जिस शहर में पंडित रविशंकर, गिरिजा देवी, वासिफुद्दीन डागर, लोक गायिका मालिनी अवस्थी जैसे दिग्गजों ने सुर साधना की है। वहां आज युवा पीढ़ी पाश्चात्य संगीत की ओर झुकने लगी है। मशहूर पार्श्व गायक अनवर, अमित कुमार, अनुराधा पौडवाल, मोहम्मद अजीज, कविता कृष्णमूर्ति, मनहर उधास और अनूप जलोटा ने मेरठ में प्रस्तुतियां दीं। मगर आज शहर के युवा पाश्चात्य संगीत में रुचि दिखा रहे हैं।
ध्रुपद के फनकार उस्ताद वासिफुद्दीन डागर ने 2013 में मेरठ में एक साक्षात्कार में कहा था कि यहां कभी संगीत का दंगल हुआ करता था। देशभर से उस्ताद एक से बढ़कर एक रागों पर वार-प्रतिवार करते थे। आज युवा फास्ट बीट म्यूजिक में रुचि दिखा रहे हैं। उनकी पसंद जल्द गायक बनने की होती है।
17 देशों में मनाया जाता है विश्व संगीत दिवस
विश्व संगीत दिवस सबसे पहले फ्रांस में 21 जून 1982 को मनाया गया। इससे पूर्व अमेरिका के संगीतकार योएल कोहेन ने 1976 में दिवस मनाने की बात की थी। विश्व संगीत दिवस 17 देश भारत, आस्ट्रेलिया, बेल्जियम, ब्रिटेन, लक्समबर्ग, जर्मनी, स्विट्जरलैंड, कोस्टारीका, इजराइल, चीन, लेबनान, मलेशिया, मोरक्को, पाकिस्तान, फ़िलीपींस, रोमानिया और कोलम्बिया में मनाया जाता है।
संगीत की विभिन्न खूबियों की वजह से ही विश्व में संगीत के नाम एक दिन है। इसे ‘फेटे डी ला म्यूजिक’ भी कहते हैं। इसे मनाने का उद्देश्य अलग-अलग तरीके से म्यूजिक का प्रोपेगैंडा तैयार कर एक्सपर्ट व नए कलाकारों को एक मंच पर लाना है।
युवाओं को फास्ट म्यूजिक पसंद
मुझे गायकी का शौक है और अच्छा गायक बनना चाहता हूं। इसलिए मैंने पहले शास्त्रीय संगीत की विधिवत शिक्षा ली। अब बॉलीवुड में खुद को ट्राई कर रहा हूं। अब तक मेरे तीन एलबम आ चुके हैं।
जिन्हें यूट्यूब पर भी डाला है और श्रोताओं ने काफी पसंद किया है। वर्तमान समय की मांग फास्ट बीट संगीत की है। उसके अनुरूप खुद को तैयार करना है। अब संगीत के साथ कॅरियर जुड़ गया है। इसलिए श्रोताओं के अनुसार चलने की जरूरत है।
-आकाश खेमा, युवा संगीत कलाकार
राग, सुर और लोकगायन से शुरू होकर संगीत सीखने का वक्त युवाओं के पास नहीं है। अमूमन लोग समर कैंप या कैप्सूल कोर्स के रूप में संगीत सीखते हैं। उसी से वे म्यूजिक वर्ल्ड में जाना चाहते हैं। अब मोबाइल पर म्यूजिक एप, सिंगिंग एप उपलब्ध हैं। इनसे आसानी से संगीत सीख सकते हैं। स्टूडियो और कई फिल्टर संगीत वर्चुअल दुनिया में आ चुके हैं। ऐसे में विधिवत संगीत की शिक्षा लेना हर किसी की अनिवार्यता नहीं है।
-नकुल गेरा, युवा संगीत कलाकार
हर वर्ष ढाई सौ छात्राएं संगीत विषय में प्रवेश लेती हैं। जिससे सीटें खाली नहीं रहती हैं। ऐसा अच्छे कॉलेजों में प्रवेश का लाभ लेने के लिए भी किया जाता है। वोकेशनल सब्जेक्ट के रूप में हम संगीत की कक्षाएं चला रहे हैं। हालांकि छात्राओं की रुचि बैंड और पॉप गायन में ज्यादा होती है।
-डॉ. शैल शर्मा, एचओडी म्यूजिक गार्गी गर्ल्स स्कूल
रियलिटी शो में देशभर के युवा कलाकार भाग लेते हैं। मंच पर आते हैं, गाते हैं और इनाम जीतते हैं। इसके बाद गायब हो जाते हैं। इसके पीछे मुख्य कारण उनमें साधना की कमी है। युवा इस बात को नहीं समझते।आज का युवा संगीत से दूरी बनाएं हुए है। युवाओं कोे इस ओर धयान देना चाहिए।
-डॉ. वेणु वनीता, एचओडी संगीत केएल डिग्री कॉलेज
शास्त्रीय संगीत में रुचि रखने वाले युवा बहुत कम हैं। कॉलेज में जब छात्राओं को राग और सुरों की जानकारी देती थीं तो उनका मन फिल्मी गाना और पॉप म्यूजिक में ज्यादा लगता था।
