मथुरा। राष्ट्रपिता महात्मा गांधी की पुण्यतिथि पर जनपद में इस बार न तो स्कूलों में जागरूकता कार्यक्रम होंगे और न ही रैली निकाली जाएगी। स्वास्थ्य मंत्रालय द्वारा जागरूकता कार्यक्रम मद में बजट न भेजे जाने के कारण इन कार्यक्रमों पर ब्रेक लग गया है।
राष्ट्रीय कुष्ठ रोग निवारण कार्यक्रम में प्रति वर्ष राष्ट्रपिता महात्मा गांधी की जयंती एवं पुण्यतिथि पर कुष्ठ रोग के प्रति जागरूकता फैलाने के लिए कार्यक्रम किए जाते हैं। इसके लिए केंद्रीय स्वास्थ्य मंत्रालय स्वास्थ्य विभाग को पांच हजार रुपये का बजट आवंटित करता है। पिछले वर्ष भी जागरूकता कार्यक्रम हुए थे। विभिन्न स्थानों पर छात्रों की जागरूकता रैली निकालकर लोगों को रोग के लक्षण, कारण, निवारण जैसे महत्वपूर्ण बिंदुओं की जानकारी दी गई थी। लेकिन इस वित्तीय वर्ष में स्वास्थ्य मंत्रालय ने इस मद में कोई बजट आवंटित नहीं किया है। इसके चलते न तो स्कूलों में कार्यक्रम होने के आसार हैं और न ही रैली ही निकल जाएगी।
ये है कुष्ठ रोग
मथुरा। कुष्ठ रोग माइकोबैक्टीरियम लैपरे नामक एक जीवाणु जनित रोग है। इस रोग को हेनसंस डिसीज भी कहा जाता है। सन 1873 में नार्वे के डा. जीए हैनसम ने इसकी खोज की थी। इसके जीवाणु ज्यादातर त्वचा व तंत्रिकाओं को प्रभावित करते हैं लेकिन इसका उपचार संभव है।
दूर करें भ्रांतियां
- यह रोग असाध्य नहीं है
- कुष्ठ रोग अनुवांशिक नहीं है
- पिछले जन्म के पापों का फल नहीं है
- यह रोगी को छूने से नहीं फैलता है
लक्षण
-त्वचा का रंग सामान्य से हल्का होना
-शरीर पर एक या एक से अधिक दाग होना
-दागों में सुन्नपन आ जाए
-तेजी से बाल झड़ रहे हों
-व्यक्ति को पसीना न आना
-हाथ-पैर व तंत्रिकाएं सुन्न होने लगना
- हाथ या पैर में विकृति हो
कुष्ठ रोग के प्रकार
-अल्प जीवाणु जनित
-अति जीवाणु जनित
कैसे फैलता है रोग
कुष्ठ रोग संक्रमित व्यक्ति की खांसी अथवा छींक के द्वारा फैलता है। विशेषज्ञों के अनुसार संक्रमित व्यक्ति खांसी अथवा छींक के साथ लाखों जीवाणु फेंकता है।
कम प्रतिरोधक क्षमता वालों को खतरा
मथुरा। कुष्ठ रोग के लक्षण उन लोगों में प्रकट होेते हैं, जिनके शरीर में रोग प्रतिरोधक क्षमता कम हो। देशभर मेें मात्र पांच फीसदी लोग ऐसे हैं, जिनमें ऐसे लक्षण पाए जाते हैं। शेष 95 फीसदी लोगों को यदि किसी तरह संक्रमण हो भी जाए तो अपने आप ठीक हो जाता है।
सालों में प्रकट होते हैं लक्षण
कुष्ठ रोग के लक्षण तीन से पांच साल में प्रकट होते हैं। इस वजह से संक्रमित व्यक्ति यह अंदाजा नहीं लगा पाता है कि उसे रोग कब और क्यों हुआ।
सिंगल सुपरवाइज डोज करती है प्रभावी निदान
कुष्ठ रोग के लिए एमडीटी औषधिक है। यह तीन दवाओं का मिश्रण है। एमडीटी में 600 एमएल मात्रा में रफमसिन, 300 एमएल मात्रा में क्लोफैजामिन तथा 100 एमएल डैप्सोन दवा मिश्रित होती है। इसके छह से बारह महीने तक सेवन से रोगी पूर्ण रूप से स्वस्थ हो सकता है। रोगी को प्रत्येक माह दवा का सेवन करना होता है। बशर्ते वह समय से उपचार आरंभ कर दे। दरअसल रोग के चर्म तक पहुंचने की दशा में रोगी के हाथ-पांव अथवा अंगुलियां टेढ़ी हो जाती हैं। इस स्थिति में दवा के सेवन से रोग तो ठीक हो जाता है, लेकिन हाथ-पांव अथवा अंगुलियां का टेढ़ापन ठीक नहीं हो पाता है।
क्यों जरूरी है उपचार
मथुरा। कुष्ठ रोग का उपचार रोगी को ठीक करने के लिए जरूरी है ही, साथ ही यदि इसका उपचार न कराया जाए तो यह रोग तेजी से फैलता है। एक संक्रमित व्यक्ति अन्य सामान्य लोगों में संक्रमण का कारण बनता है।
जनपद में 24 नए रोगी चिह्नित
2012 से जनवरी 2013 तक जनपद में 24 नए कुष्ठ रोगी चिह्नित किए गए हैं। इनमें से 18 अंडर ट्रीटमेंट हैं। इस दौरान 27 रोगियों को रोगमुक्त भी करार दिया गया है।
कुष्ठ रोग की वर्षवार प्रगति
-वर्ष 2005-06 में नए खोजे गए रोगी-45, उपचार में लाए गए रोगी-45 तथा रोगमुक्त-59
-वर्ष 2006-07 में नए खोजे गए रोगी-42, उपचार को लाए गए रोगी-42 तथा रोगमुक्त-46
-वर्ष 2007-08 में नए खोजे गए रोगी-39, उपचार को लाए गए रोगी-39 तथा रोगमुक्त-37
-वर्ष 2008-09 में नए खोजे गए रोगी-22, उपचार को लाए गए रोगी-22 तथा रोगमुक्त-22
-वर्ष 2012-13 में नए खोजे गए रोगी-24, उपचार को लाए गए रोगी-18 तथा रोगमुक्त-27
‘इस वित्तीय वर्ष में कुष्ठ रोग जागरूकता कार्यक्रम मद में बजट नहीं आया है। इस मामले में स्वास्थ्य मंत्रालय को लिखा गया है’
- डा.पीके गुप्ता, जिला कुष्ठ रोग निवारण अधिकारी