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कटौती के साथ पानी के लिए जूझ रहे लोग

Unnao Updated Fri, 01 Jun 2012 12:00 PM IST
उन्नाव। बिजली की बेतहाशा कटौती से शहर के कई इलाकों में पानी की भी किल्लत से लोगों को दो चार होना पड़ रहा है। आठ से दस घंटे ही आपूर्ति हो पा रही है जिससे आम आदमी बेहाल है। समय से बिजली न मिलने से लोगों की मोटरों ने दगा दे दिया है। जिससे टंकियां भी फुल नहीं हो पा रही है। सरकारी स्टैण्डपोस्ट भी पानी नहीं दे पा रहे हैं जिससे लोग सुबह से ही हैंडपंपों पर लाइन लगाने को मजबूर हो रहे हैं।

बिजली की अंधाधुंध कटौती से कई क्षेत्रों में पानी के लिए हाहाकार मच गया है। आवास विकास कालोनी, तालिबसराय, किला, नुरुद्दीनगर, आदर्शनगर, गांधीनगर, कृष्णानगर आदि क्षेत्रों में सुबह से ही हैंडपंपों पर लोगों की भीड़ लग जाती है। सुचारु बिजली न मिलने से लोगों की मोटरें भी धोखा दे रही हैं। जिसके चलते पानी की टंकियां नहीं भर पा रही है। घरों में पानी की किल्लत से लोग जूझने लगे हैं। जिला मुख्यालय में सुबह चार से छह, दोपहर को 2 से 3 बजे तक और रात में 7 से 11 बजे तक बिजली आपूर्ति का शेड्यूल है। विभागीय अधिकारी 17 घंटे की बिजली आपूर्ति का दावा कर रहे हैं लेकिन असलियत में लोकल रोस्टिंग से हालत और भी खराब दिख रही है। आपूर्ति के समय भी कई बार ट्रिपिंग होती है। इसके अलावा लो वोल्टेज भी रहता है। इससे कोई काम नहीं हो पा रहा है।


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दिनचर्या बदलने को मजबूर शहरी
उन्नाव। बिजली की अंधाधुंध कटौती से लोग अपनी दिनचर्या बदलने को मजबूर हो रहे हैं। पानी की समस्या के लिए लोग अब भोर पहर उठकर ही पानी भरने की कवायद में जुट जाते हैं। उधर रात को बिजली की आवाजाही से लोगों की खासकर बच्चों की नींद पूरी नहीं हो पा रही है। आवास विकास कालोनी के रहने वाले अनुराग शुक्ला ने बताया कि भोरपहर बिजली चली जाती है। इसलिए 3 बजे ही उठकर मोटर चलानी पड़ती है। यदि किसी भी दिन थोड़ी देर हो गई तो फिर हैंडपंप पर लाइन में खड़े होना पड़ता है। आदर्शनगर निवासी हरिओम ने बताया कि मौजूदा समय में बिजली की कटौती से हाल बेहाल है। दिन व रात की घोषित व अघोषित बिजली कटौती से आम आदमी हलकान हो रहा है। बिजली न आने से पानी की भी समस्या खड़ी हो गई है।

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उद्योग जगत भी चरमराया
उन्नाव। बिजली कटौती से उद्योगों की भी हालत खराब है। कई फैक्ट्री संचालकों ने एक ही शिफ्ट में काम चलाना शुरु कर दिया है। बिजली न आने से फैक्ट्री संचालकों को घंटों जनरेटर चलाने को मजबूर होना पड़ रहा है। जनरेटर से लागत निकालनी मुश्किल हो रही है। कारोबार भी चौपट हो रहा है। कटौती के चलते कारोबारियों को जेनरेटर पर अतिरिक्त खर्च करना पड़ रहा है। व्यवसाइयों का कहना है कि वे पूरी तरह से जेनरेटर पर निर्भर हो चुके हैं।
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