इलाकाई करतूत या बाबरिया गिरोह कर रहा बाघों का सफाया
पीलीभीत। क्या वन कर्मी गश्त भी करते हैं? सेव द टाइगर स्लोगन मात्र है? ये ऐसे सवाल हैं जो वन्य जन्तु प्रेमियों के मन में भी हैं और जुबां पर भी। 24 घंटे के भीतर 300 मीटर दूरी में बाघ के दो शव मिलते हैं। शव भी कई घंटे पुराने बताए जा रहे हैं लेकिन चौकसी का दम भरने वाले जंगलात के कर्मियों को इनकी खबर नहीं मिलती। जिले के इतिहास में शायद यह पहला वाकया है जब इतने कम अंतराल में दो बाघों की मौत हुई हो।
बृहस्पतिवार को जब पहले बाघ का शव मिला तो वन अधिकारियों ने दावा किया कि उसकी स्वाभाविक मौत हुई है। उन्होंने बाघ को 15 वर्ष का भी बताया हालांकि पोस्टमार्टम करने वाले डाक्टर उसकी उम्र 10-12 वर्ष बता रहे हैं। वनाधिकारियों का तर्क यह भी था कि बाघ के नाखून, दांत, बाल सुरक्षित हैं तथा शरीर पर चोट के निशान नहीं हैं तो यह स्वाभाविक मौत है। शायद वे इसी थ्योरी पर कायम रहते यदि शुक्रवार को लगभग उसी स्थान पर दूसरे बाघ का शव नहीं मिल जाता।
अब चाहकर भी महकमा मामले को हल्के में नहीं ले सकता। बाघ संरक्षण में लगी एजेंसियां सक्रिय हो गई हैं। सूत्रों के अनुसार दिल्ली से वाइल्ड लाइफ क्राइम कंट्रोल ब्यूरो और टाइगर कंजर्वेशन के बड़े अफसर मामले की जांच के लिए दिल्ली से रवाना हो चुके हैं। मामले की गंभीरता को देख यहां मुख्य वन संरक्षक सुनील चौधरी और विकास वर्मा ने खुद मौके पर बारीकी से निरीक्षण किया।
बाघों की मौत को मानव-वन्य जीव संघर्ष या फिर शिकारियों की करतूत का परिणाम भी माना जा रहा है। गौरतलब है कि बीती 13 मई की सुबह हरीपुर रेंज के गांव जहूरगंज निवासी 50 वर्षीय किसान जगरनाथ को बाघ ने उस समय निवाला बना लिया था, जब वह बाइक से डीजल लेने पूरनपुर जा रहे थे। बाघ उन्हें झाड़ियों में खींच ले गया था। बाद में उनकी लाश बरामद हुई थी। इससे दहशतजदा लोगों ने जंगल में लकड़ियां बीनना तक बंद कर दिया था। आशंका ये भी है कि कहीं किसी ग्रामीण या फिर शिकारियों ने बाघ के भोजन में जहर रख दिया हो। वन विभाग ने कुछ लोगों को पूछताछ के लिए हिरासत में भी लिया है।
दूसरी गौर करने वाली बात यह है कि करीब डेढ़ साल पूर्व वन विभाग के क्राइम कंट्रोल ब्यूरो के उपनिदेशक रमेश पांडेय ने जंगल किनारे बाबरिया गिरोह की आशंका जताई थी। उन्होंने कहा था कि जंगल के रास्ते तस्करी करने के कारण इस गिरोह से वन्य जंतुओं के सामने खतरा उत्पन्न हो गया है। फिलहाल यह जांच का बिंदु हो सकता है, हालांकि वन अधिकारियों ने यहां बावरिया गिरोह की सक्रियता को सिरे से खारिज किया है।
एक नजर में : अब तक हुई बाघों की मौत
1. 1997 : खीरी के दुधवा टाइगर रिजर्व में टाइगर की सड़क दुर्घटना से मौत।
2. 05 मार्च 2000 : बहराइच के कतरनियाघाट वन क्षेत्र में ट्रेन से कटकर बाघिन की मौत।
3. 2005 : कतरनियाघाट में ट्रेन दुर्घटना में बाघिन की मौत।
4. 29 मई 2005 : खीरी के संरक्षित वन क्षेत्र दुधवा इलाके में सोनारीपुर रेंज में ट्रेन की टक्कर से बाघ शावक की मौत।
5. जुलाई 2005 : दुधवा पार्क में ट्रेन से कटकर बाघिन की मौत।
5. 15 अप्रैल 2006 : दुधवा स्टेशन से पहले ट्रेन की टक्कर से बाघिन की मौत।
6. 2007 : कतरनिया घाट में सड़क दुर्घटना में बाघ की मौत।
6. वर्ष 2008 में महुरैना डिपो क्षेत्र में सड़क दुर्घटना में बाघ की मौत।
7. 2005 से 11 तक सड़क हादसों तीन बाघों की मौत।
8. जनवरी 2010 : खीरी के परसपुर जंगल में मृत मिला टाइगर।
9-24 मई, 2012 हरीपुर रेंज में मिला नर बाघ का शव