‘अंतर्राष्ट्रीय सट्टेबाजों की जमात है आईपीएल ’
- क्रिकेट में बढ़ते विवादों पर खिन्न हैं बुद्धिजीवी
सिटी रिपोर्टर
शाहजहांपुर। भद्रजनों का खेल कहा जाने वाला क्रिकेट आजकल घिनौनी करतूतों से बदनाम हो रहा है। पैसे के लोभ-लालच में फंसे खिलाड़ी हों या आईपीएल के फ्रेंचाइजी। सभी ने खेल को ही शिकस्त देने का काम किया है। ग्लैमर और पैसे की चकाचौंध ने इससे जुड़े हर किसी की आंखों का पानी मार दिया है। चाहें शाहरुख खान प्रकरण हो या माल्या कांड। मुंबई की रेव पार्टी हो या भज्जी का थप्पड़ एपीसोड। कहीं न कहीं खेल ही हारा है। इस बारे में कुछ बुद्धिजीवियों से अमर उजाला ने बातचीत की, तो उसका सार यही निकला कि क्रिकेट का हर संस्करण अंतर्राष्ट्रीय सट्टेबाजों की जमात भर रह गया है।
अब इससे उबरना मुश्किल
‘क्रिकेट कभी भारतीय सभ्यता का खेल नहीं रहा। इसे भद्रजनों का खेल कहना ही गलत है। क्रिकेट तो अंग्रेजों ने भारतीयों को अपमानित करने के लिए शुरू किया था, लेकिन पैसे के लालच में यह भारतीयों में इस कदर रच-बस गया है कि अब इससे उबरना मुश्किल हो रहा है।’
- डॉ. रवि मोहन, होम्योपैथिक चिकित्सक
अब नहीं रहा भद्रजनों का खेल
‘जिस दिन से क्रिकेट मैदान पर युवतियों ने अर्द्धनग्न होकर डांस करना आरंभ किया, उसी दिन से यह भद्रजनों का नहीं रहा। गुलामों की तर्ज पर जहां खिलाड़ियों की नीलामी होने लगे वहां खेल कैसे हो सकता है। इससे खेल को ही नुकसान हो रहा है।’
- डॉ. आदर्श पांडेय, प्रवक्ता एसएस कॉलेज
बंद होना चाहिए आईपीएल
‘आईपीएल के बहाने देश के साथ खुली गद्दारी हो रही है। देश का पैसा विदेशों में जा रहा है। नीलाम होने के बाद खिलाड़ियों में गुलामी की आदत पड़ती जा रही है। चियर लीडर्स के नाम पर खुलेआम नंगई दिखाई जा रही है। घिनौना आईपीएल बंद होना चाहिए।’
- सोनिया राठौर, समाजसेविका
क्रिकेट बन चुका है व्यापार
‘खिलाड़ियों में खेल भावना का हृास हो रहा है। बिकने के बाद वह अपने मन से खेल नहीं पा रहे हैं। अपने फ्रैंचाइजी के इशारों पर रहना और कंपनियों के स्टिकर लगाकर मैदान में उतरना व्यवसायिक नजरिया दर्शाता है। आईपीएल ने रही-बची कसर भी पूरी कर दी है।’
- अर्चना वर्मा, पूर्व जिला पंचायत अध्यक्ष