महोबा। जल निगम द्वारा शहरियाें की प्यास बुझाने के लिए करोड़ाें रुपए की बनाई जा रही योजनाएं बेमतलब साबित हो रही हैं। हालत यह है कि हर साल पाइप लाइन बिछाने, हैंडपंप लगवाने और कूप निर्माण कराने के अलावा पाइप लाइनाें की मरम्मत में करोड़ाें रुपए खर्च होने के बाद भी पानी का संकट बना हुआ है। चंदेल राजाआें के बनवाए तालाब आज भी पेयजल आपूर्ति का सशक्त माध्यम बने हुए हैं।
पेयजल आपूर्ति का सशक्त माध्यम मदन सागर तालाब आज भी शहरियाें की प्यास बुझा रहा है। इस तालाब पर सिंचाई विभाग का स्वामित्व है इसलिए सिंचाई विभाग पहले सिंचाई के लिए पानी का भरपूर इस्तेमाल करता है। शेष पानी से शहर में पानी की आपूर्ति की जाती है। इतना ही नहीं मदन सागर में सिंघाड़े की खेती और कमल गट्टा का भी उत्पादन किया जाता है। इस तालाब का चंदेल राजाआें के समय से कपड़े धोने और नहाने के लिए इस्तेमाल किया जाता रहा है। इसके लिए तालाब के किनारे पक्के घाट भी बने हुए हैं। पिछले दो दशक से मदन सागर में जलकुंभी भयानक रूप से छा गई है जिसके कारण तालाब के पानी में पत्ताें और जड़ाें का कचरा बढ़ता जा रहा है। जलकुंभी पानी का बहुत बड़ा शोषक और कचरे का सबसे बड़ा उत्पादक है। मदन सागर में अधिकांश पानी बारिश का ही जमा होता है जो गर्मी में बहुत कम रह जाता है। महोबा पठारी क्षेत्र में होने के कारण यहां नलकूप सफल नहीं है। भूमि भी समतल नहीं है इसलिए पाइप लाइनाें में कहीं दबाव अधिक हो जाता है तो कहीं पर शून्य हो जाता है। पानी की कमी को दूर करने के लिए चरखारी बाइपास पर दो नलकूप लगवाए गए हैं। जो पर्याप्त पानी नहीं दे पाते।
मदन सागर का निर्माण चंदेल शासकाें ने नवीं शताब्दी में कराया था। तब से आज तक इस तालाब की सफाई नहीं कराई गई जिससे गहराई कम होती गई और जल संभरण क्षमता में कमी आई। वर्ष 2008 में तत्कालीन जिलाधिकारी वीवी पंत ने इस तालाब की सफाई की सुध ली लेकिन तालाब का दस फीसदी हिस्सा भी साफ नहीं हो सका था और बारिश शुरू हो गई। चंदेल कालीन मदनऊ और सदनऊ दो कुआें में पंप लगाकर शहर में पानी की आपूर्ति की जा रही है। वर्ष 1981 में जब मदन सागर सूख गया था, तब पेयजल व्यवस्था के लिए सूखा राहत योजना में शहर से छह किलोमीटर दूर विजय सागर से शहर तक पाइप लाइन बिछाई गई थी। मदन सागर के फिल्टर सयंत्र तक कच्चा पानी लाने की व्यवस्था की गई थी। इस योजना में करीब दस लाख रुपए से अधिक व्यय किया गया था। योजना पूरी होने से पहले ही बारिश शुरू हो गई और योजना अधर में लटक गई। नतीजतन बिछाई गई पाइप लाइन जगह-जगह टूट गई और लोगाें को इस योजना का लाभ नहीं मिल सका।
1963 में महोबा शहर के लिए पेयजल योजना बनी थी, तब शहर की आबादी 26 हजार थी जो अब 1.25 लाख से अधिक पहुंच गई है और पाइप लाइनें आज भी पंाच दशक पुरानी बिछी हुई हैं जो जगह-जगह चोक हो गई हैं। शहर में पीने के पानी को लेकर गर्मी के दिनाें में जल संकट बढ़ जाता है। शहर में 150 लीटर प्रति दिन प्रति व्यक्ति की दर से रोजाना 22 मिलियन लीटर पानी की आवश्यकता है। जबकि सभी स्रोताें को मिलाकर 15 मिलियन लीटर पानी की प्रतिदिन आपूर्ति की जा रही है जिससे पानी का संकट हर साल बढ़ता जा रहा है।