पीलीभीत। दस से बारह घंटे रोज हो रही बिजली कटौती से जनजीवन पर व्यापक असर पड़ रहा है। जितनी देर बिजली नहीं आती उतनी देर पेयजलापूर्ति भी नहीं होती। जॉब पर जाने वाले महिला-पुरुषों की दिनचर्या भी इससे प्रभावित हो रही है। उद्योग जगत पर भी बिजली की कमी का व्यापक असर पड़ रहा है। औद्योगिक इकाईयों के संचालन को बिजली की वैकल्पिक व्यवस्था तो है, लेकिन इन पर अतिरिक्त खर्च से उत्पादन लागत भी बढ़ रही है। इसका सीधा असर जनता की जेब पर पड़ रहा है।
गर्मी जितनी तेजी से बढ़ रही है बिजली कटौती भी उतनी ही तेजी से बढ़ गई है। कंट्रोल से हर रोज होने वाली आठ-नौ घंटे की कटौती के अलावा लोकल फाल्ट दुरुस्त करने में लगने वाले समय में बिजली आपूर्ति बाधित रहने से लोग हाल बेहाल हो रहे हैं। बिजली कटौती ने जॉब करने वाले महिला- पुरुषों की दिनचर्या को भी प्रभावित किया है। पर्याप्त बिजली न मिलने के कारण इनवर्टर चार्ज नहीं हो पा रहे हैं। इसलिए लोगाें को न दिन में चैन मिल रहा है और न ही रात में पूरी नींद सो पा रहे हैं।
जॉब पर निर्धारित समय पर पहुंचने की आपाधापी में बिजली और पानी न मिलने के कारण कई काम छोड़ने पड़ते हैं। नींद पूरी न होने पर आफिस में सुस्ती और नींद का खुमार रहने से काम पर भी असर पड़ रहा है। औद्योगिक क्षेत्र भी बिजली कटौती की मार से बेहाल हो रहे हैं। हालांकि सभी औद्योगिक इकाइयों के पास विकल्प के रूप में बड़े जनरेटर हैं। इन जनरेटरों के सहारे औद्योगिक इकाईयों के संचालन से उत्पादन लागत बढ़ रही है। जिसका सीधा असर आम आदमी की जेब पर पड़ रहा है।
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कार्यक्षमता पर पड़ रहा दुष्प्रभाव
पंजाब नेशनल बैंक के लिपिक निरंजन मंडल का कहना है कि बिजली पानी न मिलने से समाज का हर वर्ग परेशान है। भीषण गर्मी में व्यापक बिजली कटौती ने पानी भी छीन लिया है। बैंक जाने से पहले और लौटने के बाद बिजली पानी की किल्लत से परेशानी बढ़ती ही जा रही है। शारीरिक और कार्य क्षमता पर भी इसका प्रभाव पड़ रहा है।
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काम रह जाते हैं अधूरे
कृषि उत्पादन मंडी समिति के लिपिक जहीर अहमद बताते हैं कि भीषण गर्मी में बिजली कटौती रुलाने लगी है। बिजली नहीं होती है तो पानी के लिए भी परेशान होना पड़ता है। सुबह को समय से कार्यालय आने के लिए कई बार घर के कुछ काम अधूरे रह जाते हैं। कई बार नहाने तक की व्यवस्था नहीं होती। इसका असर पूरे दिन महसूस होता है।
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जॉब वर्क में आती है दिक्कत
लायंस बाल विद्या मंदिर सीनियर सेकेंड्री स्कूल की शिक्षिका कुसुम शर्मा बताती हैं कि बिजली की व्यापक कटौती से दिनचर्या बिगड़ गई है। जॉब पर जाने से पहले घरेलू काम का दायित्व पूरा नहीं हो पा रहा है। जॉब संबंधी दायित्व पूरे करने में भी दिक्कतें आ रही हैं। नियमित रूप से बिजली पानी न मिलने के कारण पूरा परिवार विचलित रहता है।
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त्यागते हैं आराम की इच्छा
निजी चिकित्सालय में नर्स का काम करने वाली चित्रा सक्सेना का कहना है कि बिजली न मिलने के कारण इंवर्टर सही से चार्ज नहीं हो पाता और न ही पानी उपलब्ध होता है। समय पर ड्यूटी आने के लिए घर के काम छोड़ना पड़ते हैं। ड्यूटी से वापस लौटने पर आराम करने की इच्छा होती है लेकिन घर के छोड़े गए अधूरे काम पूरे करने होते हैं।
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विकल्प बढ़ा रहे उत्पादन लागत
ओम राइस मिल के श्रवण कुमार अग्रवाल बताते हैं कि शरीर के लिए जैसे सांस उद्योग के लिए वैसे ही बिजली जरूरी है। जनरेटर तो वेंटीलेटर है। इससे उत्पादन लागत चार गुना बढ़ जाती है। जनरेटर न चलाएं तो लेबर खाली रहेगी, माल तैयार नहीं होगा, बैंक का ब्याज भी बढ़ेगा। यह तमाम खर्च उत्पादन लागत ही तो बढ़ा रहे हैं।
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बंदी के कगार पर उद्योग
करनवाल भोग के नाम से आटा तैयार करने वाले नरेश जायसवाल का कहना है कि बिजली न होने से जनरेटर का इस्तेमाल करना मजबूरी है। इससे डीजल की किल्लत भी बढ़ रही है, सरकार पर सबसिडी का बोझ बढ़ रहा है और उत्पादन लागत भी। लेबर को खाली बिठाए रखें तो वेतन कहां से देंगे। बिजली की व्यापक कटौती से उद्योग बंदी के कगार पर हैं।