पीलीभीत। कम समय में अधिक फसलों का उत्पादन धीरे -धीरे परंपरा बनता जा रहा है। उर्वरक, रसायन और कीटनाशकों के इस्तेमाल ने गेहूं से दालों तक और सब्जियों से फलों तक की पैदावार में व्यापक बढ़ोतरी तो की, लेकिन पोशक तत्व नष्ट कर डाले। भूमि की उर्वरा शक्ति भी तेजी से घट रही है। इन फसलों के इस्तेमाल से हार्ट अटैक, कैंसर और मधुमेह जैसे रोग तेजी से बढ़ रहे हैं। जबकि जैविक खेती इसके विपरीत परिणाम देती है। कम मुनाफे के कारण में किसान इस पर ध्यान नहीं दे रहे हैं।
किसानों ने उर्वरकों, पेस्टीसाइड्स, और तरह तरह के केमिकल्स का इस्तेमाल फसलों में किया। नतीजे में गेहूं, धान, गन्ना, सब्जियां और फलों की फसलों में काफी बढ़ोतरी तो हो गई , लेकिन भूमि की उर्वरा शक्ति बेहद कमजोर हो गई। भूमि का आर्गेनिक कार्बन कम होने से किसानों को फसलों में इन तत्वों का प्रयोग बढ़ाना पड़ रहा है। इतना ही नहीं बल्कि उर्वरकों, पेस्टीसाइड्स और केमिकल्स के इस्तेमाल से उपजी फसलें सेहत के लिए नुकसान का कारण बनने लगीं। डाक्टरों की माने तो हरी सब्जियां न सिर्फ सेहत के लिए नुकसान का कारण बल्कि कई गंभीर बीमारियों का सबब भी बन रही हैं। इसे रोकने के लिए कृषि वैज्ञानिकों और कृषि विभाग के पास किसानों को जागरूक करने के सिवा दूसरा कोई चारा ही नहीं है।
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एक चौथाई रह गया आर्गेनिक कार्बन
उर्वरकों, पेस्टीसाइड्स, और तरह तरह के केमिकल्स के इस्तेमाल से भूमि की उर्वरा शक्ति कमजोर हो रही है। भूमि की आर्गेनिक कार्बन क्षमता चौथाई रह गई है। इसे 0.8 होना चाहिए। यह अब 0.2 तक आ गई है। फसल चक्र बदलने और जैविक खादों जैविक रक्षा उत्पादों के इस्तेमाल से ही इसे रोका जा सकता है।
डॉ एनसी त्रिपाठी
कृषि वैज्ञानिक, केवीके
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मानसिकता बदलने का हो रहा प्रयास
कृषि विभाग समय समय पर होने वाली कार्यशालाओं व बैठकों में किसानों को उर्वरकों, पेस्टीसाइड्स, और केमिकल्स का इस्तेमाल न करने के लिए प्रेरित कर रहा है। इसे रोकने के लिए हरी खाद और ढ़ैंचा की बुवाई करने की सलाह दी जाती है। कृषकों की मानसिकता बदलने का हर संभव प्रयास किया जा रहा है।
पीएल गंगवार
उप जिला कृषि अधिकारी
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खतरनाक रोगों में हो रही बढ़ोत्तरी
कृषि उत्पादों में बढ़ता उर्वरकों, पेस्टीसाइड्स, और केमिकल्स का इस्तेमाल लोगों के जीवन से खिलवाड़ है। अन्न से लेकर सब्जियां और फल सभी कुछ अपनी पौष्टिक क्षमता खो रहे हैं। इनके इस्तेमाल से कई प्रकार के रोग तेजी से बढ़े हैं। यह उत्पाद कैंसर, हार्टअटैक और मधुमेह का कारण बन रहे हैं।
डॉ आदित्य पांडे
फिजीशियन