माधोटांडा। अब तराई क्षेत्र में भी मलेरिया निरोधक औषधिओं की खेती शुरू हो गई है और किसानों को भी अन्य कृषि फसलों के मुकाबले इससे खासा लाभ हो रहा है। यह पौधा जहां लगा होता है, वहां मच्छर नहीं आता।
माधोटांडा क्षेत्र के तराई इलाके में अब किसानों ने आरटीपीसिया नामक औषधीय पौध की पैदाबार शुरू कर दी है। इस पौध का बीज मध्य प्रदेश के रतलाम क्षेत्र के एक कंपनी यहां किसानों के पास पहुंचाती है। कीरतपुर में फार्मर चमकोर सिंह उर्फ रुप्पल सहित लगभग 60-65 एकड़ में किसान यह खेती कर रहे हैं। कृषक चमकोर सिंह बताते हैं कि यह मलेरिया निरोधक औषधीय है। इसके बीज को धान की तरह पहले छोटे से क्षेत्र में बोया जाता है और उसके बाद जब धान की पौध की तरह पौधा तैयार होता है तो उसको खेत में लगाया जाता है। वे बताते है कि इस औषधि का एक पेड़ यदि घर में लगा दिया जाए तो मच्छर नहीं आता। फरवरी माह में इसका बीज बोया जाता है और मई- जून में यह पौध जब छह से सात फिट ऊंची हो जाती है तब इसको काटकर इसकी पत्ती को सुखाया जाता है और मध्य प्रदेश से ही कंपनी के लोग यहां आकर किसान के यहां से 35 रुपये किलो खरीद कर ले जाते है। श्री सिंह बताते है कि एक एकड़ में 15-16 कुंतल तक पैदाबार होती है। अब क्षेत्र में इस औषधि पौध की पैदाबार लगातार बढ़ती जा रही है। उन्होंने बताया कि मलेरिया निरोधक दवाई इससे बनती है और आगे से वह लोग क्षेत्र में इसकी पैदावार बढ़ने का मन बना चुके हैं।
माधोटांडा। अब तराई क्षेत्र में भी मलेरिया निरोधक औषधिओं की खेती शुरू हो गई है और किसानों को भी अन्य कृषि फसलों के मुकाबले इससे खासा लाभ हो रहा है। यह पौधा जहां लगा होता है, वहां मच्छर नहीं आता।
माधोटांडा क्षेत्र के तराई इलाके में अब किसानों ने आरटीपीसिया नामक औषधीय पौध की पैदाबार शुरू कर दी है। इस पौध का बीज मध्य प्रदेश के रतलाम क्षेत्र के एक कंपनी यहां किसानों के पास पहुंचाती है। कीरतपुर में फार्मर चमकोर सिंह उर्फ रुप्पल सहित लगभग 60-65 एकड़ में किसान यह खेती कर रहे हैं। कृषक चमकोर सिंह बताते हैं कि यह मलेरिया निरोधक औषधीय है। इसके बीज को धान की तरह पहले छोटे से क्षेत्र में बोया जाता है और उसके बाद जब धान की पौध की तरह पौधा तैयार होता है तो उसको खेत में लगाया जाता है। वे बताते है कि इस औषधि का एक पेड़ यदि घर में लगा दिया जाए तो मच्छर नहीं आता। फरवरी माह में इसका बीज बोया जाता है और मई- जून में यह पौध जब छह से सात फिट ऊंची हो जाती है तब इसको काटकर इसकी पत्ती को सुखाया जाता है और मध्य प्रदेश से ही कंपनी के लोग यहां आकर किसान के यहां से 35 रुपये किलो खरीद कर ले जाते है। श्री सिंह बताते है कि एक एकड़ में 15-16 कुंतल तक पैदाबार होती है। अब क्षेत्र में इस औषधि पौध की पैदाबार लगातार बढ़ती जा रही है। उन्होंने बताया कि मलेरिया निरोधक दवाई इससे बनती है और आगे से वह लोग क्षेत्र में इसकी पैदावार बढ़ने का मन बना चुके हैं।