वाराणसी। काशी में गंगा को बचाने के लिए ड्रेजिंग जरूरी हो गई है। जबतक तलहटी साफ नहीं होगी गंगा लगातार छिछली होती जाएंगी और एक दिन इनका अस्तित्व ही समाप्त हो जाएगा। लेकिन यह हो कैसे, कछुआ सेंचुरी इसमें सबसे बड़ी बाधा है। अगर गंगा में ड्रेजिंग शुरू हो जाए तो सारी समस्या का समाधान हो जाए। ऐसा मानना है घाटों पर बचपन और जवानी गुजाराने वाले तटीय बाशिंदों का।
इनका कहना है कि सरकार की लापरवाही आने वाले दिनों में गंगा को खा जाएगी। गंगा के पाट जिस तरह से कम हुए हैं और गहराई न के बराबर हो गई है, उससे साफ है कि केंद्र और राज्य की सरकारें ही गंगा को कमजोर करने के लिए जिम्मेदार हैं। अविरल-निर्मल गंगा के लिए लाली घाट पर सूर्योदय से सूर्यास्त तक निराजल तपस्या करने वाले शिवाला निवासी प्रमोद माझी सरकार के रवैये से मर्माहत हैं। गंगा को लेकर करीब तीस साल के उनके अनुभव जितने सच हैं उतने ही कड़वे भी। उनकी मानें तो टिहरी बांध बनने के बाद भी बनारस में गंगा के जल स्तर में सिर्फ डेढ़-दो फुट का अंतर आया है। इसकी वजह है गहराई का कम हो जाना। रेत के जमाव से काशी में गंगा पट गई हैं ऐसे में बचाखुचा मामूली जल ऊपर दिख रहा है। कहीं-कहीं तो सिर्फ घुटने भर ही पानी रह गया है। अस्सी घाट, सामने घाट पर तो पूरा पेटा रेत से लगभग पट गया है। वास्तविक चौड़ाई 30 साल के भीतर आधा से भी कम हो गई। ऐसे में अगर सरकार ने गंगा की तलहटी से बालू खनन की अनुमति नहीं दी तो गंगा के पाट एकदम खत्म हो जाएंगे। बहाव न होने से ज्यादा दिक्कत पैदा हुई है। करीब 12 साल पहले तक बालू की खोदाई होती थी। कछुआ सेंचुरी के चलते खोदाई बंद होने से न बहाव रहा और न गहराई।