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बिजुआ (लखीमपुर खीरी)। आखिरकार प्रयास सफल ही हो गया। कल तक जिस पत्थर के टुकड़े के इतिहास से लोग अंजान थे। वहीं गणतंत्र दिवस पर आजादी के दीवानों की गाथाएं सुनाकर शान से तिरंगा फहराया गया। कस्बे के बीचो-बीच बने इस पत्थर के शिलापट को पहचान मिल ही गई।
आजाद चौक: जी हां, इसी नाम से जाना जाएगा अब यह शिलापट स्थल। अमर उजाला ने इसे एक मुहिम के तहत लोगों को उसकेे इतिहास से रूबरू कराया। गांव के बुजुर्गों, युवाओं और बच्चों से चर्चा की। युवाओं के जत्थे ले जाकर इस शिलापट पर राष्ट्रगान गाया गया। खास पर्व पर यहां मोमबत्ती जलाई गईं। आखिरकार इस पहल का असर दिखाई दिया। ब्लाक प्रमुख प्रीतेंद्र सिंह काकू ने शिलापट के आसपास के अतिक्रमण को साफ कराकर इसके चारों ओर बाउंड्रीवॉल का निर्माण कराने की घोषणा की।
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आजादी का इतिहास समेटे है शिलापट स्थल
जिस स्थान पर शिलापट लगा है। यहां पर 15 अगस्त 1947 को पहली बार तिरंगा फहराया गया था। शिलापट पर देश को आजादी दिलाने वाले सेनानियों के नाम दर्ज हैं, लेकिन सालों से उपेक्षित पड़े इस स्थान को लोग भूल चुके थे। नई पीढ़ी को तो इसका कोई ज्ञान ही था ही नहीं था। अमर उजाला की पहल पर जागरूकता आई तो शिलापट के चारों ओर बाउंड्री वॉल बनकर जनता को समर्पित कर दी गई। वहीं पूरा गांव के लोगों ने एक साथ जमा होकर यहां राष्ट्रध्वज फहराया।
बिजुआ (लखीमपुर खीरी)। आखिरकार प्रयास सफल ही हो गया। कल तक जिस पत्थर के टुकड़े के इतिहास से लोग अंजान थे। वहीं गणतंत्र दिवस पर आजादी के दीवानों की गाथाएं सुनाकर शान से तिरंगा फहराया गया। कस्बे के बीचो-बीच बने इस पत्थर के शिलापट को पहचान मिल ही गई।
आजाद चौक: जी हां, इसी नाम से जाना जाएगा अब यह शिलापट स्थल। अमर उजाला ने इसे एक मुहिम के तहत लोगों को उसकेे इतिहास से रूबरू कराया। गांव के बुजुर्गों, युवाओं और बच्चों से चर्चा की। युवाओं के जत्थे ले जाकर इस शिलापट पर राष्ट्रगान गाया गया। खास पर्व पर यहां मोमबत्ती जलाई गईं। आखिरकार इस पहल का असर दिखाई दिया। ब्लाक प्रमुख प्रीतेंद्र सिंह काकू ने शिलापट के आसपास के अतिक्रमण को साफ कराकर इसके चारों ओर बाउंड्रीवॉल का निर्माण कराने की घोषणा की।
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आजादी का इतिहास समेटे है शिलापट स्थल
जिस स्थान पर शिलापट लगा है। यहां पर 15 अगस्त 1947 को पहली बार तिरंगा फहराया गया था। शिलापट पर देश को आजादी दिलाने वाले सेनानियों के नाम दर्ज हैं, लेकिन सालों से उपेक्षित पड़े इस स्थान को लोग भूल चुके थे। नई पीढ़ी को तो इसका कोई ज्ञान ही था ही नहीं था। अमर उजाला की पहल पर जागरूकता आई तो शिलापट के चारों ओर बाउंड्री वॉल बनकर जनता को समर्पित कर दी गई। वहीं पूरा गांव के लोगों ने एक साथ जमा होकर यहां राष्ट्रध्वज फहराया।