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आईआईटी जेईई में 354 छात्राें को सफलता

Varanasi Updated Sat, 19 May 2012 12:00 PM IST
वाराणसी। भारतीय प्रौद्योगिकी संस्थान की संयुक्त प्रवेश परीक्षा (आईआईटी जेईई)-2012 में बनारस के 354 विद्यार्थियों ने सफलता अर्जित की है। इनमें से प्राइम क्लासेज की जागृति सिंह ने 211वीं रैंक हासिल कर टापर रही। वह बिहार के कैमूर जिले की रहनेवाली है और वहीं से शिक्षा-दीक्षा हासिल की। जेआरएस कोचिंग का छात्र महमूरगंज निवासी स्वप्निल अग्रवाल ने 424वीं रैंक हासिल की। पिछले साल की तुलना में इस वर्ष 30 प्रतिशत अधिक छात्राें को सफलता मिली है। देश के भावी इंजीनियराें को भारत की आर्थिक विकास की चिंता सता रही है। इधर, परिणाम आते ही शहर के कोचिंग संस्थानाें में जश्न का माहौल हो गया। सफल छात्राें को उनके अभिभावकाें के साथ कोचिंग संस्थानाें में बुलाया गया, जहां वे शिक्षकाें को धन्यवाद दिए। कुछ सफल छात्रों का ब्योरा और प्रतिक्रियाएं इस प्रकार रही।


स्वप्निल अग्रवाल के पिताजी नंदकिशोर अग्रवाल काशी गोमती संयुत ग्रामीण बैंक में प्रबंधक हैं और माता सीएचएस में शिक्षक। बड़ा भाई अभिनव अग्रवाल बीएचईएल (भेल) हैदराबाद में इंजीनियर है। भाई की प्रेरणा से वह इंजीनियरिंग क्षेत्र में आए। सेंट जांस स्कूल डीएलडब्लू से 95.8 प्रतिशत अंक से मैट्रिक पास किए स्वप्निल सनबीम भगवानपुर से इंटरमीडिएट की परीक्षा पास की। जेआरएस कोचिंग सेंटर दुर्गाकुंड से एक साल तक तैयारी की और प्रथम प्रयास में ही सफलता अर्जित कर ली। वह पांचवीं से दसवीं कक्षा तक प्रथम स्थान पर आने लगा। आईआईटी जेईई की तैयारी करने वाले छात्राें को सलाह के तौर पर उसने बताया कि केमेस्ट्री पेपर पर विशेष ध्यान दें क्याेंकि यह स्कोरिंग विषय है। नियमित पढ़ने, सफलता के सूत्र जानने, क्लास में पढ़ने के बाद उसे पुन: घर पर पढ़ने की आदत डालने और रटने की बजाय विषयवस्तु पर ध्यान केंद्रित करने की उसने सलाह दी है।


महेश मिश्रा ने 1085वीं रैंक हासिल की है। पिताजी की मौत के बाद मां ने उसे पढ़ाने की ठान ली। गणित का पेपर पिछली बार अच्छा नहीं होने पर सफलता नहीं मिली तो वह काफी निराश हो गया था, इसीलिए इस वर्ष उसने इस विषय को काफी मजबूत कर लिया। शायद यही कारण था कि उसे सफलता हाथ लग गई। उसने बताया कि मां इस बार परीक्षा परिणाम को लेकर काफी आशान्वित थी। उसने बताया कि इस वर्ष फिजिक्स का पेपर कठिन था, इसके बावजूद सफलता मिल गई। उसने बताया कि परीक्षा की तैयारी के लिए एक साल का समय पर्याप्त है।

पड़ाव निवासी मिथिलेश त्रिपाठी ने 1199वीं रैंक हासिल की है। मैट्रिक में 90 प्रतिशत अंक प्राप्त करने के बाद उसने इंजीनियर बनने की सोची और दूसरे प्रयास ने सफलता हासिल कर ली। पिताजी किसान हैं, इसके बावजूद वे हिम्मत नहीं हारे और बेटे को परीक्षा की तैयारी करने को कहा। अंतत: उसे सफलता मिल गई। वह कहता है कि अथक परिश्रम से कोई भी काम संभव हो सकता है।

साकेतनगर निवासी अभिषेक कुमार के पिताजी मुंबई में चिकित्सक हैं जबकि माता गृहणी है। पिछली बार की परीक्षा में समुचित तैयारी नहीं होने के कारण उसे सफलता नहीं मिली लेकिन एक साल तक उसने अपने लक्ष्य को हासिल करने के लिए कड़ी मेहनत की। आखिरकार दूसरे प्रयास में उसे सफलता हासिल हो गई। वह कहता है कि लक्ष्य के प्रति यदि दृढ़ संकल्पित हो तो सफलता जरूर हाथ लग जाएगी। उसने नियमित प्रश्नपत्राें को नियमित हल करने की सलाह दी है। वह भविष्य में कंप्यूटर इंजीनियर बनना चाहता है।

चंदौली निवासी अभिषेक उपाध्याय ने डीपीएस से मैट्रिक और इंटरमीडिएट की परीक्षा दी। पिताजी मनन गुप्ता और माता रंजू गुप्ता दोनाें चिकित्सक हैं। मैथ और मशीन से अधिक लगाव होने के कारण उसने इंजीनियर बनने का लक्ष्य बनाया। वह इंजीनियरिंग की पढ़ाई पूरी करने के बाद सिविल सर्विस की तैयारी करना चाहता है। उसने पहले प्रयास में ही सफलता हासिल कर ली। परीक्षा की तैयारी करने वालाें को वह सलाह के तौर पर कहता है कि कम से कम एक साल पहले से ही तैयारी शुरू की जाए।
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मध्यमवर्गीय परिवार के छात्रों का परचम
वाराणसी। शहर के कोचिंग संस्थानाें का दावा है कि इस बार सबसे अधिक मध्यमवर्गीय परिवाराें के छात्राें ने सफलता अर्जित किया है। इसमें कई किसान, व्यवसायी, शिक्षक और चिकित्सक के पुत्र हैं। महमूरगंज स्थित एक कोचिंग संस्थान में अध्ययन करने आया मिर्जामुराद के छात्र विशाल श्रीवास्तव के पास इतना पैसा नहीं था कि वह कोचिंग की फीस जमा कर सके। इसी प्रकार, दुर्गाकुंड स्थित तीन बड़े कोचिंग संस्थानाें से प्राप्त परिणाम में सबसे अधिक मध्यमवर्गीय परिवार के छात्रों ने सफलता हासिल की।
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