मुरादाबाद। आर्थराईटिस नन्हीं उम्र में भी हमलावर हो रहा है। खास बात यह है कि रहयूमोटाइड आर्थराईटिस (गठिया) होने के बाद इसका इलाज किसी भी पैथी में संभव नहीं है। होम्योपैथिक और एलोपैथिक में इसका कोई मुकम्मल इलाज अभी तक नहीं खोजा जा सका है। बस इतना है कि नियमित दवाओं की बदौलत व्यक्ति अपने हाथ पैर अथवा दूसरे अंगों को टेड़ा होने से कुछ वक्त के लिए टाल सकता है।
आईएमए एएमएस की ओर से आईएमए हाल में आयोजित सीएमई में मुख्य वक्ता अखिल भारतीय आयुर्विज्ञान संस्थान के रहयूमेटोलाजी विभाग के रिटायर्ड एचओडी प्रोफेसर डा. एएन मालवीय ने कहा कि गठिया की शुरुआत होने के बाद एक वक्त के साथ व्यक्ति अंगों में टेड़ापन आना लाजिमी है, लेकिन यदि वक्त रहते डायग्नोस कर लिया जाए तो नियमित दवाओं की बदौलत इसे कुछ सालों के लिए टाला जरूर जा सकता है। उन्होंने कहा कि गठिया की पहचान मरीज को देखकर की जा सकती है इसके लिए बहुत अधिक जांचों की जरूरत सामान्य परिस्थितियों में नहीं पड़ती है। बोले, कम उम्र के लोगाें में भी यह बीमारी देखने को मिल रही है। चिकित्सा गोष्ठी में प्रोफेसर मालवीय के सहयोगियों डा. सुजाता मेहता और डा. जे माहेश्वरी ने भी आर्थराईटिस रोगों के बारे में समाज में फैली भ्रांतियों और उसके बचाव एंव उपचार के बारे में विस्तार से चर्चा की। कार्यक्रम की अध्यक्षता आईएमए के अध्यक्ष डा. नितिन बत्रा ने और संचालन आईएमए सेक्रेटरी डा. संजय कुमार गुप्ता ने किया। इस गोष्ठी में डा. विनय गुप्ता, डा. विनीत गर्ग, डा. सुधीर मिढ्डा, डा. मधुलिका बत्रा, डा. प्रीति गुप्ता, डा. नवनीत मदान, डा. अजय अग्रवाल, डा. राजेश सिंह, डा. जेके अग्रवाल, डा. राम मोहन अग्रवाल, डा. आदित्य गुप्ता, डा. आरबी सिंह, डा. यूके शाह आदि उपस्थित थे।