वाराणसी। गंगा से जनम-जनम का नाता रखने वाले लोग ताजा हालात को लेकर बेहद चिंतित हो उठे हैं। उनकी सबसे बड़ी चिंता यह है कि बाबा विश्वनाथ की तरह कहीं गंगा भी राष्ट्रीयकरण की भेंट न चढ़ जाएं। जिस तरह से अधिग्रहण के बाद बाबा आम भक्तों से दूर कर दिए गए, उसी तरह गंगा को छोड़कर नहीं जाने दिया जाएगा। घटते जलस्तर और सिमटते पाट को लेकर भी तटीय बाशिंदों के माथे पर चिंता की लकीर खिंच गई है। करीब 30 साल से शीतला घाट पर दिन रात गुजारने वाले तीर्थ पुरोहित चंदू पांडेय के अनुभव किसी को भी झकझोर देंगे।
बीस साल की उम्र से ही घाट पर चंदन-टीका और कर्मकांड कराते आ रहे चंदू गंगा मां की दशा को लेकर द्रवित हैं। 50 साल के इस तीर्थ पुरोहित की मानें तो 30 साल पहले तक जून महीने में आरती वाले चबूतरे तक जल रहता था। जून बीतते ही चबूतरा डूबने की चिंता बढ़ जाती थी और लोग छतरियां हटाने लगते थे। रेता इतना नहीं था, बालू की कटान होती थी। उस पार के लोग भी बालू खनन से जीविकोपार्जन करते थे। समस्याएं कम करने की फिक्र कम है, मां का राष्ट्रीयकरण कराने की चिंता ज्यादा। ऐसा होते ही नहाने, धोने और देर तक उठने-बैठने पर भी रोक लगने लगेगी। इसी तरह बाबा विश्वनाथ अधिग्रहण के चलते कैद हो गए और अब लगता है कि गंगा की भी वही गति हो जाएगी। उनकी मानें तो निगम के कर्मी दिन के 12 बजे अक्सर झाड़ू लगाते देखे जाते हैं। कूड़ा सीढि़यों के पास छोड़ दिया जाता है। यही हाल रहा तो गंगा कठौती में रह जाएंगी। नदी की जगह नाले का स्वरूप बन जाएगा।
वाराणसी। गंगा से जनम-जनम का नाता रखने वाले लोग ताजा हालात को लेकर बेहद चिंतित हो उठे हैं। उनकी सबसे बड़ी चिंता यह है कि बाबा विश्वनाथ की तरह कहीं गंगा भी राष्ट्रीयकरण की भेंट न चढ़ जाएं। जिस तरह से अधिग्रहण के बाद बाबा आम भक्तों से दूर कर दिए गए, उसी तरह गंगा को छोड़कर नहीं जाने दिया जाएगा। घटते जलस्तर और सिमटते पाट को लेकर भी तटीय बाशिंदों के माथे पर चिंता की लकीर खिंच गई है। करीब 30 साल से शीतला घाट पर दिन रात गुजारने वाले तीर्थ पुरोहित चंदू पांडेय के अनुभव किसी को भी झकझोर देंगे।
बीस साल की उम्र से ही घाट पर चंदन-टीका और कर्मकांड कराते आ रहे चंदू गंगा मां की दशा को लेकर द्रवित हैं। 50 साल के इस तीर्थ पुरोहित की मानें तो 30 साल पहले तक जून महीने में आरती वाले चबूतरे तक जल रहता था। जून बीतते ही चबूतरा डूबने की चिंता बढ़ जाती थी और लोग छतरियां हटाने लगते थे। रेता इतना नहीं था, बालू की कटान होती थी। उस पार के लोग भी बालू खनन से जीविकोपार्जन करते थे। समस्याएं कम करने की फिक्र कम है, मां का राष्ट्रीयकरण कराने की चिंता ज्यादा। ऐसा होते ही नहाने, धोने और देर तक उठने-बैठने पर भी रोक लगने लगेगी। इसी तरह बाबा विश्वनाथ अधिग्रहण के चलते कैद हो गए और अब लगता है कि गंगा की भी वही गति हो जाएगी। उनकी मानें तो निगम के कर्मी दिन के 12 बजे अक्सर झाड़ू लगाते देखे जाते हैं। कूड़ा सीढि़यों के पास छोड़ दिया जाता है। यही हाल रहा तो गंगा कठौती में रह जाएंगी। नदी की जगह नाले का स्वरूप बन जाएगा।