पीलीभीत। बात अभिरुचि की है। क्षेत्र कोई भी हो। प्रतिभाओं को आगे बढ़ाने वाले एक ‘गुरू’ की जरूरत होती है। शहर में इस संवाददाता ने रंगमंच में रुचि रखने वालों से बात की तो उनके दिल का दर्द फूट कर बाहर आ गया। लोगों ने बताया कि गांधी प्रेक्षागृह बने दो दशक से अधिक बीत गए। थिएटर की दृष्टि से अब तक यहां कोई नाटक नहीं खेला गया। कहा, हालांकि प्रतिभाएं हैं। लेकिन उन्हें एक प्लेटफार्म पर लाने वाला नहीं। इसके लिए प्रयास किसी ने नहीं कि ए।
दुर्भाग्य ही है रंगमंच का अभाव
सरदार हजारा सिंह संगीतकार हैं। 81 के हो रहे हैं। नेत्रहीन हैं। संगीत में पीजी हैं। बोले, यदि प्रेक्षागृह में कभी कोई नाटक होता तो वह संगीत की लहरियों से ही सब कुछ समझ लेते। रंगमंच के अभाव को वह शहर का दुर्भाग्य मानते हैं। इसका कारण स्कूलों में गतिविधियां नहीं होना है।
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जरूरत है एक नेतृत्व की
लिटिल एंजिल्स स्कूल में संगीत की प्राध्यापिका सौम्या सक्सेना का कहना है कि नेतृत्व का अभाव है। प्रतिभाएं कम नहीं है। संस्था बना टीम खड़ी करने वाला कोई नहीं ।प्रेक्षागृह में नाटक हों। एक नेतृत्व की जरूरत है। कोेई रंगकर्मी प्रयास करता तो प्लेटफार्म मिल जाता।
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प्लेटफार्म देने की कोशिश की
पेंटिंग के मास्टर टंडन प्रसाद शर्मा 60 के हो रहे हैं। अभिनय में स्वयं भी रुचि रखते हैं। बोले, नाटक देखे भी हैं, लेकिन वास्तव में इस शहर में थिएटर के प्रति कोई जागरूकता नहीं है। कई बार टीम बनाने का विचार बनाया, लेकिन उन्हें सफलता नहीं मिल सकी।
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जागरूकता की है कमी
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प्रसिद्ध बांसुरी वादक दिनेश यादव का स्पष्ट कहना है कि प्रतिभाओं की कोई कमी नहीं है, लेकिन नेतृत्व की कमी को एक बड़ा दुर्भाग्य मानते हैं। बोले, लोक कला मंच बनाया, लेकिन सफलता नहीं मिली। लोगों में जागरूकता की कमी है। वह चाहते हैं कि अभिनय के क्षेत्र में लोग आगे आएं।