वाराणसी। काशी के करीब दो सौ सीवर-नाले गंगा में गिराए जा रहे हैं। इन्हीं में से एक नाला लाली घाट पर गंगा तपस्वियों के नाक में दम कर रहा है। इन सब की अनदेखी यहां तैनात अफसरों की कार्यप्रणाली को दर्शाने के लिए काफी है। आम जन से लेकर साधु-संत तक गंगा की निर्मलता के लिए बांहें चढ़ाए हुए हैं। सरकार अनमने ढंग से आश्वासन पर आश्वासन दिए जा रही है। मगर, निर्मलीकरण की दिशा में देशव्यापी मुहिम तथा सरकारी दावों को इस खुलासे से तगड़ा झटका लगेगा कि तपस्यास्थली के ठीक नीचे ही अवजल की सुरसा न जाने कब से गंगा में प्रदूषण का जहर उलीच रही है। यहां करीब दो हजार लीटर से अधिक गंदा पानी सीधे गंगा में गिरते देख किसी के भी होश उड़ जाएंगे। अप स्टीम में महज दो सौ मीटर आगे हरिश्चंद्र घाट से चिताओं की राख, हड्डियों के किनारे लगते ढेर और धोबियों के पाट तटीय पर्यावरण चौपट करने में आग में घी का काम कर रहे हैं अलग से। इसे शीघ्र नहीं रोका गया तो अविरलता-निर्मलता के बजते ढोल बेईमानी के अलावा कोई दूसरा ताल नहीं दे पाएंगे।
काशी में 46 स्थानों पर उल्टी गंगा की खबर बुधवार के अंक में अमर उजाला ने प्रकाशित की थी। 46 ऐसे स्थान हैं जहां हर कोई बड़े नाले गंगा में गिरते देख सकता है। अपरोक्ष नालों की संख्या गिनना मुश्किल है। हालांकि प्राचीन शहर काशी में घरेलू और औद्योगिक डिस्चार्ज के वास्तविक आंकड़े अभी तक न तो केंद्रीय प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड के पास हैं और न ही इस संबंध में अबतक दूसरी सरकारी, गैर सरकारी संस्थाओं की ओर से ही ठोस सर्वेक्षण सार्वजनिक हो सका है। पांच साल पहले जिन 37 नालों से अवजल के बहाव को लेकर जो चिंता थी, वही आज भी है। ताजा स्थिति पर नजर डालें तो सामने घाट से राजघाट के बीच सिर्फ नाले ही नहीं करीब दो सौ से अधिक मठों, मंदिरों और लक्जरी होटलों से सीधे अवजल की बड़ी मात्रा गंगा में गिराया जा रहा है। करीब 25 लाख की आबादी वाले बनारस में अकेले किनारों पर स्थित मठों-मंदिरों और तटीय आश्रमों का रोजाना का डिस्चार्ज करीब तीन करोड़ लीटर से अधिक माना जा रहा है। लाली घाट स्थित तपस्थली से लगे भूमा आध्यात्म पीठ आश्रम के ठीक नीचे से नाला गंगा में मिलाया गया है। भूमा आध्यात्म पीठ के प्रबंधन इसे अपनी लाइन नहीं मानता। वह नाला कुमार स्वामी मठ के प्रबंधन वाले केदाररेश्वर मंदिर का है या उसमें दूसरे मठों की भी लाइन जोड़ी गई है, यह जांच का विषय है लेकिन वहां चौबीस घंटे अवजल की धारा गंगा में बहते देखी जा सकती है।
जरूरत श्रमदान की
अमर उजाला गंगा की सफाई के लिए आम जन की पहल का स्वागत करता है। इसी कड़ी में 13 मई को श्रमदान का आह्वान किया गया था। हमारी कोशिश है कि काशीवासी अपनी गंगा को बचाने के लिए श्रमदान के साथ आगे बढ़ें। संत समाज तथा गण्यमान्य नागरिकों से विनम्र निवेदन है कि गंगा तपस्या के साथ ही लोगों को श्रमदान के लिए प्रेरित करें तथा गंगा में नालों का बहाव रोकने की दिशा में कदम बढ़ाएं। ताकि गंगा को अविरल-निर्मल करने की लड़ाई को मजबूती मिल सके।
