उन्नाव। ज्येष्ठ की अमावस्या पर महिलाओं ने वट सावित्री व्रत की पूजा कर पति की लंबी आयु की कामना की।
बरगद की पूजा करने के लिए सुहागिन महिलाएं सुबह से ही पूजन सामग्री में बरगद, खरबूजा व सूत आदि अन्य सामग्री का थाल लेकर पहुंची। निकट बरगद के पेड़ पर पहुंचकर पूजा अर्चना की। मान्यता है कि सत्यवान की मृत्यु हो जाने पर जब उसके प्राण लेकर यमराज जाने लगे तो सावित्री पीछे-पीछे चल दी। जब यमराज ने वापस जाने को कहा तो वह बिना पति के जाने को तैयार नहीं हुई। यमराज ने उससे वरदान मांगने को कहा जिस पर उसने पहले अपने अंधे सास ससुर की आंखें और दूसरा उनका खोया राज्य वापस मांगा। यमराज ने तथास्तु कह दिया इसके बाद फिर सावित्री यमराज के पीछे चल दी। कुछ दूर आगे निकलने पर यमराज ने पीछे मुड़कर देखा तो सावित्री आते दिखीं। यमराज ने फिर वरदान मांगने को कहा तो उसने पुत्रवती होने का आशीर्वाद मांगा। यमराज ने भी तथास्तु कह दिया। बाद में जब सोचा तो उन्हें अपनी गलती का अहसास हुआ इस पर उन्होंने उसके पति के प्राणों को छोड़ दिया। तभी से यह व्रत चला आ रहा है। बरगद पूजा के बाद महिलाओं ने एक-दूसरे को कच्चे सूत के धागे का माला बनाकर पहनाया। इसके बाद बरगद खाकर व्रत तोड़ा।