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लखनऊ। मायावती सरकार में राजधानी तथा नोएडा में अंबेडकर स्मारकों के निर्माण के लिए पत्थरों की खरीद-फरोख्त में 59 कंपनियों व फर्र्मों की भूमिका संदेह के घेरे में है। लोक आयुक्त की निगरानी में इस मामले की जांच कर रहे ईओडब्ल्यू ने इन कंपनियों की भूमिका पर सवाल तो खड़े किए हैं लेकिन न तो इनका ब्यौरा तैयार किया है और न ही इनसे जुड़े लोगों के बयान दर्ज किए हैं। यही नहीं प्रारंभिक जांच रिपोर्ट में यह भी सामने आया है कि पत्थरों की खरीद-फरोख्त में जमकर खेल हुआ। पूर्व में जिस दर पर पत्थर खरीदने की बात सामने आई थी उससे ज्यादा दर पर भुगतान किया गया। ऊंची दर पर पत्थरों की खरीद का अनुमोदन देने के लिए तत्कालीन कैबिनेट मंत्री नसीमुद्दीन सिद्दीकी, बाबू सिंह कुशवाहा के साथ-साथ कुछ आईएएस अधिकारियों और पीडब्ल्यूडी के प्रमुख अभियंता टी. राम पर भी उंगली उठाई गई है।
लोक आयुक्त मंगलवार को पूरे दिन स्मारक घोटाले पर ईओडब्ल्यू की प्रारंभिक जांच रिपोर्ट का परीक्षण करने में जुटे रहे। चूंकि अभी उन्होंने पूरी रिपोर्ट का अध्ययन नहीं किया है इसलिए आज उन्होंने ईओडब्ल्यू के अफसरों को बुलाया नहीं। जांच रिपोर्ट में 59 कंपनियों व फर्मों के नामों का खुलासा किया गया है लेकिन इन कंपनियों के कर्ता-धर्ता व हिस्सेदारों का बयान दर्ज नहीं किया गया है। पत्थरों की आपूर्ति में भी घालमेल का पता चला है। पत्थरों की आपूर्ति करने वाले कंसोर्टियम में तीन तत्कालीन विधायकों, दो वकीलों, एक डॉक्टर तथा मिर्जापुर के बसपा जिलाध्यक्ष के भाई भी शामिल हैं लेकिन जांच रिपोर्ट में इनके नाम शामिल नहीं किए गए हैं। जिन 59 कंपनियों व फर्मों का जिक्र रिपोर्ट में किया गया है उनके संबंध में ईओडब्ल्यू ने कोई ब्योरा जुटाने की जहमत नहीं उठाई। मसलन ये कंपनियां किसकी हैं? इनका संचालक या निदेशक कौन है? पार्टनर कौन हैं? क्या इन्हें कोई राजनीतिक संरक्षण प्राप्त था? इन कंपनियों का चयन कैसे किया गया? इन बिंदुओं पर जांच रिपोर्ट में कोई टिप्पणी नहीं की गई है।
पत्थरों की कीमत से ज्यादा भुगतान
प्रारंभिक जांच रिपोर्ट में स्मारकों के लिए खरीदे गए पत्थरों की कीमत से ज्यादा दरों पर भुगतान की बात भी सामने आई है। लोक आयुक्त के अनुसार मिर्जापुर से राजस्थान तक पत्थर भेजने तथा वहां कटिंग आदि कराने के बाद निर्माण स्थल तक पहुंचाने में कुल व्यय 1890 रुपये प्रति घनफुट का खर्च अनुमोदित किया गया। यह पूर्व में बताई गई कीमत से काफी ज्यादा है। इस दर का अनुमोदन तत्कालीन मंत्री नसीमुद्दीन, बाबू सिंह कुशवाहा, आईएएस रवींद्र सिंह, हरभजन सिंह व प्रमुख अभियंता टी. राम ने दिया था। इन्हें भी पूछताछ के लिए बुलाया जा सकता है।
कमीशनबाजी का जिक्र पर साक्ष्य नहीं
ईओडब्ल्यू की प्रारंभिक जांच रिपोर्ट में नोएडा में पत्थरों की आपूर्ति करने वालों को 33 फीसदी कटौती करके भुगतान करने का जिक्र किया गया है। जांच रिपोर्ट में भुगतान के समय 12.5 से 15 प्रतिशत तक कमीशन लिए जाने का भी उल्लेख किया गया है। कमीशन लेने वालों में 25 एकाउटेंट का नाम बताए गए हैं। हालांकि इसके समर्थन में कोई साक्ष्य नहीं है।
वर्जन
ईओडब्ल्यू ने बहुत ही सतही तौर पर जांच की है। जांच अधूरी है और इसके आधार पर अभी तक कोई निष्कर्ष नहीं निकाला जा सका है। खरीदे गए पत्थरों की दरों में काफी अंतर की बात भी सामने आई है। जांच एजेंसी ने अपनी रिपोर्ट में जिन कंपनियों की भूमिका पर सवाल उठाए हैं उनसे जुड़े लोगों केबयान भी दर्ज नहीं किए गए हैं। ज्यादा दर पर भुगतान का अनुमोदन देने में नसीमुद्दीन सिद्दीकी, बाबू सिंह कुशवाहा, रवींद्र सिंह, हरभजन सिंह व टी. राम का नाम भी सामने आ रहा है। जरूरत पड़ने पर इनसे भी पूछताछ की जा सकती है। पूरी रिपोर्ट का अध्ययन करने के बाद ही आगे की कार्यवाही का फैसला किया जाएगा।
