहां कार्यक्रमों का इंटरनेट से सीधा प्रसारण भी होगा।
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