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विलासिता में पड़कर प्रभु से विमुख हो रहा मानव
Mirzapur
Updated Fri, 18 May 2012 12:00 PM IST
हलिया। बरौंधा बाजार में चल रहे सात दिवसीय संगीतमय श्रीमद् भागवत ज्ञानयज्ञ के दूसरे दिन प्रवचन करते कथावाचक डा. रामेश्वर शास्त्री जी ने कहा कि विलासिता में पड़कर मानव प्रभु से विमुख हो रहा है।
उन्होंने कहा कि शास्त्रों और वेदों के सार रूप में श्रीमद् भागवत को भगवान के शब्द विग्रह के रूप में प्रतिष्ठापित किया गया है। कहा कि वैष्णवाचार्यों ने काफी चिंतन करके श्रीमद् भागवत को भगवत स्वरूप में स्वीकार किया है। शास्त्री जी ने कहा कि श्रीकृष्ण कथा सांसारिक झंझावातों में फंसे हुए प्राणियों को भक्ति रस प्रदान कर मोक्ष प्राप्ति का मार्ग दिखाती है। उन्होंने श्रीकृष्ण भक्ति का मनोरम वर्णन करते हुए कहा कि प्रभु अपनी भक्ति के बदले भक्त से केवल प्रेम मांगते हैं। प्रभु का अपने भक्तों से अपार स्नेह रहता है, जो भक्त दास भाव से उसकी आराधना करता है, उस पर भगवान श्रीकृष्ण अपनी रसमयी कृपा दृष्टि की वर्षा करते हैं। महान भक्तों का उल्लेख करते हुए श्री शास्त्री जी ने कहा कि महाराज मनु सतरुपा, कर्दम और देवहूति, अत्रि और अनुसूईया की भक्ति दास भाव से मिश्रित परा भक्ति का प्रतीक है। प्रभु अपने अनन्य भक्तों को केवल दर्शन ही नहीं देते, बल्कि भक्त की पुत्र बनकर सेवा भी करते हैं। उन्होंने कहा कि दुख के समय मानव तो प्रभु का स्मरण करता है, लेकिन सुख में परमात्मा को भूल जाता है। मानव भौतिकता की विलासिता में पड़कर प्रभु की ओर से विमुख होता जा रहा है। कथावाचक ने कहा कि श्रीकृष्ण कथा भक्त को अपने मन से संसार से झंझावातों को हटाकर प्रभु चरणों में एकाग्र होने का मार्ग प्रशस्ति करती है। इस दौरान कार्यक्रम संयोजक श्याम सुंदर केशरी, रमाशंकर केशरी, विजय शंकर मिश्र, दीपचंद्र सोनी, प्रदीप केशरी, गुलाब चंद्र केशरी, मुनि केशरवानी, नितीन गुप्त, चंद्रभूषण पांडेय सहित बड़ी संख्या में नर-नारी उपस्थित रहे।
हलिया। बरौंधा बाजार में चल रहे सात दिवसीय संगीतमय श्रीमद् भागवत ज्ञानयज्ञ के दूसरे दिन प्रवचन करते कथावाचक डा. रामेश्वर शास्त्री जी ने कहा कि विलासिता में पड़कर मानव प्रभु से विमुख हो रहा है।
उन्होंने कहा कि शास्त्रों और वेदों के सार रूप में श्रीमद् भागवत को भगवान के शब्द विग्रह के रूप में प्रतिष्ठापित किया गया है। कहा कि वैष्णवाचार्यों ने काफी चिंतन करके श्रीमद् भागवत को भगवत स्वरूप में स्वीकार किया है। शास्त्री जी ने कहा कि श्रीकृष्ण कथा सांसारिक झंझावातों में फंसे हुए प्राणियों को भक्ति रस प्रदान कर मोक्ष प्राप्ति का मार्ग दिखाती है। उन्होंने श्रीकृष्ण भक्ति का मनोरम वर्णन करते हुए कहा कि प्रभु अपनी भक्ति के बदले भक्त से केवल प्रेम मांगते हैं। प्रभु का अपने भक्तों से अपार स्नेह रहता है, जो भक्त दास भाव से उसकी आराधना करता है, उस पर भगवान श्रीकृष्ण अपनी रसमयी कृपा दृष्टि की वर्षा करते हैं। महान भक्तों का उल्लेख करते हुए श्री शास्त्री जी ने कहा कि महाराज मनु सतरुपा, कर्दम और देवहूति, अत्रि और अनुसूईया की भक्ति दास भाव से मिश्रित परा भक्ति का प्रतीक है। प्रभु अपने अनन्य भक्तों को केवल दर्शन ही नहीं देते, बल्कि भक्त की पुत्र बनकर सेवा भी करते हैं। उन्होंने कहा कि दुख के समय मानव तो प्रभु का स्मरण करता है, लेकिन सुख में परमात्मा को भूल जाता है। मानव भौतिकता की विलासिता में पड़कर प्रभु की ओर से विमुख होता जा रहा है। कथावाचक ने कहा कि श्रीकृष्ण कथा भक्त को अपने मन से संसार से झंझावातों को हटाकर प्रभु चरणों में एकाग्र होने का मार्ग प्रशस्ति करती है। इस दौरान कार्यक्रम संयोजक श्याम सुंदर केशरी, रमाशंकर केशरी, विजय शंकर मिश्र, दीपचंद्र सोनी, प्रदीप केशरी, गुलाब चंद्र केशरी, मुनि केशरवानी, नितीन गुप्त, चंद्रभूषण पांडेय सहित बड़ी संख्या में नर-नारी उपस्थित रहे।