वाराणसी। ज्येष्ठ शुक्ल द्वादशी यानी शुक्रवार को लहरतारा की पुण्य भूमि पर देश भर से आए संत कबीर के अनुयायियों का जमावड़ा लग गया। खझड़ी, एकतारा और झांझ की लयबद्धता से पूरा इलाका गूंजता रहा। तीन दिनी प्राकट्य महोत्सव के पहले दिन कई राज्यों के कबीरपंथी यहां पहुंचे। झंडारोहण, दीपोत्सव और प्रार्थना के बाद पीठाधीश्वर हजूर अर्धनाम साहेब ने सामाजिक सुधार के अग्रदूत के संदेशों को आत्मसात कर जीवन की दिशा बदलने पर जोर दिया। 614वें प्राकट्य अवसर पर उन्होंने चेताया कि कबीर के बताए मार्ग पर चलने से ही समाज का भला होगा।
प्राकट्य स्थल पर पौ फटते ही फक्कड़ों की मंडलियां थिरक-थिरक कर उल्लास बिखेरने लगीं। लतर और पताकाओं से सजे समारोह स्थल पर सुबह नौ बजे ध्वजा पूजन किया गया। आरती के बाद मंगलाचरण हुआ। इसके बाद कमल दल पर बाल रूप में संत कबीर के दर्शन के लिए अनुयायियों की लाइन लग गई। पहले दिन उत्तर भारत से पहुंचे करीब 60 से अधिक हजूरी पंजे को धारण करने वाले महंतों ने सद्गुरु की जन्मस्थली पर शीश नवाया। यूपी के अलावा राजस्थान, गुजरात, महाराष्ट्र, छत्तीसगढ़, बिहार, मध्यप्रदेश और झारखंड से अनुयायी पहुंचे थे। संतों की टोलियां जहां-तहां समूहों में कबीर के भजनों पर झूम रही थीं। कड़ी धूप को ताक पर रख तीर्थ की धूल माथे लगाने और उत्साह से हर तरफ नाचने -गाने का दौर देर शाम तक चला। धर्माधिकारी सुधाकर शास्त्री महाराज के अलावा श्याम साहेब, ज्ञान प्रकाश शंकर दास, रोहित, सुजय दास समेत तमाम कबीरपंथी जिम्मेदारियां संभाल रहे थे।
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गुरु के चरनियां निर्मल पनियां...
वाराणसी। देश के अलग-अलग हिस्सों से कबीरपंथ को मानने वाली टोलियां प्राकट्य स्थल पर अपने-अपने अंदाज में मौजूद थीं। बिहार के शेखपुर से आई टोलियां दिन भर कबीर के भजन गाने में रमी रहीं। गुरु के चरनिया पोखरिया है/जहां निर्मल है पनियां...। गवना के दिनवा अइले/एको ना गहनवां बनले...। जैसे भजनों पर महिलाएं भी थिरकने से खुद को नहीं रोक सकीं। जगदेव दास, रामदेव दास, बंगाली दास, नारायण दास, लाक्षोदास, चैतू दास, बतशवा देवी साहेब अपनी धुन में थीं।
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तीन दिन में पांच लाख होंगे भोजन पर
वाराणसी। सद्गुरु कबीर के तीन दिनी प्राकट्य महोत्सव पर भोग-भंडारे से लेकर अनुयायियों के ठहरने तक का खर्च राजस्थान के भक्त कालूराम सेठ उठा रहे हैं। कबीर बाग में एक तरफ मुफ्त चिकित्सा की सुविधा के लिए कैंप लगा है तो दूसरी ओर भंडारा। तंदूरी रोटी, चावल, सब्जी, दाल के अलावा राजस्थानी लपसी, बुंदिया का स्वाद भक्त तीन दिन चखेंगे। खर्च उठाने वाले भक्त कालू राम के अनुसार 5 लाख रुपये की लागत से तीन दिन में दो हजार संतों समेत करीब 50 हजार भक्तों के भोजन की व्यवस्था कबीर बाग में की गई है।
प्वाइंटर
05 से अधिक राज्यों से लहरतारा पहुंचे कबीर पंथी
60 से अधिक हजूरी पंजा धारण करने वाले महंतों ने पहले दिन माथा टेका
03 दिन चलेगा प्राकट्य महोत्सव का मेला