मेरठ। छह साल पुराने बागपत के विशिष्ट बीटीसी घोटाले की विवेचना पूरी हो गई है। जिसमें तत्कालीन बीएसए और दो लिपिक समेत 19 आरोपियों के खिलाफ भ्रष्टाचार निवारण संगठन मेरठ ने चार्जशीट देने की तैयारी है। विवेचना में बीएसए कार्यालय के साथ ही लखनऊ विश्वविद्यालय के लिपिक और अफसरों की भूमिका पर भी सवालिया निशान लगे हैं, इनके खिलाफ क्राइम ब्रांच लखनऊ और विजिलेंस जांच की भी संस्तुति की गई है।
यह था मामला
समाजवादी युवजन सभा मेरठ के महासचिव रविंद्र प्रेमी ने 11 सितंबर 2006 को शासन से शिकायत करते हुए बागपत के तत्कालीन बीएसए धर्मवीर सिंह और अन्य के खिलाफ विशिष्ट बीटीसी अभ्यर्थियों की फर्जी डिग्री पर नियुक्ति व भ्रष्टाचार के आरोप लगाए थे। शासन ने इसकी जांच भ्रष्टाचार निवारण संगठन मेरठ सेक्टर को सौंपी थी। जांच के बाद तत्कालीन बीएसए और अन्य लोगों के खिलाफ 19 फरवरी 2008 को कोतवाली बागपत में भ्रष्टाचार की धाराओं में केस दर्ज कराया गया था, जिसकी विवेचना शुरू कर दी गई थी।
यह निकला निष्कर्ष
विवेचना के दौरान तत्कालीन बीएसए धर्मवीर सिंह, कनिष्ठ लिपिक व प्रभारी विशिष्ट बीटीसी सर्व शिक्षा अभियान बीएसए कार्यालय, अनिल कुमार पांडेय लिपिक लखनऊ विश्वविद्यालय के अलावा 16 अभ्यर्थियों/अध्यापकों के खिलाफ आरोप सही पाए गए। जिनमें सात महिला अभ्यर्थी हैं। शासन के सूत्रों के अनुसार विवेचना में सामने आया कि लखनऊ विश्वविद्यालय द्वारा इस संबंध में सूचनाएं मूल अभिलेखों से सत्यापित करके नहीं भेजी गईं। अफसरों ने निचले स्तर पर ही (लिपिक वर्ग) पर भरोसा कर बिना सोचे समझे अपने हस्ताक्षर व सत्यापन कर दिए। साथ ही अभ्यर्थियों के प्राप्तांकों को बिना किसी आधार के काट छांटकर बढ़ाकर उत्तीर्ण कर दिया गया। सूत्रों का कहना है कि कई बिंदुओं पर हुए इस भ्रष्टाचार के मामले में इन प्रकरण की भी क्राइम ब्रांच अपराध अनुसंधान शाखा उत्तर प्रदेश से अलग से जांच कराने और तत्कालीन बीएसए की परिसंपत्तियों की भी विजिलेंस जांच कराने की संस्तुति की गई है।