सोनभद्र। किसानों को मालामाल करने वाला टमाटर की खेती से किसान मुंह मोड़ रहे हैं। पिछले वर्ष हुए नुकसान की वजह से इस वर्ष रेहन पर खेत लेने वालों की संख्या नहीं के बराबर रह गई है। यही कारण है कि पिछले वर्ष जहां टमाटर की खेती करने वाले किसान जमींदारों से दस से पंद्रह हजार रुपये प्रति बीघा की दर से खेत रेहन पर ले रहे थे। वहीं, इस वर्ष पांच हजार रुपये प्रति बीघा भी खेत नहीं लेना चाहते हैं। ऐसे में इस वर्ष टमाटर की खेती का रकबा घटने की आशंका है।
लगातार कई वर्षों के अवर्षण ने किसानों का पारंपरिक खेती से मोह भंग कर दिया। कुछ वर्ष पूर्व कम पानी में अच्छी पैदावार होने की वजह से किसानों ने टमाटर की खेती की ओर रुख किया। संभावना देखते हुए विभिन्न बीज कंपनियों ने भी किसानों को प्रोत्साहन दी। इससे वर्ष दर वर्ष टमाटर की खेती का रकबा बढ़ता ही गया। पिछले वर्ष पचास हजार हेक्टेयर में टमाटर की खेती की गई थी। कम पूंजी में अच्छा लाभ मिलने की वजह से कुछ किसानों ने ऊसर भूमि को खेत स्वामी से रेहन पर लेकर खेती शुरू कर दी। वर्ष प्रतिवर्ष रेहन की कीमत भी बढ़ती गई। पिछले वर्ष दस से पंद्रह हजार रुपये प्रति बीघा के हिसाब से खेत लेकर टमाटर की बुआई की गई थी। खेत मालिक भी बेकार पडे़ खेत को टमाटर की खेती के लिए दे देते थे। उससे मिले पैसे से दूसरे अन्न की खेती करते थे। पिछले वर्ष सितंबर महीने में बाढ़ आने से टमाटर की पूरी फसल चौपट हो गई। किसानों ने जब दूसरी बार बीज डाला, तब तक टमाटर की उपज होती बाजार में बाहरी टमाटरों ने कब्जा जमा लिया। इससे किसानों को प्रति बीघा हजारों रुपये का नुकसान हुआ। दस से पंद्रह बीघा में टमाटर लगाने वाले किसानों को तीन से साढ़े तीन लाख रुपये का नुकसान हुआ। यही कारण है कि खेत मालिकों के पास टमाटर की खेती करने वाले किसान पहुंच नहीं रहे हैं। जो किसान पहुंच भी रहे हैं तो वे तीन से चार हजार रुपये प्रति बीघा से ज्यादा देना नहीं चाहते हैं। ऐसे में इस वर्ष टमाटर के खेती का रकबा कम होने की संभावना है।
सोनभद्र। किसानों को मालामाल करने वाला टमाटर की खेती से किसान मुंह मोड़ रहे हैं। पिछले वर्ष हुए नुकसान की वजह से इस वर्ष रेहन पर खेत लेने वालों की संख्या नहीं के बराबर रह गई है। यही कारण है कि पिछले वर्ष जहां टमाटर की खेती करने वाले किसान जमींदारों से दस से पंद्रह हजार रुपये प्रति बीघा की दर से खेत रेहन पर ले रहे थे। वहीं, इस वर्ष पांच हजार रुपये प्रति बीघा भी खेत नहीं लेना चाहते हैं। ऐसे में इस वर्ष टमाटर की खेती का रकबा घटने की आशंका है।
लगातार कई वर्षों के अवर्षण ने किसानों का पारंपरिक खेती से मोह भंग कर दिया। कुछ वर्ष पूर्व कम पानी में अच्छी पैदावार होने की वजह से किसानों ने टमाटर की खेती की ओर रुख किया। संभावना देखते हुए विभिन्न बीज कंपनियों ने भी किसानों को प्रोत्साहन दी। इससे वर्ष दर वर्ष टमाटर की खेती का रकबा बढ़ता ही गया। पिछले वर्ष पचास हजार हेक्टेयर में टमाटर की खेती की गई थी। कम पूंजी में अच्छा लाभ मिलने की वजह से कुछ किसानों ने ऊसर भूमि को खेत स्वामी से रेहन पर लेकर खेती शुरू कर दी। वर्ष प्रतिवर्ष रेहन की कीमत भी बढ़ती गई। पिछले वर्ष दस से पंद्रह हजार रुपये प्रति बीघा के हिसाब से खेत लेकर टमाटर की बुआई की गई थी। खेत मालिक भी बेकार पडे़ खेत को टमाटर की खेती के लिए दे देते थे। उससे मिले पैसे से दूसरे अन्न की खेती करते थे। पिछले वर्ष सितंबर महीने में बाढ़ आने से टमाटर की पूरी फसल चौपट हो गई। किसानों ने जब दूसरी बार बीज डाला, तब तक टमाटर की उपज होती बाजार में बाहरी टमाटरों ने कब्जा जमा लिया। इससे किसानों को प्रति बीघा हजारों रुपये का नुकसान हुआ। दस से पंद्रह बीघा में टमाटर लगाने वाले किसानों को तीन से साढ़े तीन लाख रुपये का नुकसान हुआ। यही कारण है कि खेत मालिकों के पास टमाटर की खेती करने वाले किसान पहुंच नहीं रहे हैं। जो किसान पहुंच भी रहे हैं तो वे तीन से चार हजार रुपये प्रति बीघा से ज्यादा देना नहीं चाहते हैं। ऐसे में इस वर्ष टमाटर के खेती का रकबा कम होने की संभावना है।