अमरिया। समाज में महिलाओं की बराबर की भागीदारी है। बावजूद इसके बेटा और बेटी में भेदभाव किया जा रहा है। जिसे समाज से खत्म करने की जरूरत है। इसके लिए महिलाओं को एक जुट होकर नारी गरिमा के प्रति लोगों को जागरूक करने की जरूरत है। अमर उजाला अपराजिता 100 मिलियन स्माइल्स अभियान के तहत मंगलवार को गुरुनानक इंटर कॉलेज में ‘महिलाओं की सुरक्षा’ विषय पर विचार गोष्ठी में ये बातें शिक्षिका अकविंदर कौर ने कही।
मंगलवार को अमरिया के गांव चठिया भैंसठा स्थित गुरुनानक इंटर कॉलेज में हुए कार्यक्रम को संबोधित करते हुए कॉलेज के प्रधानाचार्य सतनाम सिंह ने कहा कि समाज में कुछ स्थानों पर लोग आज भी बेटा और बेटी में फर्क करते हैं। बेटे के जन्म पर खुशियां और बेटी के जन्म से परेशान हो जाते है। जबकि बेटियां हर क्षेत्र में माता पिता का नाम रोशन कर रहीं है। लोगों को इस सोच को बदला चाहिए। समाज में महिला और पुरुष दोनों बराबर के भागीदार है। इस मानसिकता को बदलने के लिए केवल कानून बनाने से कुछ नहीं होगा। बल्कि हम सभी को यह तय करना होगा कि बेटी के जन्म पर भी वैसे ही खुशी मनाएं जैसे बेटे के जन्म पर मनाई जाती है। शिक्षिका सीमा खान ने कहा कि अपनी स्थिति बेहतर बनाने के लिए महिलाओं को खुद में बदलाव लाकर अपराजिता बनना होगा। उन्होंने कहा कि आज महिलाएं हर क्षेत्र में अपनी प्रतिभा का लोहा मनवा रही हैं। वे किसी मामले में पुरुषों से कम नहीं हैं। उन्होंने कहा कि सरकार ने महिलाओं के लिए कड़े कानून बनाए हुए हैं। यदि कुछ भी गलत हो रहा हो तो उसे बिल्कुल बर्दाश्त न करें महिला हेल्पलाइन नंबर पर काल कर तुरंत पुलिस की मदद लें।
शिक्षा और रोजगार के जरिए ही महिलाओं एवं लड़कियों की दशा में बदलाव आएगा। अपराजिता उन्हें ऐसा मंच प्रदान करेगी जहां से हम अपने बदलाव की कहानियां खुद लिखेंगे। - कल्पना राठौर, छात्रा
समाज में लड़कियों की स्थिति में परिवर्तन आ रहा है। अब भी हमें बहुत लंबा रास्ता तय करना है। अपराजिता जैसे अभियान से जुड़कर लड़कियों की स्थिति में बदलाव लाया जा सकता है। - राखी कुमारी, छात्रा
समाज की सोच में बदलाव लाने के लिए इस तरह के अभियान बहुत प्रभावी होते हैं। हमें खुद ही जागरूक होकर अपने हक के लिए आवाज उठानी होगी। इसमें महिलाओं को एक जुट रहने की जरूरत है। - मुस्कान देवी, छात्रा
ग्रामीण क्षेत्रों में लड़कियों एवं महिलाओं की स्थिति बदलने के लिए अपराजिता जैसे कार्यक्रमों की बहुत जरूरत है। इसके लिए हमें खुद जागरूक होकर अपनी आवाज उठानी होगी। - समन बी, छात्रा
अमरिया। समाज में महिलाओं की बराबर की भागीदारी है। बावजूद इसके बेटा और बेटी में भेदभाव किया जा रहा है। जिसे समाज से खत्म करने की जरूरत है। इसके लिए महिलाओं को एक जुट होकर नारी गरिमा के प्रति लोगों को जागरूक करने की जरूरत है। अमर उजाला अपराजिता 100 मिलियन स्माइल्स अभियान के तहत मंगलवार को गुरुनानक इंटर कॉलेज में ‘महिलाओं की सुरक्षा’ विषय पर विचार गोष्ठी में ये बातें शिक्षिका अकविंदर कौर ने कही।
मंगलवार को अमरिया के गांव चठिया भैंसठा स्थित गुरुनानक इंटर कॉलेज में हुए कार्यक्रम को संबोधित करते हुए कॉलेज के प्रधानाचार्य सतनाम सिंह ने कहा कि समाज में कुछ स्थानों पर लोग आज भी बेटा और बेटी में फर्क करते हैं। बेटे के जन्म पर खुशियां और बेटी के जन्म से परेशान हो जाते है। जबकि बेटियां हर क्षेत्र में माता पिता का नाम रोशन कर रहीं है। लोगों को इस सोच को बदला चाहिए। समाज में महिला और पुरुष दोनों बराबर के भागीदार है। इस मानसिकता को बदलने के लिए केवल कानून बनाने से कुछ नहीं होगा। बल्कि हम सभी को यह तय करना होगा कि बेटी के जन्म पर भी वैसे ही खुशी मनाएं जैसे बेटे के जन्म पर मनाई जाती है। शिक्षिका सीमा खान ने कहा कि अपनी स्थिति बेहतर बनाने के लिए महिलाओं को खुद में बदलाव लाकर अपराजिता बनना होगा। उन्होंने कहा कि आज महिलाएं हर क्षेत्र में अपनी प्रतिभा का लोहा मनवा रही हैं। वे किसी मामले में पुरुषों से कम नहीं हैं। उन्होंने कहा कि सरकार ने महिलाओं के लिए कड़े कानून बनाए हुए हैं। यदि कुछ भी गलत हो रहा हो तो उसे बिल्कुल बर्दाश्त न करें महिला हेल्पलाइन नंबर पर काल कर तुरंत पुलिस की मदद लें।
शिक्षा और रोजगार के जरिए ही महिलाओं एवं लड़कियों की दशा में बदलाव आएगा। अपराजिता उन्हें ऐसा मंच प्रदान करेगी जहां से हम अपने बदलाव की कहानियां खुद लिखेंगे। - कल्पना राठौर, छात्रा
समाज में लड़कियों की स्थिति में परिवर्तन आ रहा है। अब भी हमें बहुत लंबा रास्ता तय करना है। अपराजिता जैसे अभियान से जुड़कर लड़कियों की स्थिति में बदलाव लाया जा सकता है। - राखी कुमारी, छात्रा
समाज की सोच में बदलाव लाने के लिए इस तरह के अभियान बहुत प्रभावी होते हैं। हमें खुद ही जागरूक होकर अपने हक के लिए आवाज उठानी होगी। इसमें महिलाओं को एक जुट रहने की जरूरत है। - मुस्कान देवी, छात्रा
ग्रामीण क्षेत्रों में लड़कियों एवं महिलाओं की स्थिति बदलने के लिए अपराजिता जैसे कार्यक्रमों की बहुत जरूरत है। इसके लिए हमें खुद जागरूक होकर अपनी आवाज उठानी होगी। - समन बी, छात्रा