बोझी बाजार। क्षेत्र के सिकठिया बारा स्थित महान तेजस्वी संत दरबारी बाबा की समाधि आज भी लोगों के लिए आस्था का केंद्र बनी हुई है। यहां दूर दराज सहित आसपास के गांवों से पूजन अर्चन करने के लिए लोगों का तांता लगा रहता है। मान्यता है कि सच्चे मन से पूजा करने से मनोकामना पूरी हो जाती है। यहां प्रत्येक रविवार को कीर्तन का आयोजन किया जाता है। साथ ही गुरु पूर्णिमा और बाबा की पुण्यतिथि पर यज्ञ का आयोजन किया जाता है।
संत दरबारी बाबा की समाधि पर तड़के से ही श्रद्धालुओं का रेला लगा रहता है। बताया जाता है कि कुटी परिसर में एक बार अखंड हरिकीर्तन चल रहा था। पूर्णाहूति के दिन विशाल भंडारा था। हजारों की संख्या में श्रद्धालु जुटे थे। पेयजल की एक मात्र व्यवस्था में एक कुंआ था। उसमें भी पानी सूख गया। प्यास से लोग तड़पने लगे तो बाबा ने अपने शिष्यों से एक चद्दर से कुंआ को ढकवाने के लिए कहा। दो मिनट बाद कुुंआ खोलवाया गया तो उक्त कुंआ में पानी भर गया। बाबा के प्रति लोगों का विश्वास बढ़ता ही गया। एक अन्य किवदंती के अनुसार सैकड़ों वर्ष पहले सिकठिया जंगल में माघ के समय वर्षा हो रही थी एक तपस्वी आए और वह तपस्या में लीन हो गए। बाद में वह संत दरबारी बाबा के नाम से जाने गए। लोगों ने बाबाजी की कुटी बनवायी। बाबा के महा प्रयाण के बाद भक्तों ने समाधि दी। भक्तों का कहना है कि कुटी पर पहुंचने औेर बाबा के समाधि के समक्ष मत्था टेकते ही परम शांति की अनुभूति होती है। बाबाजी अपने जीवनकाल में शिष्यों कोे काम करते रहोेेेेेेेेेेेेेेेेेेेेे नाम जपते रहोेेेे का संदेश दिया। इस संबंध में एलआईसी के डिवीजनल मैनेजर दुर्गा प्रसाद सिंह, कुटी के पुजारी रामकेर सिंह, सूर्यभान सिंह, रामसनेही चौहान ने कहा कि संत बाबा दरबारी जैसा संत मिलना मुश्किल हो गया है। उन्होंने कुटी को पर्यस्थल के रूप मेें विकसित किए जाने की मांग की।