महोबा। रेलवे स्टेशन में लगे ट्रेन के आने जाने का समय प्रदर्शित करने वाले डिस्प्ले बोर्ड महज शोपीस बनकर रह गए हैं। इन्हें रेलवे प्रबंधन केवल जीएम और डीआरएम के आने पर ही चालू करता है। उच्चाधिकारियों के जाते ही बोर्ड काम करना बंद कर देते हैं। इससे यात्रियों को ट्रेन के आने जाने की जानकारी नहीं मिल पाती।
महोबा से विश्वस्तरीय पर्यटन केंद्र खजुराहो के रेलवे लाइन से जुड़ने के बाद महोबा के रेलवे स्टेशन का तेजी से विकास हुआ और आटोमेटिक कंप्यूटराइज्ड प्रणाली के माध्यम से रेलवे आरक्षण की जानकरी देने वाला सिस्टम मेन गेट पर लगा दिया गया। साथ ही प्लेटफार्मों में ट्रेनों के आवागमन से संबधित जानकारी देने वाले डिस्प्ले बोर्ड पिछले वर्ष लाखों रुपए की लागत से रेलवे बोर्ड ने लगवाए थे। इससे यात्रियों को ट्रेन के आने जाने की जानकारी हो सके। अक्तूबर 2011 में आए तत्कालीन जीएम हरीश जोशी के रेलवे स्टेशन के निरीक्षण के समय इन डिस्प्ले बोर्डों को चलते देखा गया था। उनके जाते ही डिस्प्ले बोर्डों को बंद कर दिया गया। इसके बाद जून के प्रथम सप्ताह में आए उत्तर मध्य रेलवे के जीएम एसके खरे के आने पर पुन: डिस्प्ले बोर्ड चालू कर दिए गए। उनकी स्पेशल ट्रेन के स्टेशन छोड़ते ही ये बोर्ड पुन: बंद हो गए जो फिर आज तक नहीं चल सके। लाखों रुपए की कीमत के कंप्यूटर डिस्प्ले बोर्ड का सामान और अन्य उपकरण धूल खा रहे हैं। इनकी किसी भी अधिकारी को परवाह नहीं है और न ही यात्री सुविधाएं बढ़ाने पर जोर दिया जाता है। इस संबंध में स्टेशन अधीक्षक का कहना है कि डिस्प्ले बोर्ड चालू रहते हैं। कभी कभार ही बंद हो गए होंगे। इसकी उन्हें जानकारी नहीं है।
महोबा। रेलवे स्टेशन में लगे ट्रेन के आने जाने का समय प्रदर्शित करने वाले डिस्प्ले बोर्ड महज शोपीस बनकर रह गए हैं। इन्हें रेलवे प्रबंधन केवल जीएम और डीआरएम के आने पर ही चालू करता है। उच्चाधिकारियों के जाते ही बोर्ड काम करना बंद कर देते हैं। इससे यात्रियों को ट्रेन के आने जाने की जानकारी नहीं मिल पाती।
महोबा से विश्वस्तरीय पर्यटन केंद्र खजुराहो के रेलवे लाइन से जुड़ने के बाद महोबा के रेलवे स्टेशन का तेजी से विकास हुआ और आटोमेटिक कंप्यूटराइज्ड प्रणाली के माध्यम से रेलवे आरक्षण की जानकरी देने वाला सिस्टम मेन गेट पर लगा दिया गया। साथ ही प्लेटफार्मों में ट्रेनों के आवागमन से संबधित जानकारी देने वाले डिस्प्ले बोर्ड पिछले वर्ष लाखों रुपए की लागत से रेलवे बोर्ड ने लगवाए थे। इससे यात्रियों को ट्रेन के आने जाने की जानकारी हो सके। अक्तूबर 2011 में आए तत्कालीन जीएम हरीश जोशी के रेलवे स्टेशन के निरीक्षण के समय इन डिस्प्ले बोर्डों को चलते देखा गया था। उनके जाते ही डिस्प्ले बोर्डों को बंद कर दिया गया। इसके बाद जून के प्रथम सप्ताह में आए उत्तर मध्य रेलवे के जीएम एसके खरे के आने पर पुन: डिस्प्ले बोर्ड चालू कर दिए गए। उनकी स्पेशल ट्रेन के स्टेशन छोड़ते ही ये बोर्ड पुन: बंद हो गए जो फिर आज तक नहीं चल सके। लाखों रुपए की कीमत के कंप्यूटर डिस्प्ले बोर्ड का सामान और अन्य उपकरण धूल खा रहे हैं। इनकी किसी भी अधिकारी को परवाह नहीं है और न ही यात्री सुविधाएं बढ़ाने पर जोर दिया जाता है। इस संबंध में स्टेशन अधीक्षक का कहना है कि डिस्प्ले बोर्ड चालू रहते हैं। कभी कभार ही बंद हो गए होंगे। इसकी उन्हें जानकारी नहीं है।