वाराणसी। समाज में सफल लोगों की पूछ है। सफलता की दुनिया इस तरह बन गई है कि उसने असफल होने से डराना शुरू कर दिया है। यह बात कवि और पत्रकार विष्णु नागर ने कही। वह पराड़कर भवन में पत्रकारिता दिवस की पूर्व संध्या पर सोच विचार पत्रिका की ओर से आयोजित ‘साहित्यिक पत्रकारिता के बदलते प्रतिमान एवं चुनौतियां’ विषयक संगोष्ठी में बोल रहे थे। बतौर मुख्य वक्ता उन्होंने कहा कि प्रयत्न करना महत्वपूर्ण होता है। सफलता हमारे वश में नहीं है।
उन्होंने कहा कि हिंदी साहित्य और पत्रकारिता दोनों का स्वरूप धर्मनिरपेक्ष है और उन्होंने आर्थिक उदारीकरण के खिलाफ दमखम से आवाज उठाई है। हम पत्रकारिता से आजादी के जमाने की स्थितियों में जाने की मांग कर रहे हैं। अतीत की ओर जा रहे हैं और वर्तमान को देखना नहीं चाहते। समाज में कई स्तर पर संघर्ष चल रहा है। पत्रकारिता में हर संघर्ष की अभिव्यक्ति भी हो रही है। साहित्य में इस तरह के संघर्ष चल रहे हैं। उन्हें देखने की आदत डालनी होगी। अध्यक्षता कर रहे लेखक नंद किशोर नौटियाल ने कहा कि लघु पत्रिकाएं साहित्य के उद्देश्यों की पूर्ति की दिशा में संघर्ष रही हैं। इससे आशा बंधती है। काशी विद्यापीठ के कुलपति प्रो. पृथ्वीश नाग ने पश्चिम बंगाल और केरल का हवाला देते हुए कहा कि वहां आज भी समाचारपत्रों के घराने साहित्यिक पत्रिकाओं का प्रकाशन कर रहे हैं और उनका पाठक वर्ग भी है। ऐसी ही स्थिति हिंदी में पैदा करनी होगी। उद्योगपति अशोक गुप्ता ने कहा कि साहित्यकारों को पाठकों को ध्यान में रखकर लिखना होगा, तभी उनकी समाज में लोकप्रियता बनेगी। प्रो. राममोहन पाठक ने कहा कि हालात तब तक नहीं सुधरेंगे, जब तक निष्क्रिय पाठक वर्ग सक्रिय नहीं होता। विषय स्थापना प्रो. अवधेश प्रधान, संचालन डा. जितेंद्रनाथ मिश्र, मंगलाचरण डा. विजेंद्रनाथ मिश्र ने किया। काशी गोमती संयुत ग्रामीण बैंक के चेयरमैन एसएन त्रिपाठी, डा. नीरजा माधव, डा. रामसुधार सिंह, डा. रणजीत सिंह, निरंकार सिंह, प्रो. श्रद्धानंद, अजय मिश्र ने विचार व्यक्त किए। इस मौके पर मनीष खत्री को सम्मानित किया गया।