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अफसर छुट्टी पर, निगम ‘लावारिस’
Moradabad
Updated Fri, 25 May 2012 12:00 PM IST
मुरादाबाद। पिछले करीब दो महीने से नगर निगम का यही हाल है। आए दिन निगम के बड़े अधिकारी छुट्टी पर चले जाते हैं। अभी भी नगर आयुक्त और दोनाें नगर आयुक्त अवकाश पर हैं। इनमें से एक मेडिकल लीव पर हैं तो दूसरे को कोई जरूरी काम है। बारिश सिर पर है, नालों की सफाई से लेकर दवाओं के छिड़काव तक तमाम काम पैंडिंग पड़े हैं। लेकिन नगर निगम लावारिस सरीखा नजर आता है।
अफसरों की तैनाती के बावजूद नगर निगम में तमाम बड़े अफसरों की कुर्सियां अक्सर खाली पड़ी रहती हैं। ऐसे में फरियाद लेकर पहुंचने वाले शहर के लोगों को यहां से कोई राहत नहीं मिलती। लोग यहां आते हैं, किसी को नाला सफाई की बाबत ज्ञापन देना है, कोई सड़क की सफाई तो कोई पानी और कोई पथ प्रकाश की किल्लत लेकर आता है। गुरुवार को भी गोविंद नगर से दीपक, राकेश, सुमित, डबल फाटक से सुरेश और उनके साथी भदौड़ा मुहल्ले से संदीप की अगुवाई में आठ - दस युवक आए थे। जिन्हें अफसरों से मिलकर अपनी समस्या बतानी थी। लेकिन निगम में कोई मिले तो शिकायत करें, यहां तो अफसरों की कुर्सियां ही खाली हैं। जो अधिकारी अवकाश पर नहीं हैं वह भी दफ्तरों में बैठने से परहेज कर रहे हैं। आम आदमी की समस्या निगम अधिकारियों के बीच में चल रही अंदरूनी खींचतान के बीच दबकर रह गई है।
मुरादाबाद। पिछले करीब दो महीने से नगर निगम का यही हाल है। आए दिन निगम के बड़े अधिकारी छुट्टी पर चले जाते हैं। अभी भी नगर आयुक्त और दोनाें नगर आयुक्त अवकाश पर हैं। इनमें से एक मेडिकल लीव पर हैं तो दूसरे को कोई जरूरी काम है। बारिश सिर पर है, नालों की सफाई से लेकर दवाओं के छिड़काव तक तमाम काम पैंडिंग पड़े हैं। लेकिन नगर निगम लावारिस सरीखा नजर आता है।
अफसरों की तैनाती के बावजूद नगर निगम में तमाम बड़े अफसरों की कुर्सियां अक्सर खाली पड़ी रहती हैं। ऐसे में फरियाद लेकर पहुंचने वाले शहर के लोगों को यहां से कोई राहत नहीं मिलती। लोग यहां आते हैं, किसी को नाला सफाई की बाबत ज्ञापन देना है, कोई सड़क की सफाई तो कोई पानी और कोई पथ प्रकाश की किल्लत लेकर आता है। गुरुवार को भी गोविंद नगर से दीपक, राकेश, सुमित, डबल फाटक से सुरेश और उनके साथी भदौड़ा मुहल्ले से संदीप की अगुवाई में आठ - दस युवक आए थे। जिन्हें अफसरों से मिलकर अपनी समस्या बतानी थी। लेकिन निगम में कोई मिले तो शिकायत करें, यहां तो अफसरों की कुर्सियां ही खाली हैं। जो अधिकारी अवकाश पर नहीं हैं वह भी दफ्तरों में बैठने से परहेज कर रहे हैं। आम आदमी की समस्या निगम अधिकारियों के बीच में चल रही अंदरूनी खींचतान के बीच दबकर रह गई है।