वाराणसी। काशी के करीब दो सौ सीवर-नाले गंगा में गिराए जा रहे हैं। इन्हीं में से एक नाला लाली घाट पर गंगा तपस्वियों के नाक में दम कर रहा है। इन सब की अनदेखी यहां तैनात अफसरों की कार्यप्रणाली को दर्शाने के लिए काफी है। आम जन से लेकर साधु-संत तक गंगा की निर्मलता के लिए बांहें चढ़ाए हुए हैं। सरकार अनमने ढंग से आश्वासन पर आश्वासन दिए जा रही है। मगर, निर्मलीकरण की दिशा में देशव्यापी मुहिम तथा सरकारी दावों को इस खुलासे से तगड़ा झटका लगेगा कि तपस्यास्थली के ठीक नीचे ही अवजल की सुरसा न जाने कब से गंगा में प्रदूषण का जहर उलीच रही है। यहां करीब दो हजार लीटर से अधिक गंदा पानी सीधे गंगा में गिरते देख किसी के भी होश उड़ जाएंगे। अप स्टीम में महज दो सौ मीटर आगे हरिश्चंद्र घाट से चिताओं की राख, हड्डियों के किनारे लगते ढेर और धोबियों के पाट तटीय पर्यावरण चौपट करने में आग में घी का काम कर रहे हैं अलग से। इसे शीघ्र नहीं रोका गया तो अविरलता-निर्मलता के बजते ढोल बेईमानी के अलावा कोई दूसरा ताल नहीं दे पाएंगे।
काशी में 46 स्थानों पर उल्टी गंगा की खबर बुधवार के अंक में अमर उजाला ने प्रकाशित की थी। 46 ऐसे स्थान हैं जहां हर कोई बड़े नाले गंगा में गिरते देख सकता है। अपरोक्ष नालों की संख्या गिनना मुश्किल है। हालांकि प्राचीन शहर काशी में घरेलू और औद्योगिक डिस्चार्ज के वास्तविक आंकड़े अभी तक न तो केंद्रीय प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड के पास हैं और न ही इस संबंध में अबतक दूसरी सरकारी, गैर सरकारी संस्थाओं की ओर से ही ठोस सर्वेक्षण सार्वजनिक हो सका है। पांच साल पहले जिन 37 नालों से अवजल के बहाव को लेकर जो चिंता थी, वही आज भी है। ताजा स्थिति पर नजर डालें तो सामने घाट से राजघाट के बीच सिर्फ नाले ही नहीं करीब दो सौ से अधिक मठों, मंदिरों और लक्जरी होटलों से सीधे अवजल की बड़ी मात्रा गंगा में गिराया जा रहा है। करीब 25 लाख की आबादी वाले बनारस में अकेले किनारों पर स्थित मठों-मंदिरों और तटीय आश्रमों का रोजाना का डिस्चार्ज करीब तीन करोड़ लीटर से अधिक माना जा रहा है। लाली घाट स्थित तपस्थली से लगे भूमा आध्यात्म पीठ आश्रम के ठीक नीचे से नाला गंगा में मिलाया गया है। भूमा आध्यात्म पीठ के प्रबंधन इसे अपनी लाइन नहीं मानता। वह नाला कुमार स्वामी मठ के प्रबंधन वाले केदाररेश्वर मंदिर का है या उसमें दूसरे मठों की भी लाइन जोड़ी गई है, यह जांच का विषय है लेकिन वहां चौबीस घंटे अवजल की धारा गंगा में बहते देखी जा सकती है।
जरूरत श्रमदान की
अमर उजाला गंगा की सफाई के लिए आम जन की पहल का स्वागत करता है। इसी कड़ी में 13 मई को श्रमदान का आह्वान किया गया था। हमारी कोशिश है कि काशीवासी अपनी गंगा को बचाने के लिए श्रमदान के साथ आगे बढ़ें। संत समाज तथा गण्यमान्य नागरिकों से विनम्र निवेदन है कि गंगा तपस्या के साथ ही लोगों को श्रमदान के लिए प्रेरित करें तथा गंगा में नालों का बहाव रोकने की दिशा में कदम बढ़ाएं। ताकि गंगा को अविरल-निर्मल करने की लड़ाई को मजबूती मिल सके।