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अधिकांश ने फंदे पर झूलकर ही दी जान
निघासन/लखीमपुर। तराई में प्रेमी युगल के मौत को गले लगा लेने का कोई पहला मामला नहीं है। इससे पहले भी यहां प्रेमी युगल साथ-साथ जिंदगियां खत्म कर चुके हैं। इनमें अधिकांश मौत फांसी के फंदे पर ही झूले।
क्षेत्र के गांव मोहबतिया बेहड़ में करीब चार बरस पहले गांव की जूली को अपने पड़ोसी नीरज से मोहब्बत हो गई थी। समाज में परिजनों ने अपनी बदनामी के डर से दोनों के प्यार पर पहरा बिठाया तो दोनों फांसी के फंदे पर झूल गए। अदलाबाद में करीब नौ बरस पहले खुशीराम को भी अपने पड़ोसी चौदह साल की नाबालिग लड़की से मुहब्बत हो गई थी। परिजनों को उनका प्यार रास नहीं आया और दोनों ने जहर खाकर अपनी जान दे दी। कौड़िया गांव के दिनेश को भी अपनी पड़ोसी सजातीय युवती से प्यार हो गया। प्यार की मंजिल न मिलते देख दोनों ने भी जान दे दी। करीब तीन बरस पहले गांव बल्लीपुर के एक युवक को दूसरी विरादरी की लड़की से प्यार हो गया। परिजनों ने इतना पीटा कि दो रोज बाद दोनों की मौत हो गई। इसी क्षेत्र के गांव दमनाबेहड़ में भी करीब तीन बरस पहले प्रहलाद और कुन्नी को प्रेमलाप करते पकड़ लिया गया। उसके बाद दोनों ने फांसी लगाकर जान दे दी। सिंगाही थाना क्षेत्र के गांव भिड़ौरा और उमरा, निघासन के लुधौरी, कोनहापुरवा, जगनपुरवा आदि गांवों में भी कुछ प्रेमी जोड़ों ने जब देखा कि वह साथ नहीं जी नहीं सकेंगे तो दोनों ने साथ-साथ मौत को ही गले लगा लिया।
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फिल्म सीरियल में प्यार के आक्रमक रुख आदि को देखने के बाद नाबालिग बच्चों की मानसिकता में भी परिवर्तन आ जाता है। यह परिवर्तन कभी-कभी आक्रमक हो जाता है। इसके अलावा सोच लेते हैं कि मरने के बाद भी उनका नाम प्यार की मिशाल के रूप में लिए जाने वाले चंद नामों के साथ लिया जाएगा। इस लिए भी वह आत्मघाती कदम उठा लेते हैं।
डॉ. दिनेश दुआ, मानसिक रोग विशेषज्ञ
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शिक्षा का अभाव और फिल्मी दुनिया की चकाचौंध में खोकर कुछ लोग गलत कदम उठा लेते हैं। हमें अपने बच्चों को सही गलत की बात एक बाप बनकर नहीं एक दोस्त बनकर बतानी चाहिए।
उमाकांत जायसवाल, अधिवक्ता
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आधुनिक युग में लोग फिल्मों में दिखाई जाने वाली कहानी को अपना सब कुछ मान लेते हैं। बड़ों को उसे एक मनोरंजन मात्र बताकर असली जीवन की कला सिखानी चाहिए।
योगेश पंत योगी, प्रबंधक सिटी पब्लिक स्कूल सिंगाही