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मैनपुरी। ग्लोबल वार्म़िग का असर मानव जाति के साथ-साथ पशु-पक्षियों पर भी नजर आने लगा है। प्रदेश का राज्य पक्षी सारस इससे अछूता नहीं है। जिले में दो सालों में सारसों की संख्या 396 कम हो गई है। पक्षी संरक्षण से जुड़े लोग इसका कारण नम क्षेत्रों की कमी और जलवायु परिवर्तन को मान रहे हैं।
अक्तूबर 2012 में कराई गई सारसों की गणना में जिले में 1724 सारस पाए गए थे। जबकि वर्ष 2010 में कराई गई गणना में सारसों की संख्या 2120 थी। दो वर्ष में सारसों की संख्या में 396 की कमी दर्शाती है कि जिले में सारस महफूज नही हैं। विश्व में सर्वाधिक सारस मैनपुरी और इटावा क्षेत्र में पाए जाते हैं। पूर्व में जिले में नम स्थानों की कमी के चलते सारसों पर संकट और पलायन की बात की जाती रही है। गणना के दौरान भी यह तथ्य सामने आया कि पूर्व में जहां सारसों की संख्या अधिक पाई गई थी, वहीं इस बार संख्या में खासी कमी आई। सारसों ने नहर और रजवाहों जहां पानी की अधिकता थी उन क्षेत्रों में पलायन किया है।
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पिछले वर्षों की गणना एक नजर में
- जनपद में वर्ष 2008 में सारस गणना कराई गई थी। उस समय सारसों की संख्या 1835 थी।
- वर्ष 2010 में संख्या बढ़कर 2120 हो गई।
- अक्तूबर 2012 की सारस गणना में 1724 सारस पाए गए।
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जलवायु परिवर्तन और प्रदेश में लगातार नम क्षेत्रों में आ रही कमी के चलते सारसों की संख्या कम हो रही है। तालाब और पोखरों के सूखने या उन पर अवैध कब्जा होने से सारसों को न तो आवश्यकतानुसार भोजन मिल पा रहा है और न ही घोंसला बनाने के लिए स्थान। इसके चलते सारसों की प्रजनन क्षमता भी घट रही है। एक फरवरी को विश्व नम दिवस पर मैनपुरी और इटावा में पुन: सारसों की संख्या का सर्वेक्षण कराया जाएगा।
- डा. राजीव चौहान, महासचिव सोसाइटी फॉर कंजर्वेशन ऑफ नेचर
मैनपुरी। ग्लोबल वार्म़िग का असर मानव जाति के साथ-साथ पशु-पक्षियों पर भी नजर आने लगा है। प्रदेश का राज्य पक्षी सारस इससे अछूता नहीं है। जिले में दो सालों में सारसों की संख्या 396 कम हो गई है। पक्षी संरक्षण से जुड़े लोग इसका कारण नम क्षेत्रों की कमी और जलवायु परिवर्तन को मान रहे हैं।
अक्तूबर 2012 में कराई गई सारसों की गणना में जिले में 1724 सारस पाए गए थे। जबकि वर्ष 2010 में कराई गई गणना में सारसों की संख्या 2120 थी। दो वर्ष में सारसों की संख्या में 396 की कमी दर्शाती है कि जिले में सारस महफूज नही हैं। विश्व में सर्वाधिक सारस मैनपुरी और इटावा क्षेत्र में पाए जाते हैं। पूर्व में जिले में नम स्थानों की कमी के चलते सारसों पर संकट और पलायन की बात की जाती रही है। गणना के दौरान भी यह तथ्य सामने आया कि पूर्व में जहां सारसों की संख्या अधिक पाई गई थी, वहीं इस बार संख्या में खासी कमी आई। सारसों ने नहर और रजवाहों जहां पानी की अधिकता थी उन क्षेत्रों में पलायन किया है।
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पिछले वर्षों की गणना एक नजर में
- जनपद में वर्ष 2008 में सारस गणना कराई गई थी। उस समय सारसों की संख्या 1835 थी।
- वर्ष 2010 में संख्या बढ़कर 2120 हो गई।
- अक्तूबर 2012 की सारस गणना में 1724 सारस पाए गए।
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जलवायु परिवर्तन और प्रदेश में लगातार नम क्षेत्रों में आ रही कमी के चलते सारसों की संख्या कम हो रही है। तालाब और पोखरों के सूखने या उन पर अवैध कब्जा होने से सारसों को न तो आवश्यकतानुसार भोजन मिल पा रहा है और न ही घोंसला बनाने के लिए स्थान। इसके चलते सारसों की प्रजनन क्षमता भी घट रही है। एक फरवरी को विश्व नम दिवस पर मैनपुरी और इटावा में पुन: सारसों की संख्या का सर्वेक्षण कराया जाएगा।
- डा. राजीव चौहान, महासचिव सोसाइटी फॉर कंजर्वेशन ऑफ नेचर