हरीपुर रेंज में बाघ की मौत ने जंगलात की चौकसी को लेकर फिर खड़े किए सवाल
पीलीभीत। संरक्षित वन क्षेत्र हो या फॉरेस्ट एरिया, हर जगह दुर्लभ वन्य जीवों पर संकट है। अधिकांश मामलों में इनकी मौत स्वाभाविक कारणों से मानी जाती है। घटना होने पर वन महकमा वन्य जंतुओं की रक्षा के लिए योजनाएं बनाना शुरू करता है। इन पर अमल कितना होता है यह तो विभाग जाने लेकिन अगली बार फिर किसी वन्य जीव की इसी तरह मौत हो जाती है।
पीलीभीत के हरीपुर रेंज में बाघ के शव को नाले में पड़े हुए 18 से 24 घंटे बीते चुके थे, तब जाकर जंगलात वालों को खबर लगी। इससे वन कर्मियों के गश्त की असलियत पता चलती है। वन विभाग के अनुसार बाघ की मौत स्वाभाविक कारणों से हुई है। यदि यह सही है तो वह बीमार रहा होगा। सतत निगरानी में रहने वाले बाघ की हरकत से उसके बीमार होने या उसके साथ कुछ अस्वाभाविक होने का वन कर्मियों को आखिर क्यों पता नहीं चला होगा? निर्जीव होने के बाद अन्य वन्य जंतुओं की अपेक्षा बाघ की लाश जल्दी खराब होने लगती है। जानकार बताते हैं कि गर्मियों में टाइगर की मौत के छह से आठ घंटे के मध्य पोस्टमार्टम हो जाए, तभी मौत का कारण आसानी से स्पष्ट हो पाता है। इस टाइगर की मौत 18 से 24 घंटे पहले होना माना जा रहा है। उसका अधिकांश भाग सड़ने भी लगा था। अब तो पोस्टमार्टम से भी मौत का असली कारण पता चलेगा, इस पर भी संदेह है।
चाहे खीरी का दुधवा नेशनल पार्क हो, बहराइच का कतरनियाघाट वन क्षेत्र या फिर पीलीभीत का माला वन क्षेत्र, इन इलाकों में किसी न किसी वजह से वन्य जतुंओं पर खतरा मंडराता रहा है, लेकिन इस पर न तो योजनाएं अमल में लाई जा सकीं और न ही दुर्लभ जंतुओं के संरक्षण की योजना धरातल पर उतर सकी। नतीजतन दुर्लभ वन्य जंतुओं का खात्मा हो रहा है।
कब-कब मरे वन्य जंतु
1. 22 मार्च 09 : पीलीभीत के माला जंगल में सड़क दुर्घटना में भालू की मौत।
2. 14 नवंबर 10 : पीलीभीत-पूरनपुर रेल मार्ग पर स्थित माला जंगल में गोकुल एक्सप्रेस की चपेट में आकर चार चीतलों की जान गई।
3. 05 मार्च 2000 में बहराइच के कतरनियां घाट वन क्षेत्र में ट्रेन से कटकर बाघिन की मौत।
4. 29 मई 2005 : खीरी के संरक्षित वन क्षेत्र दुधवा इलाके में सोनारीपुर रेंज में ट्रेन की टक्कर से बाघ शावक की मौत।
5. 15 अप्रैल 2006 : दुधवा स्टेशन से पहले ट्रेन की टक्कर से बाघिन की मौत।
6. वर्ष 2008 में महुरैना डिपो क्षेत्र में सड़क दुर्घटना में बाघ की मौत।
7. 2005 से 11 तक सड़क हादसों तीन बाघ की मौत हो चुकी है, जबकि हिरन व चीतलों की संख्या दर्जनों में है।
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संरक्षित हों तो बीमारी से बचाए जा सकते हैं टाइगर
पर्यावरणविद टीएच खान का कहना है कि दुर्लभ वन्य जंतुओं को संरक्षित करने वाली योजना हो तो बीमारी की स्थिति में इन्हें बचाया जा सकता है। चूंकि जानवरों के मरने की खबर भी तभी हो पाती है, जब उनके शव सड़ने लगते हैं। इससे यहीं लगता है कि वन कर्मचारी नियमित रूप से गश्त करने के बजाय ड्यूटी के प्रति लापरवाही बरतते हैं।