न्यायमूर्ति एन.के.मेहरोत्रा, लोक आयुक्त
लखनऊ। मायावती सरकार में राजधानी तथा नोएडा में अंबेडकर स्मारकों के निर्माण के लिए पत्थरों की खरीद-फरोख्त में 59 कंपनियों व फर्र्मों की भूमिका संदेह के घेरे में है। लोक आयुक्त की निगरानी में इस मामले की जांच कर रहे ईओडब्ल्यू ने इन कंपनियों की भूमिका पर सवाल तो खड़े किए हैं लेकिन न तो इनका ब्यौरा तैयार किया है और न ही इनसे जुड़े लोगों के बयान दर्ज किए हैं। यही नहीं प्रारंभिक जांच रिपोर्ट में यह भी सामने आया है कि पत्थरों की खरीद-फरोख्त में जमकर खेल हुआ। पूर्व में जिस दर पर पत्थर खरीदने की बात सामने आई थी उससे ज्यादा दर पर भुगतान किया गया। ऊंची दर पर पत्थरों की खरीद का अनुमोदन देने के लिए तत्कालीन कैबिनेट मंत्री नसीमुद्दीन सिद्दीकी, बाबू सिंह कुशवाहा के साथ-साथ कुछ आईएएस अधिकारियों और पीडब्ल्यूडी के प्रमुख अभियंता टी. राम पर भी उंगली उठाई गई है।
लोक आयुक्त मंगलवार को पूरे दिन स्मारक घोटाले पर ईओडब्ल्यू की प्रारंभिक जांच रिपोर्ट का परीक्षण करने में जुटे रहे। चूंकि अभी उन्होंने पूरी रिपोर्ट का अध्ययन नहीं किया है इसलिए आज उन्होंने ईओडब्ल्यू के अफसरों को बुलाया नहीं। जांच रिपोर्ट में 59 कंपनियों व फर्मों के नामों का खुलासा किया गया है लेकिन इन कंपनियों के कर्ता-धर्ता व हिस्सेदारों का बयान दर्ज नहीं किया गया है। पत्थरों की आपूर्ति में भी घालमेल का पता चला है। पत्थरों की आपूर्ति करने वाले कंसोर्टियम में तीन तत्कालीन विधायकों, दो वकीलों, एक डॉक्टर तथा मिर्जापुर के बसपा जिलाध्यक्ष के भाई भी शामिल हैं लेकिन जांच रिपोर्ट में इनके नाम शामिल नहीं किए गए हैं। जिन 59 कंपनियों व फर्मों का जिक्र रिपोर्ट में किया गया है उनके संबंध में ईओडब्ल्यू ने कोई ब्योरा जुटाने की जहमत नहीं उठाई। मसलन ये कंपनियां किसकी हैं? इनका संचालक या निदेशक कौन है? पार्टनर कौन हैं? क्या इन्हें कोई राजनीतिक संरक्षण प्राप्त था? इन कंपनियों का चयन कैसे किया गया? इन बिंदुओं पर जांच रिपोर्ट में कोई टिप्पणी नहीं की गई है।
पत्थरों की कीमत से ज्यादा भुगतान
प्रारंभिक जांच रिपोर्ट में स्मारकों के लिए खरीदे गए पत्थरों की कीमत से ज्यादा दरों पर भुगतान की बात भी सामने आई है। लोक आयुक्त के अनुसार मिर्जापुर से राजस्थान तक पत्थर भेजने तथा वहां कटिंग आदि कराने के बाद निर्माण स्थल तक पहुंचाने में कुल व्यय 1890 रुपये प्रति घनफुट का खर्च अनुमोदित किया गया। यह पूर्व में बताई गई कीमत से काफी ज्यादा है। इस दर का अनुमोदन तत्कालीन मंत्री नसीमुद्दीन, बाबू सिंह कुशवाहा, आईएएस रवींद्र सिंह, हरभजन सिंह व प्रमुख अभियंता टी. राम ने दिया था। इन्हें भी पूछताछ के लिए बुलाया जा सकता है।
कमीशनबाजी का जिक्र पर साक्ष्य नहीं
ईओडब्ल्यू की प्रारंभिक जांच रिपोर्ट में नोएडा में पत्थरों की आपूर्ति करने वालों को 33 फीसदी कटौती करके भुगतान करने का जिक्र किया गया है। जांच रिपोर्ट में भुगतान के समय 12.5 से 15 प्रतिशत तक कमीशन लिए जाने का भी उल्लेख किया गया है। कमीशन लेने वालों में 25 एकाउटेंट का नाम बताए गए हैं। हालांकि इसके समर्थन में कोई साक्ष्य नहीं है।
वर्जन
ईओडब्ल्यू ने बहुत ही सतही तौर पर जांच की है। जांच अधूरी है और इसके आधार पर अभी तक कोई निष्कर्ष नहीं निकाला जा सका है। खरीदे गए पत्थरों की दरों में काफी अंतर की बात भी सामने आई है। जांच एजेंसी ने अपनी रिपोर्ट में जिन कंपनियों की भूमिका पर सवाल उठाए हैं उनसे जुड़े लोगों केबयान भी दर्ज नहीं किए गए हैं। ज्यादा दर पर भुगतान का अनुमोदन देने में नसीमुद्दीन सिद्दीकी, बाबू सिंह कुशवाहा, रवींद्र सिंह, हरभजन सिंह व टी. राम का नाम भी सामने आ रहा है। जरूरत पड़ने पर इनसे भी पूछताछ की जा सकती है। पूरी रिपोर्ट का अध्ययन करने के बाद ही आगे की कार्यवाही का फैसला किया जाएगा।
न्यायमूर्ति एन.के.मेहरोत्रा, लोक आयुक्त