वाराणसी। रसोई गैस की किल्लत से परेशान गृहिणियों के लिए राहत देने वाली खबर है। बनारस में जल्द ही एलपीजी के विकल्प के तौर पर बायोगैस मिलने लगेगी। मंदिरों से निकलने वाले कचरे और गोबर से तैयार मिथेन गैस को रिफिलिंग कर सिलेंडर तैयार करने की योजना को यूपी सरकार ने स्वीकार ही नहीं किया है, प्लांट के लिए एक करोड़ रुपये भी स्वीकृत किए हैं। यही नहीं, बीएचयू के कृषि वैज्ञानिकों की इस योजना में कचरे से अगरबत्ती और बर्मी कंपोस्ट खाद भी तैयार की जाएगी। सिलेंडर जहां दिसंबर तक लोगों को मिलने लगेगा वहीं अगरबत्ती और बर्मी कंपोस्ट अगले माह बाजार में आ जाएगी। जहां तक रही प्लांट की बात तो वह रामनगर के महेश घाट स्थित अघोर यूको आश्रम में स्थापित किया जाएगा।
मंदिरों से निकलने वाली फूल-पत्ती और गोबर से बायोगैस सिलेंडर का यह मॉडल अघोरेश्वर बाबा हरिहर राम यूको आश्रम के आग्रह पर बीएचयू कृषि विज्ञान संस्थान के वरिष्ठ अर्थशास्त्री प्रो. साकेत कुशवाहा और डा. वीरेंद्र कमलबंशी के नेतृत्व में कृषि वैज्ञानिकाें ने तैयार किया है। इसे यूपी सरकार के योजना विभाग के बायो एनर्जी मिशन सेल ने स्वीकृति भी प्रदान कर दी। गत 12 मई को मंडलायुक्त की अध्यक्षता में हुई बैठक में इस प्रोजेक्ट पर मुहर लगाई गई थी। आश्रम में प्लांट स्थापित करने की जिम्मेदार इंस्टीट्यूट आफ मेडिसिनल एंड एरोमेटिक्स प्लांट तथा एफएफडीसी कन्नौज को दी गई है।
कार्ययोजना के अनुसार मंदिराें से प्रतिदिन निकलने वाले लगभग ढाई टन फूल, पत्ती अस्सी घाट पर एकत्रित की जाएगी। यहीं गुलाब, गेंदा, पत्तियों को अलग किया जाएगा। इसके बाद उन्हें स्टीमर से अघोर आश्रम भेजा जाएगा, जबकि बचे प्लास्टिक के थैले एवं अन्य पदार्थों नष्ट कर दिए जाएंगे। यही नहीं, गुलाब, गेंदे के फूल से अगरबत्ती बनाई जाएगी। इस योजना के लिए रामनगर के आसपास के गांवाें के 150 किसानाें से गोबर लिया जाएगा। गोबर और फूल पत्तियाें को बायोडाइजेस्टर मशीन में डालकर बायोगैस (मिथेन) तैयार की जाएगी। इसके बाद गैस को प्यूरीफाई और प्रेशराइज कर सिलेंडर में भरा जाएगा। योजना के प्रथम चरण में यह सिलेंडर उन किसानाें को दिए जाएंगे जो यूको आश्रम को गोबर देंगे। इसके बाद इनकी बिक्री होगी। सिलेंडर की कीमत तीन सौ रुपये होेगी। इस योजना में डेढ़ सौ महिलाआें को रोजगार देने का भी लक्ष्य है। कार्यक्रम के समन्वयक गिरीश शर्मा हैं।
कोट-
इस योजना से फूल-पत्तियाें को नष्ट करने की समस्या तो समाप्त हो ही जाएगी। इसके बहुत सारे लाभ भी लोगाें को मिलेंगे। प्रथम चरण में भले ही कम सिलेंडर तैयार हों पर बाद में इसका विस्तार किया जाएगा-प्रो. साकेत कुशवाहा, वैज्ञानिक सलाहकार, बीएचयू
फूल-पत्तियाें और गोबर से क्या-क्या बनेगा
- बनारस के चार प्रमुख मंदिराें से प्रतिदिन ढाई टन फूल-पत्ती निकलती है। इससे पांच हजार पैकेट अगरबत्ती बनेगी
- फूल-पत्ती और गोबर से तैयार मिथेन गैस से प्रतिदिन छह सिलेंडर रिफिलिंग किए जा सकेंगे
- फूल-पत्ती और गोबर से प्रतिदिन एक टन बर्मी कंपोस्ट खाद भी बनाई जाएगी