वाराणसी। आस्था के शीर्ष पर पहुंचकर दुनिया भर में गंगा की बेमिसाल खूबसूरती का डंका बजाने वाले लोगों के आगे अब मुंह छिपाने के अलावा कोई रास्ता नहीं बचेगा। काशीवासियों को यह जानकर सांप सूंघ जाएगा कि जिस दशाश्वमेध घाट की गंगा आरती के कारण रोजाना करोड़ों रुपये का पर्यटन और होटल व्यवसाय होता है, वहीं पर गंगा का दम घुट रहा है। अविरल-निर्मल धारा के लिए देशव्यापी शोर मचाने वाले संगठनों के लिए इससे ज्यादा और क्या चोट होगी कि अंतरराष्ट्रीय पर्यटन स्थल पर ही गंगा का किनारा सड़कर काले अवजल के रूप में बजबजाने लगा है। देसी-विदेशी पर्यटकों की भीड़ में जहां गंगा कराह रही है, उस स्थान को विशेषज्ञों ने अवसाद यानी ठोस प्रदूषण के जमाव का सबसे बड़ा जोन करार दिया है।
पौराणिक महत्व के चौरासी घाटों में दशाश्वमेध सरकारी खजाना भरने के लिए जहां कुबेर की तरह रहा है, वहीं गंगा का किनारा सड़ने से कोई भी हैरत में पड़ जाएगा। करीब पांच सौ मीटर से अधिक का तटीय हिस्सा वहां काला पड़ गया है, जहां सुबह-ए-बनारस की झलक पाने के लिए अमेरिका से लेकर उत्तर कोरिया तक के युवा और बुजुर्ग पौ फटने से पहले ही पहुंच जाते हैं। शाम को तो फूलों के हार से सजे बजड़ों, नावों पर खचाखच भीड़ आरती के नजारे को यादगार बनाने के लिए उमड़ पड़ती है। दशाश्वमेध घाट पर गंगा की कराह हर जिम्मेदार चेहरे की रंगत उतार देगी। किसी ने सोचा नहीं होगा कि सनातनी संस्कृति का व्यस्ततम तीर्थ गंदा जोन बन जाएगा।
देव दीपावली जैसे महोत्सव पर जहां 20 से -25 करोड़ रुपये महज कुछ घंटे में बरस जाते हैं, वहीं आम दिनों में बनारस की कम से कम पांच लाख की आबादी किसी न किसी तरह इसी घाट से जीविका चलाती है। करीब 20 हजार से अधिक मल्लाह परिवारों के अलावा पंडों, तीर्थपुरोहितों से लेकर फूलमाला और पूजा सामग्री के कारोबारियों तक ही नहीं विश्व प्रसिद्ध बनारसी साड़ी उद्योग को भी इस घाट की आरती से बढ़ावा मिला है। तमाम पर्यटक गंगा आरती देखने के बहाने ही काशी में रुकते हैं। फिर साड़ी खरीद से लेकर होटल में ठहरने तक के बीच अलग-अलग हिस्सों में उससे हजारों रुपये की आमदनी रिक्शा चालक से लेकर गद्दीदार तक की हो जाती है।
कोट्स
दशाश्वमेध घाट गंगा के नतोदर किनारे का केंद्र है। वहां पानी का वेग न्यूनतम हो गया है। अवसाद के जमाव की क्षमता बढ़ गई है। पास में ही राजेंद्र प्रसाद घाट पर सीवेज पंपिंग स्टेशन की मोटी पाइप के सहारे अवजल गिरने से वहां पानी में वेग शून्यता आ गई है और वहां ठोस प्रदूषण जमा होने लगा है। इससे दशाश्वमेध घाट अवजल लागिंग जोन बन गया है।
-प्रोफेसर यूके चौधरी, पूर्व निदेशक- गंगा प्रयोगशाला बीएचयू
वाराणसी। आस्था के शीर्ष पर पहुंचकर दुनिया भर में गंगा की बेमिसाल खूबसूरती का डंका बजाने वाले लोगों के आगे अब मुंह छिपाने के अलावा कोई रास्ता नहीं बचेगा। काशीवासियों को यह जानकर सांप सूंघ जाएगा कि जिस दशाश्वमेध घाट की गंगा आरती के कारण रोजाना करोड़ों रुपये का पर्यटन और होटल व्यवसाय होता है, वहीं पर गंगा का दम घुट रहा है। अविरल-निर्मल धारा के लिए देशव्यापी शोर मचाने वाले संगठनों के लिए इससे ज्यादा और क्या चोट होगी कि अंतरराष्ट्रीय पर्यटन स्थल पर ही गंगा का किनारा सड़कर काले अवजल के रूप में बजबजाने लगा है। देसी-विदेशी पर्यटकों की भीड़ में जहां गंगा कराह रही है, उस स्थान को विशेषज्ञों ने अवसाद यानी ठोस प्रदूषण के जमाव का सबसे बड़ा जोन करार दिया है।
पौराणिक महत्व के चौरासी घाटों में दशाश्वमेध सरकारी खजाना भरने के लिए जहां कुबेर की तरह रहा है, वहीं गंगा का किनारा सड़ने से कोई भी हैरत में पड़ जाएगा। करीब पांच सौ मीटर से अधिक का तटीय हिस्सा वहां काला पड़ गया है, जहां सुबह-ए-बनारस की झलक पाने के लिए अमेरिका से लेकर उत्तर कोरिया तक के युवा और बुजुर्ग पौ फटने से पहले ही पहुंच जाते हैं। शाम को तो फूलों के हार से सजे बजड़ों, नावों पर खचाखच भीड़ आरती के नजारे को यादगार बनाने के लिए उमड़ पड़ती है। दशाश्वमेध घाट पर गंगा की कराह हर जिम्मेदार चेहरे की रंगत उतार देगी। किसी ने सोचा नहीं होगा कि सनातनी संस्कृति का व्यस्ततम तीर्थ गंदा जोन बन जाएगा।
देव दीपावली जैसे महोत्सव पर जहां 20 से -25 करोड़ रुपये महज कुछ घंटे में बरस जाते हैं, वहीं आम दिनों में बनारस की कम से कम पांच लाख की आबादी किसी न किसी तरह इसी घाट से जीविका चलाती है। करीब 20 हजार से अधिक मल्लाह परिवारों के अलावा पंडों, तीर्थपुरोहितों से लेकर फूलमाला और पूजा सामग्री के कारोबारियों तक ही नहीं विश्व प्रसिद्ध बनारसी साड़ी उद्योग को भी इस घाट की आरती से बढ़ावा मिला है। तमाम पर्यटक गंगा आरती देखने के बहाने ही काशी में रुकते हैं। फिर साड़ी खरीद से लेकर होटल में ठहरने तक के बीच अलग-अलग हिस्सों में उससे हजारों रुपये की आमदनी रिक्शा चालक से लेकर गद्दीदार तक की हो जाती है।
कोट्स
दशाश्वमेध घाट गंगा के नतोदर किनारे का केंद्र है। वहां पानी का वेग न्यूनतम हो गया है। अवसाद के जमाव की क्षमता बढ़ गई है। पास में ही राजेंद्र प्रसाद घाट पर सीवेज पंपिंग स्टेशन की मोटी पाइप के सहारे अवजल गिरने से वहां पानी में वेग शून्यता आ गई है और वहां ठोस प्रदूषण जमा होने लगा है। इससे दशाश्वमेध घाट अवजल लागिंग जोन बन गया है।
-प्रोफेसर यूके चौधरी, पूर्व निदेशक- गंगा प्रयोगशाला बीएचयू