-डॉ. रागिनी प्रताप पूर्व विभागाध्यक्ष संगीत विभाग कनोहर लाल डिग्री कॉलेज
युवाओं को सुरों, राग और संगीत की तकनीकी शिक्षा में रुचि नहीं है। वे शॉर्टकट अपनाकर जल्द गायक बनना चाहते हैं। इसीलिए सिर्फ गानों को सीखते हैं। संगीत के तकनीकी पक्ष और बारीकी को सीखना पसंद नहीं करते हैं।
- डॉ. रेखा सेठ पूर्व एचओडी संगीत विभाग, इस्माईल डिग्री कॉलेज।
आठ से दस घंटे रियाज किया
पश्चिमी उत्तर प्रदेश के अतराड़ा और कैराना घरानों ने संगीत जगत को अनमोल रत्नों से नवाजा। इन घरानों से मोहम्मद रफी, पंडित भीमसेन जोशी, कुमार गंधर्व जैसे संगीत रत्न निकले हैं। अजराड़ा घराने ने गायन और तबला वादन में अलग छाप छोड़ी है। 8 से 10 घंटे रियाज किया जाता था तब कहीं जाकर गले में सरस्वती आती थी। अब ये सब गुजरे जमाने की बातें हैं।
-उस्ताद अकरम खां, तबला वादक अजराड़ा घराना
बड़ा संदेश देते हैं पश्चिमी उत्तर प्रदेश के लोकगीत
लोक गायिका नीता गुप्ता कहती हैं कि पश्चिमी उत्तर प्रदेश के लोकगीत बड़ा संदेश देते हैं। पश्चिमी उत्तर प्रदेश की महिलाओं में इतनी सकारात्मकता है कि पति का प्रेम न मिलने पर वह कहती हैं कच्चा नींबू खट्टा कभी तो मीठा होएगा, सासु तेरा बेटा कदे तो मेरा होयेगा। जिंदगी में टिट फ़ॉर टेट वाला फंडा लोकगीत वर्षों से सिखा रहे हैं। इन गीतों को देखें तो कौन कहेगा कि वेस्ट यूपी की महिलाएं पिछड़ी थीं।
जल्दी बोर हो जाते हैं
इस प्रकाश के शो से युवाओं को प्रतिभा दिखाने के लिए मंच मिला है मगर इसने युवाओं को शॉर्टकट का आदी बना दिया है। बच्चे जल्द से जल्द मंच पर प्रस्तुति देकर मशहूर होना चाहते हैं। यही वजह है कि उनमें लगन घटी है। वे संगीत से जल्दी बोर हो जाते हैं।
-डॉ. रीना गुप्ता, संगीत शिक्षिका, इस्माईल कॉलेज
संगीत में घट रही रुचि
हर वर्ष 100 से अधिक विद्यार्थी संगीत की शिक्षा लेकर निकलते हैं। उनमें 80 ऐसे होते हैं जो वेस्टर्न म्यूजिक ही सीखने आते हैं।
-राकेश जौहरी, संचालक मनहर स्टूडियो संगीत विद्यालय सदर
जिस शहर में पंडित रविशंकर, गिरिजा देवी, वासिफुद्दीन डागर, लोक गायिका मालिनी अवस्थी जैसे दिग्गजों ने सुर साधना की है। वहां आज युवा पीढ़ी पाश्चात्य संगीत की ओर झुकने लगी है। मशहूर पार्श्व गायक अनवर, अमित कुमार, अनुराधा पौडवाल, मोहम्मद अजीज, कविता कृष्णमूर्ति, मनहर उधास और अनूप जलोटा ने मेरठ में प्रस्तुतियां दीं। मगर आज शहर के युवा पाश्चात्य संगीत में रुचि दिखा रहे हैं।
ध्रुपद के फनकार उस्ताद वासिफुद्दीन डागर ने 2013 में मेरठ में एक साक्षात्कार में कहा था कि यहां कभी संगीत का दंगल हुआ करता था। देशभर से उस्ताद एक से बढ़कर एक रागों पर वार-प्रतिवार करते थे। आज युवा फास्ट बीट म्यूजिक में रुचि दिखा रहे हैं। उनकी पसंद जल्द गायक बनने की होती है।
17 देशों में मनाया जाता है विश्व संगीत दिवस
विश्व संगीत दिवस सबसे पहले फ्रांस में 21 जून 1982 को मनाया गया। इससे पूर्व अमेरिका के संगीतकार योएल कोहेन ने 1976 में दिवस मनाने की बात की थी। विश्व संगीत दिवस 17 देश भारत, आस्ट्रेलिया, बेल्जियम, ब्रिटेन, लक्समबर्ग, जर्मनी, स्विट्जरलैंड, कोस्टारीका, इजराइल, चीन, लेबनान, मलेशिया, मोरक्को, पाकिस्तान, फ़िलीपींस, रोमानिया और कोलम्बिया में मनाया जाता है।
संगीत की विभिन्न खूबियों की वजह से ही विश्व में संगीत के नाम एक दिन है। इसे ‘फेटे डी ला म्यूजिक’ भी कहते हैं। इसे मनाने का उद्देश्य अलग-अलग तरीके से म्यूजिक का प्रोपेगैंडा तैयार कर एक्सपर्ट व नए कलाकारों को एक मंच पर लाना है।